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  • मन कभी बूढ़ा नहीं होता, तन बूढ़ा हो सकता है-डॉ.शशिधर मेहता

    पटना प्रतिनिधि “सीखने की कोई उम्र सीमा नहीं होती, केवल जुनून ही मायने रखता है।”और ये साबित कर रहे हैं -दिल्ली विश्वविद्यालय के नार्थ कैम्पस स्थित विश्वप्रसिद्ध वल्लभभाई पटेल चैस्ट संस्थान, दिल्ली में कार्यरत, डॉ. एस. डी. मेहता। सरकारी नौकरी मिलने के बाद, जब ज़्यादातर लोग अपने आरामदायक दिन की शुरुआत कर रहे थे, तब


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    पटना प्रतिनिधि

    “सीखने की कोई उम्र सीमा नहीं होती, केवल जुनून ही मायने रखता है।”और ये साबित कर रहे हैं -दिल्ली विश्वविद्यालय के नार्थ कैम्पस स्थित विश्वप्रसिद्ध वल्लभभाई पटेल चैस्ट संस्थान, दिल्ली में कार्यरत, डॉ. एस. डी. मेहता।

    सरकारी नौकरी मिलने के बाद, जब ज़्यादातर लोग अपने आरामदायक दिन की शुरुआत कर रहे थे, तब डॉ. मेहता ने अपने बचपन के सपने को वैज्ञानिक सोच के साथ मूर्त रुप देने के लिए अपने उम्र के 53वीं वर्ष में पी-एच. डी.(जैवरसायन) में डॉक्टररेट पूरा किया और उक्त संस्थान में रिसर्च एवं डाइग्नोस्टिक  प्रयोगशाला सेवा के साथ – साथ बायोमेडिकल लेबोरेटरी साइंस की तरक्की में व्यस्त नज़र आए।ये उड़ान सिर्फ सरकारी नौकरी की नहीं, बल्कि सीखने की ऊँचाइयों की है।

    एक वरिष्ट तकनीकी स्टाफ होते हुए भी वे खुद को आज भी एक छात्र मानते हैं – और यही उन्हें सबसे अलग Unique बनाता है। मन कभी बूढ़ा नहीं होता है, तन बूढ़ा हो सकता है। इन्हें पढने और पढाने का बहुत शौक है।

    उनका मानना है, “सीखने की न कोई उम्र होती है, न कोई सीमा – हम एक छात्र की भूमिका में ही अपने जीवन की सर्वश्रेष्ठता को प्राप्त कर सकते हैं।” सीखने के लिए हमेशा कुछ न कुछ बचा रहता है और कड़ी मेहनत का कोई विकल्प नहीं है। किसी भी उम्र में सीखा और निखारा जा सकता है, बस एक ही चीज़ मायने रखती है और वह है जुनून।
    डॉ शशिधर मेहता मूल रूप से बिहार राज्य के मधेपुरा जिला अंतर्गत चौसा के निवासी हैं।वे उमाकांत मेहता एवं उर्मिला मेहता के जेष्ठ पुत्र हैं।
    सबसे खास बात यह है कि वह शत-प्रतिशत उपस्थिति वाले छात्रों में शामिल हैं, जो उनकी सीखने की ललक और समर्पण को दर्शाता है। उनकी यह लगन युवाओं के लिए किसी प्रेरणा से कम नहीं।

    डॉ मेहता जी जैसे लोग साबित करते हैं कि अगर इच्छा शक्ति मजबूत हो, तो कोई भी लक्ष्य हासिल किया जा सकता है। उनका यह सफर हम सभी के लिए एक प्रेरणास्रोत है।
    तो आइए, इस मिसाल से प्रेरणा लेते हुए हम भी अपनी ‘सीखने की ललक’ को ज़िंदा रखें। जो पढता है,वही बढता है! जो सीखता है, वही उड़ता है।

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