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आकाश में काले मेघ हैं और रूक- रूक कर बारिश हो रही है। बारिश के कारण ठंड बढ़ी है, लेकिन बिहार की राजनीति गर्म है। मोकामा में दुलारचंद यादव की हत्या कर दी गई। कहां जा रहा है कि पहले ठेहुने पर गोली मारी गई और फिर उन पर कार चढ़ाई गई। हत्या का आरोप कुख्यात जदयू उम्मीदवार अनंत सिंह पर है और कहा तो यह भी जा रहा है कि खुद अनंत सिंह ने ही दुलारचंद यादव को गाड़ी से खींचा और तब उन पर कार चढ़ाई गई। हत्या की जांच तो पुलिस करेगी, लेकिन सच्चाई सामने आने की संभावना न के बराबर है। चुनाव आयोग भी चुप रहेगा और यह पता करना भी जरूरी नहीं समझेगा कि अनंत सिंह के समर्थन में प्रचार करने जा रही चालीस गाड़ियों के काफिले को इजाजत किसने दी। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पार्टी अनंत सिंह को टिकट देकर गौरवान्वित होती है। दूसरी तरफ कुख्यात सूरजभान सिंह की पत्नी को राजद ने टिकट दिया है। राजद के नेता तेजस्वी यादव मोकामा में कलम बांट कर यह संदेश दे रहे हैं कि क्राइम को बर्दाश्त नहीं किया जायेगा, तो सवाल है कि उन्होंने कई सीट से आपराधिक छवि के लोगों को टिकट क्यों दिया? गृहमंत्री अमित शाह भी लफ्फाजी कर रहे हैं और कह रहे हैं कि राजद ने शाहबुद्दीन के बेटे को टिकट देकर साबित कर दिया है कि राजद को क्राइम से प्यार है। वे अधूरी बात कह रहे हैं। वे अपनी समर्थक पार्टियों और अपनी पार्टी के अपराधियों का जिक्र तक नहीं करते। दरअसल किसी पार्टी में आज यह हिम्मत नहीं है कि बिहार में अपराधियों के बिना वह चुनाव लड़ सके। पहली बार नीतीश कुमार जब मुख्यमंत्री बने थे तो सभी अपराधी एम एल ए ने उनका समर्थन किया था और वे अपराधियों को हाथ जोड़ रहे थे। कानून में परिवर्तन कर आखिर नीतीश कुमार ने ही आनंद मोहन को जेल से रिहा करवाया।
विधानसभा में जब अपराधी कानून बनाने बैठेगा तो भला किसका होगा। बेहतर होता कि जनता ऐसे अपराधियों को वोट नहीं करती, लेकिन ऐसा होगा नहीं। डर से, जाति के नाम पर , पैसा लेकर जनता भी वोट करेगी। जनतंत्र को गुंडातंत्र, धनतंत्र, जाततंत्र आदि ने अपह्रत कर लिया है। चुनाव आयोग 2014 से ही मेरे ऊपर आचार संहिता का मुकदमा चला रहा है। मुकदमा क्या है? किसी ने मेरे नाम से बरियारपुर में एक पोस्टर लगा दिया था और चुनाव घोषणा के बाद उसे उतारा नही गया। यह मुकदमा पंद्रह वर्षों से मुंगेर कोर्ट में चल रहा है। तारीख आती है। मैं या मेरा वकील हाजिरी लगा देता है। अनंत सिंह पर आचार संहिता उल्लंघन का कोई मुकदमा नहीं होगा। सैंया भये कोतवाल, अब डर काहे का। दुलारचंद यादव कभी लालू प्रसाद के साथ रहे, कभी नीतीश कुमार के साथ। आजकल प्रशांत किशोर के साथ हैं। उनके उम्मीदवार के प्रचार में लगे थे। उम्मीदवार धानुक समुदाय का है। उम्मीदवार पर भी हमला हुआ था। अब कुछ लोग इस घटना को ऐसे पेंट कर रहे हैं कि एक यादव ने धानुक को बचाने के लिए अपनी कुर्बानी दे दी। मुझे लगता है कि तात्कालिक लाभ के लिए किसी भी दुर्घटना का सरलीकरण नहीं करना चाहिए। जो भी अपराधी हैं, चाहे वे जिस भी जाति या पार्टी के हों, उसकी आलोचना होनी चाहिए। समाज एक विचित्र मोड़ पर खड़ा है। आम जनता को पकड़ कर जेल में डालना हो तो बहत्तर बहाने पुलिस के पास है और जब अपराधी को पकड़ना हो तो कानून के लंबे हाथ बौने हो जाते हैं। अपराध क्रमशः बढ़ता जायेगा, अगर विधानसभा और संसद में अपराधियों को जाने से नहीं रोका जायेगा।
(लेखक डॉ योगेन्द्र तिलकामांझी विश्वविद्यालय भागलपुर के स्नातकोत्तर हिंदी विभाग के विभागाध्यक्ष रहे हैं।)