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  • सेविका और सहायिकाओं के साथ सरकार ने किया वादा खिलाफी

    बबलु कुमार/ मधेपुरा/जिला समाहरणालय के समक्ष अपनी 21 सूत्री मांगों को लेकर आंगनवाड़ी सेविका-सहायिकाओं ने जेल भरो आंदोलन किया। वहीं इस दौरान सीएम नीतीश कुमार और डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव के खिलाफ जमकर नारेबाजी करते हुए सेविकाओं ने कहा कि अपने मांगों को लेकर अब वे सड़क पर उतर चुकी हैं। जबतक उनलोगों की 21


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    बबलु कुमार/ मधेपुरा/जिला समाहरणालय के समक्ष अपनी 21 सूत्री मांगों को लेकर आंगनवाड़ी सेविका-सहायिकाओं ने जेल भरो आंदोलन किया। वहीं इस दौरान सीएम नीतीश कुमार और डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव के खिलाफ जमकर नारेबाजी करते हुए सेविकाओं ने कहा कि अपने मांगों को लेकर अब वे सड़क पर उतर चुकी हैं। जबतक उनलोगों की 21 सूत्री मांगें पूरी नहीं होगी तब तक वे सब लड़ाई लड़ते रहेंगी।

    इस दौरान सेविका- सहायिकाओं ने कहा कि वर्तमान सरकार उनलोगों को आश्वस्त किया था कि उनकी सरकार बनते ही सभी मांगें पूरी होगी। लेकिन सत्ता में आने के बावजूद भी उनसब की मांगों पर अबतक कोई विचार नहीं किया गया।

    उन्होंने कहा समेकित बाल विकास सेवा परियोजना कार्यक्रम अंतर्गत कार्यरत आंगनवाड़ी सेविका सहायिका समाज में गरीबी रेखा से नीचे जिंदगी गुजर बसर करने वाले परिवार के बच्चों को प्राथमिक शिक्षा से पूर्व की शिक्षा देने और उस कुपोषण से मुक्ति दिलाने के कार्य में लगी है। हम लोगों को काम का समय मात्र 4 घंटा निर्धारित है। परंतु केंद्र एवं राज्य सरकार द्वारा प्रायोजित विभिन्न तरह के कार्यों में लगाया जाता है, जो 8 घंटे में भी पूरा नहीं होता है। टीकाकरण पल्स पोलियो, विटामिन ए मलेरिया, फाइलेरिया परिवार नियोजन, रोग से ग्रसित लोगों को बार बार चिकित्सा लाभ मुहैया कराना, स्वास्थ्य बीमा जनगणना विधवा पेंशन चुनाव कार्य, शौचालय कार्य निर्माण, कन्या सुरक्षा योजना जन्म मृत्यु दर जन्म मृत्यु प्रमाण पत्र सभी प्रकार के सर्वेक्षण कार्य प्राथमिक विद्यालय में नामांकन बढ़ाने का कार्य समाज में जागरूकता पैदा करने तक का कार्य लिया जाता है यानी सरकार द्वारा सभी योजनाओं को घर-घर तक पहुंचाने के कार्य में सेविका सहायिकाओं को ही लगाया जाता है अब तो सभी काम डिजिटल करना पड़ रहा है फिर भी ममतामई महिलाएं कर्मी महज मानदेय पर ही काम करने को मजबूर हैं।

    कहा इन्हें न्यूनतम मजदूरी अधिनियम के अंतर्गत खेत मजदूरों या मनरेगा के मजदूरों को मिलने वाले मजदूरी के समान भी मानदेय राशि नहीं दिया जाता है जो भारतीय संविधान सुप्रीम कोर्ट के डायरेक्शन एवं मानवाधिकार का खुलम खुला उल्लंघन है।

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