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अर्घ्य देने के साथ ही सम्पन्न हुआ सूर्योपासना का महान पर्व छठ - Kosi Times
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  • अर्घ्य देने के साथ ही सम्पन्न हुआ सूर्योपासना का महान पर्व छठ

    नौशाद आलम@कोसी टाइम्स प्रतिनिधि लोक आस्था के छठ महापर्व के चौथे दिन आज मंगलवार की सुबह छठ व्रतियों के उगते सूर्य भगवान को अर्घ्य देने के साथ ही समापन हो गया। इसके बाद सभी छठ व्रतियों ने व्रत का पारण किया। मान्यता है कि सूर्योदय के समय अर्घ्य देने से सुख-समृद्धि, सौभाग्य, संतान प्राप्ति की


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    नौशाद आलम@कोसी टाइम्स प्रतिनिधि

    लोक आस्था के छठ महापर्व के चौथे दिन आज मंगलवार की सुबह छठ व्रतियों के उगते सूर्य भगवान को अर्घ्य देने के साथ ही समापन हो गया। इसके बाद सभी छठ व्रतियों ने व्रत का पारण किया। मान्यता है कि सूर्योदय के समय अर्घ्य देने से सुख-समृद्धि, सौभाग्य, संतान प्राप्ति की मनोकामना और संतान की रक्षा का वरदान मिलता है।जिले के कृष्ण टोला चौसा के घाट पर छठ पूजा के मौके पर आस्था का जनसैलाब उमड़ पड़ा। ज्यादा भीड़ सुबह वाले अर्घ्य के समय रही।

    चौसा प्रखंड मुख्यालय समेत कृष्ण टोला,कृषि फॉर्म,अरजपुर,लौआलगान, फुलौत, मोरसंडा, कलासन,घोषई,पैना ,चिरौरी ,मोर संडा,पैना, चन्दा,अरजपुर, भटगामा,बसैठा के विभिन्न स्थानों पर आज उदीयमान सूर्य को नदी-तालाब या अन्य जल स्रोतों के बीच खड़े होकर अर्घ्य देने के साथ ही छठ का चार दिवसीय अुनष्ठान पूरा हो गया।व्रती आधी रात के बाद से ही घाटों पर इकट्ठा हो गए थे। व्रत रखने वाले पुरुष एवं महिलाएं घाटों पर जमा हुए और कमर तक पानी में खड़े होकर  सूर्य की आराधना की।रात के अंधेरे में छठ घाट दीयों की रोशनी से सजे हुए नजर आए। जैसे ही सूर्योदय हुआ भगवान भास्कर को अर्घ्य देने की होड़ सी मच गई।

     

    छठ व्रतियों ने अनुष्ठान के समापन की पूर्व संध्या पर अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य दिया। इस दिन षष्ठी तिथि को छठी मैया का पूजन विधि-विधान के साथ हुआ।घाटों पर छठ पूजा के मौके पर आस्था का जनसैलाब उमड़ पड़ा। यह शहर सहित ग्रामीण क्षेत्रों के हर घाट पर देखने को मिला। छठ व्रतियों ने देश, समाज और परिवार की सुख-शांति और समृद्धि की कामना की। छठ के गीतों से पूरा चौसा छठमय हो गया।कई जगहों पट पूजा समिति के द्वारा सांस्कृतिक कार्यक्रम का भी आयोजन किया है जिसमे में कलाकरो ने उपस्थित लोगों को झूमने को मजबूर कर दिया। प्रशासन की ओर से चिन्हित घाटो पर जगह जगह पर बेरिकेटिंग कर लोगो को ज्यादा पानी मे जाने से रोक लगा दिया गया था।

    छठ घाट एवं सड़को पर इलेक्ट्रिक लाइट की सजावट की गई थी। छठ घाटों तक व्रतियों के पहुंचने में असुविधा नहीं हो, इसको ले लाइट की व्यवस्था की गयी थी। रंग-बिरंगी रोशनी से अलग दृश्य प्रस्तुत हो रहा था।कृष्ण टोला एवं कृषि फॉर्म छठ घाट पर भगवान भास्कर की प्रतिमा स्थापित की गई थी।जिसे देखने एवं पूजन के लिए श्रद्धालुओं की भीड़ यहां भी देखी गई।

    मनोकामना पूरी करती हैं मईया

    चौसा की रहने वाली कंचन जायसवाल का कहना है कि बिहार में छठ पर्व का अलग महत्व है।पूरे निष्ठा के साथ भगवान भास्कर एवं छठी मैया की पूजा की जाती है। छठी मैया से लोग जो भी मनोकामना करती हैं माँ उसको पूरा करती हैं।वे बताती हैं कि इस पर्व की विशेषता है कि परिवार के सभी सदस्य पूरी निष्ठा के साथ कार्य में सहयोग करते हैं।इसकी तैयारी पूरी शुद्धता और पवित्रता के साथ की जाती है।

    25 वर्षों से कर रही उपासना

    गांधी चौक की रहने वाली सुलेखा देवी पिछले 25 वर्षों से छठ करती है।इस पर्व का उन्हें काफी इंतजार रहता है।पर्व के आगमन के साथ एक अद्भुत शक्ति का आभास होने लगता है।इस पर्व की सबसे बड़ी बात इसकी सादगी व पवित्रता है।इस पर्व में परिवार के सभी लोग हर जगह से जरूर आते हैं। घर का माहौल काफी सकारात्मक रहता है।सभी इस पर्व को लेकर काफी उत्साहित रहते हैं।वे कहती है कि जो भी सच्चे मन से छठी मैया एवं भगवान भास्कर से मांगती हैं वह जरूर पूरा होता है।

    गूंजते रहे गीत

    घाट से घर तक का माहौल रहा भक्तिमय घाट से लेकर घर तक का माहौल भक्तिमय बना रहा। कांच के बांस के बहंगिया, बहंगी लचकत जाए…होख न सुरुजदेव सहाय… बहंगी घाट पहुंचाए…चौसा के घाट पर हमहूं अरधिया देबई हे छठी मईया…केलवा जे फरेले घवद से वोह पर सुगा मंड़राए जैसे गीत चौसा में गूंजते रहे।

    एक दूसरे के पैर छू कर लिया आशीर्वाद

    मंगलवार को उदीयमान सूर्य को अर्घ्य देने के बाद व्रतियों ने 36 घंटे का निर्जला व्रत शरबत और प्रसाद ग्रहण कर खोला। इसके बाद एक-दूसरे को सिंदूर लगाकर अखंड सौभाग्य की कामना की। व्रतियों के पांव छूने के लिए उमड़े लोग मन्नत पूरी होने के बाद कई छठ व्रती घाट तक दंडवंत करते जाते हैं। इन छठव्रतियों का आशीर्वाद लेने के लिए श्रद्धालु पांव छूते रहे।

    मांग कर खाया प्रसाद

    छठ पर प्रसाद मांगकर खाने की परम्परा रही है। छठ घाटों पर प्रसाद मांगकर खाते लोगों ने छठ की महानता को दर्शाया। इस परम्परा के माध्यम से आम से खास की दूरी खत्म हो जाती है।

    पहली बार छठ कर रही सुधा गुप्ता ने बताया कि व्रत कर खास अनुभूति महसूस हो रही है।वे कहती हैं कि कार्तिक शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि और दिवाली के छह दिन बाद मनाया जाने वाला छठ पूजा, छठी मैया और सूर्य देव की पूजा करने और परिवार की समृद्धि एवं कल्याण के लिए उनसे आशीर्वाद मांगने का समय है। छठ पूजा मानवता और प्रकृति के बीच गहरे संबंध का प्रतीक है, जो सूर्य की जीवनदायिनी ऊर्जा और छठी मैया की पोषणकारी उपस्थिति का उत्सव मनाती है। अपने धार्मिक महत्व के अलावा, यह त्योहार एकता और समुदाय की भावना को भी बढ़ावा देता है क्योंकि परिवार, दोस्त और पड़ोसी अपने अनुष्ठानों और प्रार्थनाओं में एक-दूसरे का साथ देने के लिए एकजुट होते हैं। पारण करने के बाद व्रतियों ने ठेकुआं और केला-सेब भी बांटे।

    सुबह अर्ध्य के बाद खोइंछा देने की है परम्परा

    महिला व्रती सुबह अर्घ्य के बाद वहां मौजूद बड़ों से आशीर्वाद लेती हैं और छोटी सुहागन महिला का खोइंछा भरती हैं। इसमें केला, ठेकुआ प्रसाद दिया जाता है और व्रती उनकी मांग में सिंदूर भरती हैं। बच्चे व्रती से आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए उनके पैर धोते और उनसे प्रसाद प्राप्त करते हैं। आमतौर पर यह खास रस्म बिहार, झारखंड और उत्तर प्रदेश में बेटी के विदाई यानी मायके से ससुराल जाते समय निभाई जाती है। इस रस्म में नवविवाहित बेटी को मायके से ससुराल जाते वक्त मां या भाभी उन्हें एक पोटली में धान, चावल, जीरा, सिक्का, फूल और हल्दी भरकर दी जाती है। इस सामग्री को ही खोइछा कहा जाता है। ऐसा कहा जाता है कि इससे मायके में भी सुख समृद्धि बनी रहती है।

    कौन है छठी मैया ?

    साहित्यकार सह शिक्षक संजय कुमार सुमन कहते हैं कि श्रद्धा और निष्‍ठा के साथ छठ महापर्व मनाया जाता है।लोक-आस्‍था के महापर्व छठ की महिमा अपरंपार मानी जाती है।मान्‍यता है कि छठी मइया, परबैतिन (पर्व करने वाले) और उनके परिवार की मनोकामनाएं पूर्ण करती है।धार्मिक ग्रंथों और पौराणिक कथाओं के मुताबिक छठी मैया ब्रह्मा जी की मानस पुत्री हैं। ये सूर्य देव की बहन भी मानी जाती हैं।छठ व्रत में षष्ठी मैया की पूजा की जाती है, इसलिए इस व्रत का नाम छठ पड़ा।पौराणिक कथा के अनुसार, ब्रह्माजी ने सृष्टि की रचना करने के लिए खुद को दो भागों में बांटा।जिसमें दाएं भाग में पुरुष और बाएं भाग में प्रकृति का रूप सामने आया।माना जाता है कि सृष्टि की अधिष्ठात्री प्रकृति देवी के एक अंश को देवसेना कहा जाता है।चूंकि प्रकृति का छठ अंश होने की वजह से देवी का एक नाम षष्ठी भी है।जिन्हें छठी मैया के नाम से जानते हैं।

    सुरक्षा के व्यापक इंतजाम

    छठ को लेकर  प्रशासन ने सुरक्षा के व्यापक इंतजाम किए।चौसा प्रशासन की ओर से सभी गंगा घाटों पर चाक-चौबंद व्यवस्था की गई थी। घाटों के अलावा सभी चौक चौराहे पर पुलिस बल तैनात थे।फुलौत सहित अन्य जगहों में मोटरवोट के साथ साथ गोताखोर को तैनात किया था ।जगह जगह पर सुरक्षा व्यवस्था को लेकर दंडाधिकारी के साथ भारी संख्या में सुरक्षा कर्मी को भी मौजूद था।स्वास्थ्य कर्मियों के द्वारा लगातार अपनी पूरी टीम के साथ पूरी तरह से मुस्तैद रहे।
    पूजा को सम्पन्न कराने को लेकर बीडीओ सरीना आजाद, सीओ उदयकांत मिश्र,कई दण्डाधिकारी एवं पुलिस पदाधिकारी के अलावे जिला परिषद सदस्य अनिकेत कुमार मेहता,चौसा पश्चिमी मुखिया प्रतिनिधि संजय यादव,पूर्व मुखिया सुनील यादव,संतोष साह, मुखिया पप्पू शर्मा, घनश्याम मंडल,सुबोध कुमार मंडल,विनोद यादव,मो.शाहजहाँ, मुखिया बबलू ऋषिदेव,पूर्व मुखिया पंकज मेहता,विद्यानंद पासवान,पंवन मुनी,अभिनंदन कुमार मंडल सहित कई जनप्रतिनिधियो की सक्रिय भूमिका देखी गयी।

     

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