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वर्ल्ड वैटलैंड डे पर सेमिनार का आयोजन

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मधेपुरा/ आर्द्रभूमि (वैटलैंड) में जल पर्यावरण और संबंधित पौधे एवं पशु जीवन को नियंत्रित करने वाला प्राथमिक कारक होता है। यह स्थलीय एवं जलीय पारिस्थितिकी प्रणालियों के बीच की संक्रमणकालीन भूमि है। यहाँ जल आमतौर पर सतह पर होता है या भूमि उथले पानी से ढकी होती है।यह बात जंतु विज्ञान विभागाध्यक्ष प्रो. नरेंद्र श्रीवास्तव ने कही।

वे गुरुवार को अपने विभाग द्वारा आयोजित वर्ल्ड वैटलैंड डे कार्यक्रम में बोल रहे थे। कार्यक्रम का आयोजन नार्थ कैम्पस के विज्ञान संकाय सभागार में मधेपुरा यूथ एसोसिएशन (माया) के सौजन्य से किया गया।

उन्होंने बताया कि भारत में सैकड़ों प्राकृतिक एवं कुछ कृत्रिम वैटलैंड भी हैं। ये वैटलैंड 12 लाख 50 हजार 361 हेक्टेयर क्षेत्र में वैटलैंड फैले हैं। इनमें से 64 वेटलैंड्स को विश्व स्तर पर रामसर कन्वेंशन से मान्यता प्राप्त है। आजादी के अमृत काल में इस संख्या को पचहत्तर करने का लक्ष्य रखा गया है।

उन्होंने बताया कि 2 फरवरी 1971 को विश्व के विभिन्न देशों ने ईरान के रामसर में विश्व के वेटलैंड्स के संरक्षण हेतु एक संधि पर हस्ताक्षर किये थे, इसीलिये इस दिन विश्व वेटलैंड्स दिवस का आयोजन किया जाता है। वर्ष 2015 तक के आँकड़ों के अनुसार अब तक 169 दल रामसर कन्वेंशन के प्रति अपनी सहमति दर्ज़ करा चुके हैं जिनमें भारत भी एक है।

उन्होंने बताया कि वर्तमान में 2200 से अधिक वेटलैंड्स हैं, जिन्हें अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व की वेटलैंड्स की रामसर सूची में शामिल किया गया है और इनका कुल क्षेत्रफल 2.1 मिलियन वर्ग किलोमीटर से भी अधिक है।

उन्होंने कहा कि वेटलैंड्स को ‘किडनीज ऑफ द लैंडस्केप’ (भू-दृश्य के गुर्दे) भी कहा जाता है। जिस प्रकार से हमारे शरीर में जल को शुद्ध करने का कार्य किडनी द्वारा किया जाता है, ठीक उसी प्रकार वेटलैंड का तंत्र जल-चक्र द्वारा जल को शुद्ध करता है और प्रदूषण अवयवों को निकाल देता है।

उन्होंने एक टीम के साथ पिछले हफ्ते घेलाढ ब्लॉक में
दो वेटलैंड्स के किए गए सर्वे की विस्तृत जानकारी दी। उन्होंने बताया कि मधेपुरा के वैटलैंड अत्यधिक महत्वपूर्ण है। यह प्रवासी पक्षियों के आश्रय स्थल और मखाना की खेती की दृष्टि से काफी उपयोगी है।

उन्होंने बताया कि भारत सरकार भी वैटलैंड के संरक्षण पर जोड़ दे रही है और हाल ही में प्रस्तुत आम बजट में भी इसके लिए प्रावधान किया गया है।

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कार्यक्रम में विज्ञान संकायाध्यक्ष प्रो. नवीन कुमार ने कार्यक्रम के कुशल संचालन एवं कार्यक्रम के विषय वस्तु के चयन के लिए शुभकामना दीं। उन्होंने कहा कि वेटलैंड (आर्द्रभूमि) एक विशिष्ट प्रकार का पारिस्थितिकीय तंत्र है तथा जैव-विविधता का एक महत्त्वपूर्ण अंग है। जलीय एवं स्थलीय जैव-विविधताओं का मिलन स्थल होने के कारण यहाँ वन्य प्राणी प्रजातियों व वनस्पतियों की प्रचुरता होने से वेटलैंड समृ़द्ध पारिस्थतिकीय तंत्र है।

रसायनशास्त्र विभागाध्यक्ष प्रो. अशोक कुमार यादव ने कहा कि वैटलैंड का जलसंरक्षण एवं जैव विविधता की दृष्टि से काफी महत्व है। यह उन्होंने कहा कि आज के आधुनिक जीवन में मानव जीवन को सबसे बड़ा खतरा जलवायु परिवर्तन से है और ऐसे में यह ज़रूरी हो जाता है कि हम अपनी जैव-विविधता का सरंक्षण करें।

जंतु विज्ञान विभाग के पूर्व अध्यक्ष डॉ. अरुण कुमार ने ने वेटलैंड की उपयोगिता और इस पर अवेयरनेस प्रोग्राम आयोजित करने की जरूरत पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि नमी या दलदली भूमि वाले क्षेत्र को आर्द्रभूमि या वेटलैंड (wetland) कहा जाता है। दरअसल वेटलैंड्स वैसे क्षेत्र हैं जहाँ भरपूर नमी पाई जाती है और इसके कई लाभ भी हैं।

वनस्पति विज्ञान के विभागाध्यक्ष डॉ रमेश कुमार ने कहा कि विभाग को इस कार्यक्रम के लिए बधाई दी। उन्होंने कहा कि विभाग और विश्वविद्यालय को समय-समय पर इस तरीके के आयोजन करते रहना चाहिए।

कार्यक्रम में वनस्पति विज्ञान के डॉ. बी. के. दयाल ने वेटलैंड के पारिस्थितिक तंत्र में उपयोगिता पर अपना व्याख्यान दिया। उन्होंने बताया कि आर्द्रभूमि जल को प्रदूषण से मुक्त बनाती है। आर्द्रभूमि वह क्षेत्र है जो वर्ष भर आंशिक रूप से या पूर्णतः जल से भरा रहता है।
भारत में आर्द्रभूमि ठंडे और शुष्क इलाकों से होकर मध्य भारत के कटिबन्धीय मानसूनी इलाकों और दक्षिण के नमी वाले इलाकों तक फैली हुई है।

वनस्पति विज्ञान विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. पंचानन मिश्रा ने वेटलैंड के एक्वेटिक एंड टेरेटेरियल इकोसिस्टम पर अपना विचार व्यक्त किया।

कार्यक्रम का संचालन जंतु विज्ञान विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. बी. बी. मिश्रा ने की। धन्यवाद ज्ञापन माया के अध्यक्ष राहुल यादव ने किया।

इस अवसर पर डॉ. कामेश्वर कुमार, डॉ. अरुण कुमार, डॉ. विमल सागर, डॉ. अबुल फजल, उप कुलसचिव (स्थापना ) डॉ. सुधांशु शेखर, माया के संरक्षक डॉ. अमिताभ, तुरबसु, प्रशांत कुमार, डॉ. राखी भारती, शोधार्थी आनंद कुमार, डेविड कुमार, सौरव कुमार, पूजा आनंद, अशोक केशरी, रविंद्र कुमार, भवानी सिंह आदि उपस्थित थे‌।

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