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  • विश्व विधवा दिवस पर वैधव्य मुक्त भारत बनाने का किया संकल्प 

    हेमलता म्हस्के@नई दिल्ली देश में पहली बार दिल्ली में विश्व विधवा दिवस पर अनूठा आयोजन हुआ। इसमें विधवा प्रथा के विरोध में शुरू हुए आंदोलन वैधव्य झेल रही महिलाओं की समस्याओं के सभी आयामों पर विस्तार से चर्चा हुई। विधवाओं पर लिखी किताब का लोकार्पण हुआ। बेहतर कार्य करने वाली महिलाओं को सम्मानित भी किया


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    हेमलता म्हस्के@नई दिल्ली

    देश में पहली बार दिल्ली में विश्व विधवा दिवस पर अनूठा आयोजन हुआ। इसमें विधवा प्रथा के विरोध में शुरू हुए आंदोलन वैधव्य झेल रही महिलाओं की समस्याओं के सभी आयामों पर विस्तार से चर्चा हुई। विधवाओं पर लिखी किताब का लोकार्पण हुआ। बेहतर कार्य करने वाली महिलाओं को सम्मानित भी किया गया। इस मौके पर हरियाणा राज्य महिला आयोग की अध्यक्ष रेणु भाटिया ने कहा कि
    विधवा महिलाओं को किसी की मोहताज नहीं होना चाहिए उन्हें अपनी आंतरिक शक्ति को पहचानने की कोशिश करनी चाहिए भाटिया विश्व विधवा दिवस पर गांधी शांति प्रतिष्ठान में आयोजित विधवाओं की विडंबना पर राष्ट्रीय विमर्श में मुख्य अतिथि के तौर पर बोल रही थीं। विधवाओं की विडंबनाओं पर राष्ट्रीय विमर्श का आयोजन सावित्री बाई सेवा फाउंडेशन,पुणे और महात्मा फुले समाज सेवा मंडल सोलापुर ने पंचशील एन जी ओ , मेरा गांव मेरा देश फाउंडेशन ,विधवा महिला सम्मान और संरक्षण कायदा अभियान और पूर्णांगिनी फाउंडेशन आदि संस्थाओं ने किया था।

    रेनू भाटिया ने अपने जीवन की अनेक कठिनाइयों की चर्चा करते हुए कहा कि जब तक हम दूसरों के भरोसे रहेंगे तब तक हमारे जीवन में बदलाव संभव नहीं होगा। उन्होंने कहा कि अपने पति को खो देने के बाद भी मैंने खुद को ताकतवर बनाने के लिए लगातार कोशिश की, उसी का नतीजा है आज मुझ पर हरियाणा सरकार ने राज्य की करोड़ों महिलाओं को इंसाफ दिलाने वाले आयोग का नेतृत्व करने की जिम्मेदारी सौंपी है।
    प्रसिद्ध लेखिका और एकल यायावर डा सुनीता ने बीज वक्तव्य में कहा कि भारतीय परिप्रेक्ष्य में विधवा और रेडुआ दो शब्द दो अलग-अलग देश की ध्वनि जैसे हैं। स्त्री का विधवा होना स्त्री के समक्ष सामाजिक, सांस्कृतिक, पारिवारिक, आर्थिक दृष्टि से दुश्चक्र की स्थिति पैदा हो जाती है जबकि किसी पुरूष का रेडुआ होना दया का प्रकटीकरण बन जाता है। संयुक्त और एकल के तौर पर स्त्री सामाजिक चुनौतियों के सामने अपनी भावात्मक हत्या करती हैं। आर्थिक विपन्नता चारित्रिक मनोबल को आहत ही नहीं करते वस्तुतः घातक आघात पहुँचाते हैं। हज़ारों त्याग के बावजूद स्त्री का प्राण पत्ता पर टंगा रहता है। वहीं स्त्री के वनिस्पत पुरूष को कई तरह से चुनौती कम मिलती है। संघर्ष का ढब भी जूदा रहता है क्योंकि परिवार के बाक़ी सदस्यों का भरपूर सहयोग व समर्थन हासिल रहता है।
    इसके बाद मुंबई से ऑनलाइन संबोधन करते हुए महाराष्ट्र विधान परिषद की उप सभापति डा नीलम ताई गोरे ने विधवाओं के संरक्षण और सम्मान के लिए राष्ट्र व्यापी अभियान शुरू करने की जरूरत बताई। उन्होंने अपने संबोधन में कहा कि आज हम एक खास मुकाम पर पहुंच गये हैं. लेकिन हमें और अधिक काम करने के लिए एकजुट होने की जरूरत है।’ मानव की प्रगति जब होती है तो वह विभिन्न चरणों में होती है जैसे आर्थिक प्रगति, सामाजिक प्रगति, वैचारिक प्रगति, हम एक चरण में आगे बढ़े हैं। लेकिन विधवाओं के साथ काम करने के लिए अभी भी बहुत प्रयास की आवश्यकता है।विधवा महिला सम्मान और संरक्षण कायदा अभियान के प्रमोद झिंझडे और राजू ने महाराष्ट्र में पिछले कई सालों से चल रहे विधवा प्रथा विरोधी आंदोलन की चर्चा करते हुए विधवाओं के हक में केंद्र और विभिन्न राज्य सरकारों से कारगर कानून बनाने की मांग की।
    इस राष्ट्रीय विमर्श में महाराष्ट्र के विभिन्न जिलों से पचास से अधिक महिला प्रतिनिधियों के साथ दिल्ली , पंजाब,उत्तर प्रदेश,हरियाणा,झारखंड, बिहार, मध्य प्रदेश गुजरात,राजस्थान और,उत्तराखंड से दर्जन भर प्रतिनिधि आए हुए थे।

    सावित्री बाई सेवा फाउंडेशन की सचिव हेमलता म्हस्के के मुताबिक राष्ट्रीय विमर्श में शबाना शेख, वनिता, डा मुक्तेश्वर, अतुल प्रभाकर , शाहाना परवीन शान, डा सुनीता,मुरलीधर चंद्रम, डा आशुतोष इरफान शेख,गजानन काशीनाथ अंबादकर , डा मोरे, चेतना वशिष्ठ,लता प्रा सर, डा सुधीर कुमार, शालिनी श्रीनेत,शीतल राजपूत, श्वेता जाजू भारतीय, चंद्र मोहन पपने, हरिओम आदि ने अपने विचार व्यक्त किए। सूर्य संस्थान नोएडा के सचिव और वरिष्ठ समाज कर्मी देवेंद्र मित्तल की अध्यक्षता में आयोजित इस आयोजन में उक्त वक्ताओं ने अपने अपने राज्यों में विधवा प्रथा विरोधी आंदोलन शुरू करने का संकल्प किया। इस कार्यक्रम में विधवा प्रथा विरोध आंदोलन राष्ट्रव्यापी बनाने के मकसद से एक राष्ट्रीय स्तर का संगठन बनाने की घोषणा की गई। जिसका नाम वैधव्य मुक्त भारत अभियान रखा गया। इस अभियान की राष्ट्रीय संयोजक झारखंड की पत्रकार और समाज सेविका बरखा लकड़ा को चुना गया।
    विधवा प्रथा उन्मूलन और महिला सशक्तिकरण के लिए बीस से अधिक स्त्री और पुरुषों को सम्मानित भी किया गया। इस मौके पर दो विधवा महिला को मंगल सूत्र पहना कर सम्मानित किया गया। विधवाओं पर केंद्रित भगवान दास मोरवाल के उपन्यास मोक्ष वन का लोकार्पण किया गया। मोरवाल ने इस किताब के जरिए विधवाओं की मूलभूत मसलों और वजहों के बारे में विस्तार से बताया। दो सत्रों में आयोजित राष्ट्रीय विमर्श का संचालन वरिष्ठ पत्रकार प्रसून लतांत ने बखूबी किया। कार्यक्रम की शुरुआत अरुण कुमार पासवान की विधवा पर केंद्रित अंगिका भाषा में लिखी कविताओं के पाठ से हुई।

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