सहरसा/शनिवार को सहरसा स्टेडियम में आयोजित कला संस्कृति एवं युवा विभाग,बिहार सरकार और जिला प्रशासन के संयुक्त तत्वावधान में दो दिवसीय राजकीय कोशी महोत्सव का समापन हो गया।अंतिम दिन विभिन्न हिस्सों से आए कलाकारों ने अपनी कला की मार्फत एक से बढ़कर एक गीत नृत्य के माध्यम से लोगों का दिल जीत लिया। इसी कड़ी में सामाजिक सांस्कृतिक एवं साहित्यिक क्षेत्र में काम करने वाली संस्था सृजन दर्पण मधेपुरा के रंगकर्मियों ने उगना वियोग नृत्य-नाटिका के जरिए संदेश मूलक प्रस्तुति दी।
उगना वियोग से कलाकारों ने यह दिखाने का प्रयास किया कि महाकवि विद्यापति भगवान शिव के अनन्य भक्त थे। उनकी भक्ति भावना से प्रसन्न होकर भगवान शिव स्वयं उनके घर पर उगना के भेष में सेवक का काम करते थे। यह बात सिर्फ विद्यापति जानते थे। उगना का शर्त था यह बात किसी को बताना नहीं है।जिस दिन बताएंगे उसी दिन में चला जाऊंगा।इस बात से विद्यापति की पत्नी भी अनजान थी।एक दिन वह किसी बात पर क्रोधित होकर चूल्हा की जलती लकड़ी से मारने दौड़ी। ऐसा अनर्थ होता देख विद्यापति खुद को रोक नहीं पाए, बोल उठे-हां हां ई साक्षात महादेव छी। और फिर शर्त के अनुसार शिव अंतर्ध्यान हो गए।हर वक्त साथ-साथ रहने वाले इष्टदेव के यूं चले जाने से विधापति का हृदय विकल हो उठा।उसी हृदयविदारक वेदना को अपनी बेहतरीन अभिनय से मंच पर दिखाया।इसमें उन्होंने भारतीय लोक मानस में आदि काल से जमे विश्वास को मूर्त रूप संदेश मूलक अभिनय से दिया।
नृत्य-नाटिक के माध्यम से रंगकर्मीयो ने यह संदेश दिया कि सच्चे हृदय की पुकार पर भगवान भी हाजिर हो जाते हैं, विद्यापति की करता पुकार पर जब आदि देव शंकर मंच पर अवतरित हुए तब दर्शक वर्ग कलाकारों के बेहतरीन अभिनय देख कर भाव विभोर हो गए। विद्यापति की जीवंत भूमिका में थे युवा रंगकर्मी और निदेशक विकास कुमार,जबकि उगना का किरदार स्वामी कुमार ने निभाया।
मौजूद दशकों ने संदेश मूलक प्रस्तुति को देख कर मंत्रमुग्ध हो गये।बीच-बीच में लोगों ने कलाकारों के अभिनय को तालियों के गड़गाहट से खूब सराहा।कार्यक्रम के अंत में जिला प्रशासन द्वारा संदेशप्रद मंचन के लिए रंगकर्मी बिकास कुमार एवं साथी को स्मृति चिन्ह देकर सम्मानित किया।