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  • मधेपुरा : संरक्षित वन्य जीव एवं पक्षियों का शिकार किया लेकिन रसूखदारों के गले तक नहीं पहुंच सके कानून के हाथ

    मधेपुरा/  कहा जाता है कानून के हाथ काफी लंबे होते हैं और कोई कितना भी शातिर हो उसके गिरेबान पर एक ना एक दिन शिकंजा कस ही जाता है। यह कहावत कई बार सही साबित हुई है लेकिन जिले में इस कथन को अधिकारी और विभाग ना सिर्फ झूठा साबित कर रहा है बल्कि कानून


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    मधेपुरा/  कहा जाता है कानून के हाथ काफी लंबे होते हैं और कोई कितना भी शातिर हो उसके गिरेबान पर एक ना एक दिन शिकंजा कस ही जाता है। यह कहावत कई बार सही साबित हुई है लेकिन जिले में इस कथन को अधिकारी और विभाग ना सिर्फ झूठा साबित कर रहा है बल्कि कानून के हाथ को रसूखदारों तक पहुंचने में रोड़ा भी बना हुआ है। यहां बात हो रही है आलमनगर प्रखंड के हड़जोड़ा धार के दियारा में संरक्षित पक्षियों के शिकार की। नए वर्ष का जश्न मनाने के लिये इन बेजुबान संरक्षित विदेशी और स्थानीय पक्षियों का शिकार किया गया था। इसके बाद शराब और शबाब के साथ डीजे के धुन पर दो-तीन दिनों तक पार्टी चली थी। इसमें आलमनगर और खगड़िया जिला के कुछ रसूखदारों के साथ बाहर के भी कई लोग शामिल थे। बड़े-बड़े और लग्जरी वाहनों, ट्रैक्टरों का काफीला पहुंचा था। नाव से घूम-घूम कर जंगली सुअर और यूरेशियन स्पून बिल, ब्लैक हेडेड व्हाइट एल्बीस (स्थानीय पक्षी) और रेड सैंक, ग्रीन सैंक (प्रवासी पक्षी) सहित अन्य पक्षियों का शिकार किया गया था। दुर्लभ गरुड़ का भी शिकार किया गया। बाद में रसूखदारों की इस पार्टी का वीडियो और फोटो वायरल हुआ तब उनकी करतूत की जानकारी लोगों को हुई।

    मजे की बात तो यह है कि सोशल मीडिया के कई स्थानीय ग्रुप पर वीडियो और फोटो वायरल होने के बाद भी अधिकारी और संबंधित विभाग अनजान बना रहा। जब मीडिया में खबरें आई तब विभाग पर दबाव बढ़ा। हालांकि इसके बाद भी अधिकारियों ने कार्रवाई के बदले जांच और घटनास्थल के सीमांकन का खेल शुरू करा दिया जो अभी तक चल ही रहा है।

    रेंजर व थानाध्यक्ष ने झाड़ लिया पल्ला :वन विभाग और पुलिस की कई दिनों तक चली जांच में कभी नहीं लगा कि इन रसूखदारों पर कार्रवाई के लिए जांच हो रही है। वन विभाग और पुलिस की दिलचस्पी उन्हें बचाने में अधिक थी। शायद इसी वजह से जांच के पहले दिन से ही घटनास्थल की सीमा पर अधिक फोकस किया गया। हुआ भी वही, वन विभाग, पुलिस और अंचल की जांच में घटनास्थल को भागलपुर जिले की सीमा में बता कर यहां के अधिकारियों ने मामले से ना सिर्फ अपना पीछा छुड़ा लिया बल्कि रसूखदारों को भी बचा लिया।

    वीडियो व फोटो ही बयां कर रही सारी सच्चाई :यहां यह बात भी गौर करने वाली है कि वन विभाग और पुलिस के अधिकारियों ने जिन रसूखदारों शिकारियों की पहचान होने से इंकार कर दिया था उसकी सच्चाई वीडियो व फोटो ही बयां कर रही है। वीडियो व फोटो देख चुके कुछ लोगों का कहना है कि इसमें शामिल कई रसूखदारों को स्थानीय लोग ही नहीं इस जिले के साथ अन्य जिलों के लोग भी पहचानते हैं। इन रसूखदारों में कुछ का तो रोज अधिकारों के साथ उठना-बैठना है। फिर रेंजर और पुलिस द्वारा शिकारियों को नहीं पहचानने की बात हजम नहीं होती है।

    मामले की जानकारी रखने वाले यहां के एक अधिकारी ने नाम नहीं छापने की शर्त पर बताया कि वीडियो और फोटो में दिख रहे लोगों के मोबाइल लोकेशन से पता चल जाएगा वह कहां-कहां घूम रहे थे। वहां के मोबाइल टावर से भी पता लगाया जा सकता है कि शिकार के दिन उसके रेंज में कितने मोबाइल चालू थे। इसके अलावे शिकार और पार्टी के लिये आए वाहनों (कुछ वाहनों का नंबर वीडियो व फोटो में दिख भी रहा है) के रजिस्ट्रेशन नंबर से उसके मालिक का पता लगाया जा सकता है। बावजूद इसके वन विभाग के अधिकारी इस मामले में गंभीर नहीं हैं। यह भी हो सकता था कि वन विभाग और स्थानीय पुलिस केस दर्ज मामले को भागलपुर अग्रसारित कर सकते थे। लोगों का कहना है कि कार्रवाई की मंशा होती तो कानून के हाथ कब के इन रसूखदारों की गर्दन तक पहुंच गए होते लेकिन बड़े-बड़े राजनेता और अधिकारियों के दबाव में वन विभाग और पुलिस महकमा इन रसूखदारों को बचाने में जी जान से लगा हुआ है।

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