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  • नाटक वृद्धाश्रम को देख दर्शक हुए bhavuk

    मधेपुरा/  जिला मुख्यालय के वेद व्यास महाविद्यालय के परिसर में वरिष्ठ नागरिक समारोह में चर्चित रंगकर्मी विकास कुमार लिखित और निर्देशित वृद्धाश्रम’ नामक मंचित नाटक को देख दर्शक हुए भोवविवोर हो गए। मानवीय संवेदना एवं स्वार्थ परक जीवन की सच्चाई बताने वाले नाटक वृद्धाश्रम ने बदलते दौर में दर्शकों को आत्मचिंतन के लिए मजूबर कर


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    मधेपुरा/  जिला मुख्यालय के वेद व्यास महाविद्यालय के परिसर में वरिष्ठ नागरिक समारोह में चर्चित रंगकर्मी विकास कुमार लिखित और निर्देशित वृद्धाश्रम’ नामक मंचित नाटक को देख दर्शक हुए भोवविवोर हो गए। मानवीय संवेदना एवं स्वार्थ परक जीवन की सच्चाई बताने वाले नाटक वृद्धाश्रम ने बदलते दौर में दर्शकों को आत्मचिंतन के लिए मजूबर कर दिया। नाटक के संवाद से रंगकर्मियों ने दिखाया कि आज की युवा पीढ़ी अपने माता-पिता की देखभाल नहीं करना चाहती है। इसके लिए उनके पास कई कारण हैं, जिनमें से एक यह है कि “माता-पिता रूढ़िवादी हैं और अपने आधुनिक समाज में समायोजित नहीं हो सकते हैं”।

    नाटक एक ऐसे परिवार के इर्द-गिर्द घूमता है जिसमें एक बुजुर्ग दंपति (यानी माता और पिता), उनका बेटा और उसकी पत्नी शामिल हैं। इसके अलावा, कहानी को पत्नी के दोस्त, उस दोस्त के पति और वृद्धाश्रम के प्रबंधक जैसे पात्रों द्वारा समर्थित किया जाता है।एक कलयुगी बेटा पत्नी के कहने पर अपनी माँ को वृद्धाश्रम में छोड़ देता है क्योंकि उसकी देखभाल करने वाला कोई नहीं है, उसे पता नहीं है कि वह उसे अनाथालय से इसी कारण से लाई थी क्योंकि उसकी देखभाल करने वाला कोई नहीं है ना ही उसके पास समय है। लेकिन उसकी माँ ने उसे यह नहीं बताया कि वह उसका असली बच्चा नहीं है ताकि वह बड़ा होकर एक अजनबी घर में सुरक्षित महसूस कर सके। नाटक में बेटा के मुख्य अभिनय निदेशक विकास कुमार ने निभाया जबकि मां की जीवंत किरदार स्नेहा कुमारी ने निभाई।

    सहयोगी रंगकर्मी निखिल यदुवंशी,संध्या कुमारी, सुहानी रानी, स्वेता कुमारी, नैंसी कुमारी, सोहानी कुमारी आदि ने बेहतरीन प्रस्तुति से मौजूद दर्शकों को भोवविवोर कर दिया। नाटक में गीत युवा गायक कमलकिशोर कुमार और गायिका आरती आनंद ने दी है। जबकि संगीत डॉ. सुरेश कुमार शशि ने दिया है।

    कार्यक्रम में शामिल कई वरिष्ठ नागरिकों ने नाटक की सराहना करते हुए कहा कि यह कहानी बुढ़ापा जीवन का कटु सत्य उजागर करती है। वृद्धावस्था जिंदगी की त्रासदी है। जिसे परिवार में आपसी समन्वय से दूर किया जा सकता है। नाटक निदेशक विकास कुमार ने दर्शकों से अपने बच्चों को संस्कारवान बनाने की अपील की है।क्योंकि बुढ़ापे में कम से कम अपने जन्मदाता का सहारा बन सकें पत्नी और नौकरी के चक्कर में माता पिता को ना भूलें।

    इस अवसर पर जिला शिक्षा पदाधिकारी मधेपुरा, डॉ. के.के. मंडल, डॉ भुपेंद्र नारायण मधेपुरी, प्रो.सचिन्द्र महंतों ,प्रो.सचितानदं यादव, डॉ रामचंद्र मंडल, डॉ. विनाय कुमार चौधरी, डॉ. आलोक कुमार, डॉ अभय कुमार, प्रो मनिभूषन वर्मा, विनीता भारती, ध्यानी यादव आदि एवं बड़ी संख्या में वरिष्ठ नागरिक ,शिक्षाविद् और जनप्रतिनिधिगण मौजूद थे।

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