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  • सफ़ीना को मिलेगा रमन मैग्सेसे पुरस्कार

    भारत के एक विख्यात गैर-सरकारी संस्था* एजुकेट गर्ल्स* ने रमन मैग्सेसे पुरस्कार 2025 जीत कर इतिहास रच दिया है। यह पुरस्कार पाने वाली यह पहली भारतीय संस्था है, जिसे लड़कियों की शिक्षा के लिए किए गए शानदार काम के लिए सम्मानित करने की घोषणा की गई है। राजस्थान की सफीना हुसैन द्वारा स्थापित यह संस्था


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    हेमलता म्हस्के
    समाजसेविका सह साहित्यकार

    भारत के एक विख्यात गैर-सरकारी संस्था* एजुकेट गर्ल्स* ने रमन मैग्सेसे पुरस्कार 2025 जीत कर इतिहास रच दिया है। यह पुरस्कार पाने वाली यह पहली भारतीय संस्था है, जिसे लड़कियों की शिक्षा के लिए किए गए शानदार काम के लिए सम्मानित करने की घोषणा की गई है। राजस्थान की सफीना हुसैन द्वारा स्थापित यह संस्था दूरदराज के गांवों में लड़कियों को स्कूल से जोड़कर उन्हें सशक्त बनाने का काम करती है।
    एशिया का नोबेल अवॉर्ड के नाम से पहचाना जाने वाला रेमन मैग्सेसे अवॉर्ड की घोषणा कल 31 अगस्त को फिलीपींस में की गई है और इस वर्ष 2025 में इस अवॉर्ड के विजेताओं की सूची में शामिल है, भारत में बालिका शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए काम करने वाली “फाउंडेशन टू एजुकेट गर्ल्स ग्लोबली”, जिसको आम तौर पर एजुकेट गर्ल्स के नाम से जाना और पहचाना जाता है।
    इस संस्था को इस वर्ष का रेमन मैग्सेसे अवॉर्ड बालिकाओ को स्कूल से जोड़ने, विद्यार्थियों की बुनियादी शिक्षा को बेहतर बनाने और उनके स्वयंसेवकों के योगदान के लिए देने की घोषणा की गई है। एजुकेट गर्ल्स भारत की पहली ऐसी संस्था है ,जिसको इस अवॉर्ड से सम्मानित किया जाएगा। नहीं तो इसके पहले भारत में विभिन्न क्षेत्रों में बेमिसाल काम करने वाले 50 लोगों को व्यक्तिगत रूप से यह पुरस्कार मिल चुका है।
    वर्ष 2007 में राजस्थान के पाली जिले से बालिका शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए सफीना हुसैन ने इस संस्था की * एजुकेट गर्ल्स* की स्थापना की थी और वर्तमान में गायत्री नायर इसकी मुख्य कार्यकारी अधिकारी हैं। यह संस्था राजस्थान, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और बिहार के ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षा से वंचित बालिकाओं का सर्वे कर के उनको वापस शिक्षा की मुख्य धारा में स्कूल से जोड़ने और किशोरियों और अपनी पढ़ाई बीच में ही छोड़ने वाली महिलाओं को अपने जीवन को सेकंड चांस प्रदान करने के लिए प्रगति कार्यक्रम के माध्यम से स्टेट ओपन स्कूल के साथ मिलकर उनके जीवन कौशल को बढ़ावा देकर विकसित भारत की परिकल्पना के लिए NEET के लिए इस जनसंख्या को मुख्यधारा में लाने के लिए कार्य कर रही है । संस्थापक
    सफ़ीना हुसैन एक भारतीय सामाजिक कार्यकर्ता हैं। उनकी संस्था एक ऐसी गैर-लाभकारी संस्था है, जो भारत के सबसे ग्रामीण और शैक्षिक रूप से चुनौतीपूर्ण क्षेत्रों में लड़कियों को शिक्षा प्रदान करने के लिए समुदायों को संगठित करने के लिए समर्पित है। इसके पहले सफ़ीना हुसैन को प्रतिष्ठित* वाइज *पुरस्कार से सम्मानित किया गया। नई दिल्ली में जन्मी सफ़ीना लंदन स्कूल आफ इकोनॉमिक्स में पढ़ चुकी हैं और मशहूर बॉलीवुड एक्टर युसूफ हुसैन की बेटी और फिल्म निर्माता निर्देशक हंसल मेहता की पत्नी हैं। उनकी संस्था का मुख्यालय मुंबई में है। उन्हें औपचारिक रूप से यह अवार्ड 7 नवंबर को फिलिपींस के मनीला शहर में रैमन मैगसेसे के 67 वें समारोह में दिया जाएगा।
    सफ़ीना द्वारा 2007 में स्थापित, यह संस्था ग्रामीण भारत में स्कूल न जाने वाली लड़कियों की पहचान करती है और उन्हें शिक्षा प्रणाली से जोड़ने में मदद करती है। इसकी शुरुआत राजस्थान में हुई थी और तब से यह बिहार, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में फैल चुकी है। 2024 तक, इस संगठन ने 20 लाख से ज़्यादा लड़कियों को स्कूल में दाखिला दिलाने में मदद की है।

    सफ़ीना कहती हैं कि जब एक लड़की पढ़ती है तो अपने साथ औरों को भी आगे बढ़ती है। यही बदलाव की असली ताकत है। ड्रॉप आउट होने वाली बच्चों की कहानी मुझसे भी जुड़ी है। बचपन में मेरी भी पढ़ाई पूरी करने में कई मुश्किलें आई। परिवार को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता था। वह तो मेरी आंटी का शुक्रिया, जो मुझे अपने घर लंदन ले गई । उनकी वजह से ही मैं पढ़ाई में वापस आ सकी। उन्होंने अपने अभियानों की शुरुआत बताते हुए कहा कि यूनिवर्सिटी स्कूल से दूर रहने वाली लड़कियों को पहचानना, उन्हें सरकारी स्कूलों में एडमिशन दिलाना और स्कूल में उनकी निरंतर उपस्थिति सुनिश्चित करने के अभियान चलाए। हमने राजस्थान में घर-घर दस्तक दी, माता-पिता को समझाया और समाज को जागरूक किया। ग्राम शिक्षा सभाएं और मोहल्ला स्तर पर बैठकें करती रही। इसका असर हुआ। लोग खुद बेटियों को स्कूल लेकर आने लगे। आज तक 20 लाख से ज्यादा लड़कियों का दाखिला स्कूलों में करा चुके हैं। इनका रिटेशन रेट 90 फीसद से ज्यादा है। सफ़ीना कहती हैं कि हमने एशिया में पहली बार ऑडिशंस प्रोजेक्ट के जरिए एप विकसित किया। अब एप जैसी तकनीक से लड़कियों का पता लग रहे हैं। अपने देश में 5% गांव ऐसे हैं, जहां 40% बच्चों का ड्रॉप आउट था। यही हमारे काम का फोकस एरिया बना। अगले 10 साल में एक करोड़ बच्चों की स्कूल तक पहुंचाने का लक्ष्य है। हम उन लड़कियों को चुनते हैं जो अपने अलावा दूसरी लड़कियों को भी हर स्तर पर दिशा दे सके और हमारे आंदोलन से जोड़ सके। यह काम बाल सभा करती है। हमारा नारा है * मेरी समस्या, मेरा गांव और मैं ही समाधान।*

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