नई दिल्ली@हेमलता म्हस्के
वरिष्ठ पत्रकार और समाज कर्मी प्रसून लतांत पत्रकारिता के प्रख्यात शिक्षक और लेखक डा देवेंदर कौर उप्पल स्मृति पत्रकारिता सम्मान से सम्मानित किए गए हैं। डा उप्पल का पत्रकारिता की शिक्षण प्रक्रिया को दुरुस्त करने में स्मरणीय योगदान रहा है। प्रसून लतांत को नई दिल्ली स्थित गांधी शांति प्रतिष्ठान में विन्यास प्रकाशन द्वारा कवि घनश्याम की याद में आयोजित एक समारोह में सम्मानित किया गया। इनके साथ प्रख्यात शायर दीक्षित दनकौरी,मुकेश तिवारी और योगेंद्र आनंद भी सम्मानित किए गए।
कौन है प्रसून लतांत
बिहार के भागलपुर में जन्में फिर वहीं से पढ़े लिखे। गांधी विचार में एम ए करने के बाद पत्रकारिता में सक्रिय हुए। अब पत्रकारिता के साथ समाज सेवा भी कर रहे हैं। वे इन दिनों पूरे देश में विधवा प्रथा विरोधी आंदोलन को गति देने में लगे हैं। इसी के साथ पिछले एक दशक से दिल्ली में गांधी हिंदुस्तानी साहित्य सभा और विष्णु प्रभाकर प्रतिष्ठान के साझे प्रयास से संचालित की जा रही सन्निधि संगोष्ठी के संयोजक मंडल के सदस्य हैं ।
सन्निधि संगोष्ठी हरेक महीने विभिन्न विधाओं में लेखन करने वाले युवा साहित्यकारों को मंच देती है और साल में दो बार काका साहब कालेलकर और विष्णु प्रभाकर की स्मृति में साहित्य के साथ समाजसेवा, कला, पत्रकारिता, शिक्षा, महिला सशक्तिकरण के क्षेत्र में युवा हस्तियों को सम्मानित करती है। चयन राष्ट्रीय स्तर पर होता आया है।
प्रसून लतांत राष्ट्रीय दैनिक जनसत्ता में 25 साल तक कार्यरत रहे। वे जनसत्ता के लिए शिमला, चंडीगढ़, हरियाणा और दिल्ली में पत्रकारिता करते रहे। इसके बाद भारत सरकार के प्रकाशन विभाग की पत्रिकाओं योजना और आजकल के संपादन विभाग में दो साल तक कार्यरत रहे। जनसत्ता में जाने के पहले गांधी शांति प्रतिष्ठान की पत्रिका गांधी मार्ग में सहायक संपादक रहे। गांधी मार्ग से पहले भागलपुर बिहार में नई बात दैनिक अखबार में पांच साल तक कार्यरत रहे। महत्मा गांधी की कुटिया सेवाग्राम ने एक साल रहकर गांधी साहित्य का अध्ययन और लेखन किया। इनकी पत्रकारिता महात्मा फुले, गांधी, आंबेडकर के विचारों पर केंद्रित गतिविधियों सहित हाशिए पर पड़े समुदायों के हितों और विभिन्न जायज मुद्दों पर होने वाले आंदोलन के साथ संस्कृति, समाज सेवा , पर्यावरण ,साहित्य और बच्चों की परिस्थितियों पर रही है।
प्रसून लतांत की सार्वजनिक जीवन की शुरुआत बिहार में 1974 के छात्र आंदोलन से हुई। उसके बाद से अभी तक सक्रिय हैं। इन्होंने बस्तर के जंगलों में आदिवासियों को सशक्त बनाने के अभियान में भाग लिया। चंडीगढ़ की मजदूर बस्तियों के पुनर्वास के लिए और हिमाचल में महिला शिक्षा के लिए चले विभिन्न आंदोलनों में सक्रिय रहे। इसी के साथ भागलपुर में अंग मदद फाउंडेशन और पुणे में सावित्रीबाई सेवा फाउंडेशन की स्थापना कर खास कर महिलाओं और बुजुर्गों के लिए विभिन्न कार्यक्रमों का संचालन करते आ रहे हैं। मातृभाषा अंगिका को मान सम्मान दिलाने के लिए आज भी संघर्ष कर रहे हैं।
पिछले चालीस सालों में दर्जनों सम्मान और पुरुस्कार से भी नवाजे जा चुके हैं। इनमें गांधी शांति प्रतिष्ठान, केंद्रीय गांधी स्मारक निधि, हिमाचल सरकार, चंडीगढ़ प्रकाशन के प्रमुख हैं।