मधेपुरा/प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरिय विश्वविद्यालय मधेपुरा के तत्वधान में विश्व शांति, सदभावना एवं भाईचारा विषय पर आज स्थानीय ओम शांति केंद्र के सभागार में भव्य स्नेह मिलन समारोह का आयोजन किया गया।
यह सार्वजनिक कार्यक्रम ब्रह्माकुमारीज संस्थान के साकार संस्थापक प्रजापिता ब्रह्मा बाबा के 54 वे पुण्य तिथि के अवसर पर उनके द्वारा वैश्विक शांति, अमन और एकता हेतु की गई त्याग, तप और सेवाओं की स्मृति में आयोजित किया गया।
इस अवसर पर ब्रह्माकुमारी संस्थान के मधेपुरा सेवा केंद्र प्रभारी रंजू दीदी सहित सभी अतिथियों ने संगठित रूप में फूलमाला द्वारा श्रद्धा सुमन अर्पित करके और दीपप्रज्वलन करके कार्यक्रम को शुभारंभ किया।
ब्रह्माकुमारी संस्थान के स्थानीय सेवा केन्द्र प्रभारी राजयोगिनी ब्रह्माकुमारी रंजू दीदी जी ने अपने उदबोधन देते हुए कहा कि पिताश्री ब्रह्मा बाबा का दैहिक जन्म हैदराबाद सिंध में एक साधारण परिवार में हुआ था। उनका शारीरिक नाम दादा लेखराज था ।उनके अलौकिक पिता निकट के गांव में एक स्कूल के मुख्य प्रध्यापक थे ।दादा लेखराज अपनी विशेष बौद्धिक प्रतिभा, व्यापारिक कुशलता, व्यवसायिक शिष्टता, अथक परिश्रम, श्रेष्ठ स्वभाव एवं जवाहरात की अचूक परख के बल पर सफल प्रसिद्ध जवाहरी बने। उनका मुख्य विशेषता व्यापार में पक्के थे।
कहा बिपुल धन, संपत्ति औऱ मान प्रतिष्ठा पाकर भी उनके स्वभाव में नम्रता, मधुरता औऱ परोपकार के भावना बानी रहीं। उन्होंने किसी भी परिस्थिति में, किसी भी प्रलोभन के बस अपनी भक्ति ,भावना और धार्मिक नियमों को नहीं छोड़ा। वे प्रभावशाली व्यक्तित्व और मधुर स्वभाव ,राजकुलोचित व्यवहार, शिष्ठ मधुर स्वभाव और उज्जवल चरित्र के कारण उनका उच्च प्रतिष्ठा था ।दादा लेखराज स्वभाव से ही उदार चित और दानी थे।
रंजू दीदी ने कहा कि ब्रह्माकुमारी संस्था में जुड़े जुड़े हुए संपूर्ण अनुवाईयों के लिए जनवरी माह बहुत ही महत्वपूर्ण मना जाता हैं।जो सभी के लिए अंतर्मुखी एकांतवासी बनने का समय होता है ।यह समय कुछ प्रेरणा देकर जाता है और वरदान देकर चला जाता है। जो योगी इस समय का पूर्ण लाभ उठाते हैं ।वह स्मृति स्वरूप होकर कर्मातीत स्थिति की ओर बढ़ जाते हैं।
मुख्य अतिथि डा भूपेन्द्र नारायण मधेपुरी जी ने कहा कि ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय में दी जाने वाली शिक्षा हम सभी को शान्ति प्रदान करता हैं।अभी लोग शरीर पर तो ध्यान देते हैं लेकिन इस शरीर को चलाने वाली आत्मा को बलिष्ठ और विकसित करने पर ध्यान नहीं देते। आत्मा को शक्तिशाली करने का उपाय राजयोग ,ध्यान का अभ्यास ही है ।