मधुर मिलन नायक, नारायणपुर (भागलपुर)। वैश्विक जलवायु परिवर्तन का असर अब बिहार की जैवविविधता पर भी साफ दिखाई देने लगा है। सामान्यत: अक्टूबर के मध्य में दिखने वाले प्रवासी पक्षी इस बार अगस्त के अंतिम सप्ताह और सितंबर के पहले हफ्ते में ही राज्य के जलाशयों, तालाबों और गंगा–कोसी नदी किनारे नजर आने लगे हैं।
विशेषज्ञ मानते हैं कि यह कठोर ठंड के संकेत के साथ-साथ इस बात का भी द्योतक है कि अब बिहार के जलाशय और नमभूमियां पहले से अधिक अनुकूल हो रहे हैं।
बिहार में समय पूर्व पहुंचे ये प्रमुख प्रवासी पक्षी
- ग्रे-हेडेड लैपविंग – पूर्व एशिया (चीन, जापान, कोरिया) से
- कॉटन पिग्मी गीज़ – भारत, बांग्लादेश, श्रीलंका, नेपाल, म्यांमार (कोसी नदी कैचमेंट से प्रवेश)
- ऑस्प्रे (मछलीमार चील) – उत्तरी यूरोप, रूस और मध्य एशिया से
- लिटिल रिंग प्लोवर, लिटिल स्टिंट, कॉमन सैंडपाइपर – मध्य एशिया (कज़ाख़स्तान, उज़्बेकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान, किर्गिज़स्तान, ताजिकिस्तान)
- ब्लैक नेक्ड आइबिस, ग्लॉसी आइबिस – दक्षिण एशिया/अफ्रीका से
- रेड-नेक्ड फाल्कन – मध्य एशिया से
- स्टार्क-बिल्ड किंगफिशर – दक्षिण-पूर्व एशिया (म्यांमार से लेकर इंडोनेशिया तक)
- वाइट वैगटेल – उत्तरी एशिया (रूस, मंगोलिया, कजाकिस्तान)
- चैता बत्तख – उत्तर यूरोप और रूस से, सामान्यत: अक्टूबर में आगमन होता है
आमतौर पर ये पक्षी अक्टूबर के मध्य में आते हैं, लेकिन इस वर्ष सितंबर में ही बड़ी संख्या में स्थानीय जलाशयों में दिखे हैं।
विशेषज्ञों की राय
भारतीय पक्षी विज्ञान नेटवर्क से जुड़े विशेषज्ञों का कहना है कि —

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- यह कठोर ठंड का संकेत है।
- मानसून के बाद जलाशयों में पर्याप्त पानी भरने से प्रवासी पक्षियों के लिए माहौल अनुकूल हुआ है।
- मौसम चक्र में बदलाव वैश्विक जलवायु परिवर्तन का प्रत्यक्ष असर है।
“प्रवासी पक्षियों का समय पूर्व आगमन प्रकृति की चेतावनी”
गंगा प्रहरी प्रकृति संरक्षण सोसायटी के संस्थापक पर्यावरणविद ज्ञान चन्द्र ज्ञानी ने कहा:
“प्रवासी पक्षियों का समय से पहले आना वैश्विक जलवायु परिवर्तन की चेतावनी है और बिहार के लिए सुखद संकेत भी है। यह हमें बताता है कि अगर हम अपने तालाबों, नदियों और जंगलों को बचाएंगे तो न केवल प्रवासी पक्षी, बल्कि हमारी स्थानीय जैवविविधता भी समृद्ध होगी।”
उन्होंने आगे कहा कि प्रवासी पक्षियों की सुरक्षा के लिए —
- शिकारी गतिविधियों पर रोक,
- जलाशयों का संरक्षण,
- और स्थानीय समुदाय की भागीदारी बेहद जरूरी है।
विशेषज्ञ मानते हैं कि अगर समय रहते ठोस कदम उठाए गए तो आने वाले वर्षों में बिहार प्रवासी पक्षियों का और भी बड़ा आकर्षण केंद्र बन सकता है।
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