उगना वियोग’ नृत्य-नाटिका की जीवंत प्रस्तुति के साथ सिंहेश्वर महोत्सव का हुआ समापन,दिखी कई राज्यों की लोक संस्कृति
मधेपुरा/ कला संस्कृति एवं युवा विभाग,बिहार सरकार और जिला प्रशासन के संयुक्त तत्वावधान में सिंहेश्वर के मवेशी हाट में आयोजित तीन दिवसीय राजकीय सिंहेश्वर महोत्सव का समापन सोमवार के रात विनोद राठौर और चाँदनी मुखर्जी के आवाज़ में चलते चलते मेरा ये गीत याद रखना कभी अलविदा ना कहना से हो गया। महोत्सव में देश के विभिन्न हिस्सों से आए कलाकारों द्वारा लोक कला की मार्फत भारतीय लोक संस्कृति की एक से बढ़कर एक प्रस्तुति की गई.
महोत्सव के अंतिम दिन सामाजिक सांस्कृतिक एवं साहित्यिक संस्था सृजन दर्पण के रंगकर्मियों ने उगना वियोग नृत्य-नाटिका के माध्यम से यह दिखाने का प्रयास किया कि महाकवि विद्यापति भगवान शिव के अनन्य भक्त थे। उनकी भक्ति भावना से प्रसन्न होकर भगवान शिव स्वयं उनके घर पर उगना के भेष में सेवा का काम करते थे। यह बात सिर्फ विद्यापति जानते थे। उगना का शर्त था यह बात किसी को बताना नहीं है। जिस दिन बताएंगे उसी दिन में चला जाऊंगा।इस बात से विद्यापति की पत्नी भी अनजान थी।एक दिन वह किसी बात पर क्रोधित होकर चूल्हा की जलती लकड़ी से मारने दौड़ी। ऐसा अनर्थ होता देख विद्यापति खुद को रोक नहीं पाए,बोल उठे-हां हां ई साक्षात महादेव छी। और फिर शर्त के अनुसार शिव अंतर्धान हो गए।हर वक्त साथ-साथ रहने वाले इष्टदेव के यूं चले जाने से विधापति का हृदय विकल हो उठा।उसी हृदयविदारक वेदना को अपने बेहतरीन अभिनय से कलाकारों ने मंच पर दिखाया।इसमें उन्होंने भारतीय लोक मानस में आदि काल से जमे विश्वास को मूर्त रूप संदेश मूलक अभिनय से दिया.
नृत्य-नाटिक के माध्यम से रंगकर्मीयो ने यह संदेश दिया कि सच्चे हृदय की पुकार पर भगवान भी हाजिर हो जाते हैं, विद्यापति की करता पुकार पर जब आदि देव शंकर मंच पर अवतरित हुए तब दर्शक वर्ग कलाकारों के अभिनय देख कर भाव विभोर हो गए.
विद्यापति की मुख्य भूमिका में युवा रंगकर्मी और निदेशक विकास कुमार एवं सहयोगी कलाकार थे। नीरज कुमार,भावेश कुमार,आर्यन राणा, स्वामी कुमार,आकाँक्षा प्रिया,खुशी कुमारी,मुन कुमारी,मनिषा कुमारी, स्नेहा कुमारी,प्रीति कुमारी,सोनम कुमारी, आंचल कुमारी,अंजलि कुमारी,गुंजन कुमारी ने बेहतरीन किरदार निभाया. जीवंत प्रस्तुति को मौजूद दर्शकों ने खूब सराहा.मंचन को सफल बनाने में संस्था अध्यक्ष डॉ.ओमप्रकाश ओम, डॉ.सुरेश कुमार शशि, सौरभ सुमन,विजय चोरसिया, राणा यादव आदि ने महत्वपूर्ण भूमिका निभायी।मंच संचालन डॉ.पी.यदुवशी ने किया।