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बदहाली में जीती हैं वृंदावन की विधवाएं 

भगवानदास मोरवाल से वृंदावन की विधवाओं पर रविशंकर सिंह की बातचीत

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देश में पहली बार दिल्ली में अंतर्राष्ट्रीय विधवा दिवस मनाया गया जबकि संयुक्त राष्ट्र संघ ने 2011 में ही विश्व विधवा दिवस घोषित कर दिया था। विधवा होना इतना अभिशप्त होना हो जाता है कि वह पूरी तरह से अदृश्य हो जाती हैं। हाल के वर्षों में खासतौर से वृंदावन की विधवाओं की दुर्दशा अखबारों की सुर्खियां बनीं लेकिन पूरे देश की विधवाओं की समस्या में कोई सुधार नहीं हुआ है।  विधवाओं की समस्या पर विमर्श के लिए

23 जून को गांधी शांति प्रतिष्ठान, नई दिल्ली में ‘ विश्व विधवा दिवस  ‘ पर राष्ट्रीय विमर्श का आयोजन किया गया। इस मौके पर विधवाओं पर केंद्रित भगवानदास मोरवाल का राजकमल प्रकाशन से सद्य: प्रकाशित ‘ मोक्षवन ‘ उपन्यास का लोकार्पण हुआ। इस मौके पर देश भर से समाज सेविका,पत्रकार लेखक के साथ पश्चिम बंगाल से हिंदी के साहित्यकार रविशंकर सिंह भी आए हुए थे। राष्ट्रीय विमर्श का आयोजन सावित्रीबाई सेवा फाउंडेशन पुणे और महात्मा फुले समाज सेवा मंडल सोलापुर ने कई संस्थाओं के सहयोग से किया था।  मुख्य अतिथि के रूप में हरियाणा राज्य महिला आयोग की चेयरमैन रेणु भाटिया थी। वरिष्ठ समाज सेवी देवेंद्र मित्तल की अध्यक्षता में आयोजित इस समारोह में विशिष्ट अतिथि के रूप में  चंद्र मोहन डा सुधीर कुमार आदि मौजूद थे। मुख्य वक्ता प्रमोद झिंझडे थे।

भगवानदास मोरवाल ने ‘ मोक्षवन ‘ उपन्यास में वृंदावन में रहने वाली विधवाओं के जीवन को दिखाया है। वहीं रविशंकर सिंह को ‘ मोक्षवन ‘ उपन्यास की रचना प्रक्रिया से संबंधित भगवानदास मोरवाल से संक्षिप्त संवाद करने का अवसर मिला।  फ़िलहाल मोरवाल जी से रविशंकर सिंह के साथ हुई बातचीत के प्रमुख अंश यहां पेश हैं।

रविशंकर – ” मोक्षवन उपन्यास में आपने वृंदावन में रहने वाली विधवाओं को केंद्र में रखा है। वहां की विधवाओं के विषय में आपका क्या आब्जर्वेशन रहा  ? ”

भगवानदास – ” वृंदावन के भजनाश्रम में,  जहां ये विधवाएं पूरे दिन सात – सात, आठ – आठ घंटे झांझ – मंजिरा- ढोल बजाती हैं , गाती हैं। ये विधवाएं  छोटे-छोटे घरों में रहती हैं। अब थोड़ा – सा बदलाव आया है। ऐसा हुआ क्या कि कुछ साल पहले सुप्रीम कोर्ट के एक जज साहब बृंदावन घूमने के लिए आए थे।  वहां उन्होंने  देखा कि एक सड़क किनारे एक विधवा पड़ी हुई है। उन्होंने अपनी गाड़ी रोकी और लोगों से पूछा कि  क्या है ये  ? वहां के लोगों ने उन्हें बताया कि यहां विधवाओं का जीवन इसी तरह से बीतता  है । …तो उन्होंने इस पर ध्यान दिया। उन्होंने सोशल मीडिया पर उस विधवा की बेबसी को शेयर कर दिया। सुप्रीम कोर्ट में हल्ला मच गया। महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने सुलभ इंटरनेशनल के डायरेक्टर बिंदेश्वरी पाठक को इस दिशा में ध्यान देने की जिम्मेदारी सौंप दी। हमलोगों ने इस पर ध्यान दिया। मैं भी उनदिनों ‘ सेंट्रल सोशल वेलफेयर बोर्ड’ में काम करता था।  हमने इसके लिए कुछ काम किए। सौ – सौ ग्राम चावल और पचास – पचास ग्राम दाल पर अपना  जीवन बसर करती थी किसी तरह से ये लोग। ‘ 90 के बाद आर्थिक उदारीकरण का दौर आया,  जो दो चीजों के लिए बहुत फायदेमंद साबित हुआ। एक सांप्रदायिकता और दूसरा धर्म । आप देखें  धर्म का प्रचार के लिए जितने भी आश्रम आगरा- दिल्ली रोड पर स्थित हैं और जो फाइव स्टार मंदिर बने हुए हैं , कई – कई एकड़ जमीन पर फैले  हैं।

रविशंकर – बंगाल में आपने कहां कहां की यात्रा की ?

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भगवानदास – ” बंगाल में  मायापुर गया , नादिया , शांतिनिकेतन गया । मैं पूरे वृंदावन में लोगों से मिला। भजनाश्रम में लोगों से मिला । कुछ चीजें इसमें बड़ी मजेदार हैं । जब हम  उपन्यास लिखते हैं तो उसमें केवल वही विषय नहीं होते । उसके साथ साथ बहुत सारी चीजें चलती है , क्योंकि उपन्यास और उपन्यासकार का काम पाठकों को एजुकेट और  समृद्ध करना भी है । वहीं मैंने मंदिर में एक विचित्र चीज देखी।  मैंने  देखा मंदिर में एक जगह मंदिर में वाजिद अली शाह की तस्वीर है । तस्वीर में वे कृष्ण प्रतिमा पर पंखा झल रहे हैं। वाजिद अली शाह के पिता के समय में दो भाई थे – कुंदन लाल और फुंदनलाल। वे दोनों भाई उनके यहां बड़े व्यापारी  थे। उन्हें शाह की उपाधि से नवाजा गया था। उन दोनों भाइयों ने इस मंदिर का निर्माण  कराया,  जिसे बाद में शाहजी मंदिर भी कहा जाने लगा। उसकी वास्तुकला देखने के लायक है। वहां की वास्तुकला इटेलियन, राजस्थानी शैली में है। वहीं पर एक तरफ एक और नई दुनिया है। यानी वहां दो तरह की दुनिया है।

वहां एक तरफ  साध्वी ऋतंभरा है। वह  हिंदूवादी फायर बिग्रेड । उनको मुख्यमंत्री ने कौड़ियों के भाव जमीन दी। वहां किस तरह से उनका साम्राज्य फैला है।  वहां वात्सल्य ग्राम बना है।

ब्रज संस्कृति शोध संस्थान गोदा बिहार से संबंधित लक्ष्मी नारायण तिवारी जिनकी मंदिर के पास लस्सी की दुकान है, उन्होंने  मुझसे कहा, ” मोरवाल जी ! वृंदावन में सबसे ज्यादा भीड़ शनिवार रविवार को होती है।   इतनी भीड़ कि रास्ते पर चलने की भी जगह नहीं होती। इतनी भीड़ तो किसी तीज – त्यौहार पर भी नहीं होती। दिल्ली और आस – पास के जितने भी खाए – पीए – अघाये लोग हैं, वे यहां पिकनिक मनाने आते हैं। दिल्ली यहां से दूर नहीं है ना ! यहां जितने भी फ्लैट्स हैं, आर्थिक रूप से समर्थ लोगों ने अपनी मां के लिए  खरीद कर रखे हैं। मैं अपने परिचित दो विशिष्ट धनाढ्य लोगों को जानता हूं, जिन्होंने  अपनी विधवा मां को इस्कोन के बगल में फ्लैट खरीद कर रखा है।  इस तरह  यहां आने से उनकी संतानों का दो काम हो जाता है। एक तो वे अपनी मां से भी मिल आते हैं, दूसरे तीरथ हो गया और पिकनिक भी ।  ”

रविशंकर –  वहां रेड लाइट एरिया है भी है क्या? 

भगवानदास – हां, ऐसी कालोनी भी है। वृंदावन में विधवाएं आती हैं  मुक्ति की कामना में , लेकिन धीरे-धीरे जब उनका गुज़ारा नहीं होता है , तो वे कहीं काम करने के लिए चली जाती हैं, जैसे बर्तन मांजना, घर की साफ सफाई करना। वहां उनका यौन शोषण भी होता है ।  दूसरे वहां सेवायत का प्रभुत्व है। वे  सारे – के – सारे सेवायत गोस्वामी हैं। चैतन्य महाप्रभु ने दो भाइयों सनातन गोस्वामी और रुप गोस्वामी बंगाली ब्राह्मण को वृंदावन की खोज में भेजा था । वे  दो भाई यहां आए थे । आज पूरे ब्रज में जितने सेवक हैं, सब गोस्वामी हैं। सबसे बड़ी हैरानी की बात यह है कि वृंदावन के मंदिरों में दौलत बरसती है । वहां आपको सामाजिक स्तर पर  गरीबी भी बहुत मिलेगी। सामंतवादी, जातिवादी सोच का बोलबाला मिलेगा। मंदिरों में खूब चढ़ावा चढ़ता है। छोटे-छोटे बच्चे को कृष्ण बना कर बैठाया जाता है,  राधा बना कर बैठाया जाता  है। नोटों के ढेर लगे हुए हैं। ”

प्रस्तुति-हेमलता म्हस्के

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