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लोकार्पण समारोह सह पुस्तक परिचर्चा आयोजन

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मधेपुरा/ टी. पी. कॉलेज, मधेपुरा में सोमवार को डॉ. विभीषण कुमार द्वारा लिखित आलोचनात्मक पुस्तक हिन्दी नाटकों में दलित अस्मिता का लोकार्पण समारोह सह पुस्तक परिचर्चा का आयोजन किया गया।

कार्यक्रम के प्रारंभ में लेखक डॉ. विभीषण कुमार ने अपनी पुस्तक की पृष्ठभूमि बताई। उन्होंने कहा कि यह पुस्तक मेरी व्यक्तिगत यात्रा तथा समाज के प्रति मेरी प्रतिबद्धता का सजीव परिणाम है। नाटक साहित्य की ऐसी विधा है जो अत्यंत प्रभावशाली है। यह न केवल शिक्षित वर्ग को, बल्कि अशिक्षित जनसमूह को भी प्रभावित करने की अद्भुत क्षमता रखती है।

उन्होंने बताया कि हिंदी नाटकों में दलित अस्मिता की प्रस्तुति को लेकर गंभीर और आलोचनात्मक विश्लेषण की आवश्यकता लंबे समय से महसूस की जा रही थी, यही प्रयास इस कृति के माध्यम से किया गया है। इस पुस्तक में एक ओर जहाँ दलित अस्मिता, अर्थात् पहचान के बोध से जुड़ी विचारधारा को स्पष्ट किया गया है, वहीं दूसरी ओर दलित नाटकों के स्वरूप और उनकी विशेषताओं को भी रेखांकित किया गया है।

मुख्य वक्ता पी. जी. सेन्टर, सहरसा के एसोसिएट प्रोफेसर (हिंदी) डॉ. सिद्धेश्वर काश्यप ने कहा कि पुस्तक लोकार्पण का क्षण बेहद महत्वपूर्ण है। लेखक सामान्य परिवार से संबंध रखते हैं, लेकिन उनमें नवोन्मेष है।

उन्होंने कहा कि हिदी नाटकों में दलित अस्मिता विभीषण जी की सद्य:प्रकाशित पुस्तक है जिसमें दलित अस्मिता की अवधारणाओं के सामाजिक, राजनीतिक, धार्मिक सांस्कृतिक आयामों के उद्घाटन का उपक्रम है।

उन्होंने कहा कि दलित अस्मिताई नाटकों में सहानुभूति की अपेक्षा स्वानुभूति की प्रधानता का रेखांकन किया गया है। दलित नाटकों में दलित की अस्मिता, स्वत्व, संस्कृति, स्वतंत्रता, समता, और जिजीविषा का नवीन, तटस्थ नवोन्मेषपूर्ण सोदहारण मूल्यांकन किया गया है. यह आलोचनात्मक मौलिक कृति है।

कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए रमेश झा महिला कॉलेज, सहरसा की प्रधानाचार्य प्रो. (डॉ.) उषा सिन्हा ने कहा कि इस पुस्तक में दलित नाटकों की जो समीक्षा की है, उसमें कहीं भी आक्रोशि नहीं हुआ है। भाषा बिल्कुल सधी हुई है। इस पुस्तक में कोर्ट मार्शल, कबीरा खड़ा बाज़ार में, जमारदानी आदि महत्वपूर्ण नाटकों को इसमें समाहित किया गया है।

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उन्होंने कहा कि लेखक ने बिल्कुल सधी हुई भाषा में पूरी परिपक्वता के साथ इन्होंने नाटकों का विवेचन-विश्लेषण किया है। वास्तव में इस तरह के कार्यक्रम से छात्रों और शोधार्थियों को प्रेरणा लेने की जरूरत है। इन्होंने काफी लगन और मेहनत से इस पुस्तक लेखन के कार्य को सम्पादित किया है।

इस अवसर पर मुख्य अतिथि महाविद्यालय के प्रधानाचार्य प्रो. कैलाश प्रसाद यादव ने कहा कि आज के दौर में नाटकों पर लेखन महत्वपूर्ण कार्य है। मोबाइल में यूट्यूब वीडियो और सिनेमा के दौर में नाटक पर कम कार्य हो रहा है, लेकिन ऐसे नाटकों का मंचन सामाज को एक नयी दिशा प्रदान करेगी।

कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि विश्वविद्यालय हिंदी विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रो. विनय कुमार चौधरी ने कहा कि आज का यह पल आशीर्वाद देने का पल है, पुस्तकों के अध्ययनोपरांत इस पर विशेष चर्चा की जाएगी। इन्होंने अपने अध्ययन के दम पर नई उँचाई को प्रदान किया है।

अंग्रेजी विभागाध्यक्ष डॉ. विश्वनाथ विवेका ने कहा कि इस पुस्तक के माध्यम से यह साबित हुआ है कि विश्वविद्यालय में आज भी गुणवत्तापूर्ण शोध हो रहा है। मणि भूषण वर्मा ने कहा, दलित नाटक पर यह पहली आलोचनात्मक पुस्तक है। नाटक का विकास ही दलित मंच से हुआ है। दरिद नाटकों को सबसे ज्यादा क्षति टेलीविजन और सिनेमा से हुआ है। यह पुस्तक इनकी मेहनत और इनकी योग्यता को साबित करती है।

सहायक प्राध्यापक श्री मुन्ना कुमार ने कहा यह पुस्तक समसामयिक मुद्दों पर लिखी पुस्तक है। यह पुस्तक उन चीजों की पड़ताल करता है कि जिन लेखकों ने दलित विषय पर नाटकों के माध्यम से विचार रखते हैं वह कहां तक सही है।

कबीर दर्शन के संत अभय साहब (कहलगांव) ने कहा कि साहित्य जगत में बुद्धि के उच्चतम स्तर को प्रज्ञा कहते हैं। विभीषण की आने वाले समय में प्रतिभा केबल पर कारण बनने की क्षमता रखते हैं।
कार्यक्रम का संचालन पी. जी. सेन्टर, सहरसा में असिस्टेंट प्रोफेसर (हिंदी) डॉ. श्रीमंत जैनेन्द्र ने किया। धन्यवाद ज्ञापन दर्शनशास्त्र विभागाध्यक्ष डॉ. सुधांशु शेखर ने किया।

कार्यक्रम के अंत में डाॅ. रामटहल की निर्मम हत्या पर दो मिनट का मौन रखकर उन्हें श्रद्धांजलि दी गयी। मौके पर समाजशास्त्र विभागाध्यक्ष राणा सुनील कुमार सिंह, साहित्यकार सियाराम मयंक, डाॅ. सदय कुमार, संजीव सुमन, डॉ. रंजन कुमार, डाॅ. सारंग तनय, मनोज विद्यासागर, डॉ. माधव कुमार, डाॅ. रूपेश कुमार, डॉ. ललन कुमार, डॉ. अमर कुमार, डाॅ. लालकुन कुमार, अमित आनंद, चंदन कुमार, अमरदीप, अनिल, सुशील, प्रमेश, अनिल, मनीष, निक्की, नन्हीं, रोशनी, स्मृति, सूरज और राजा आदि शिक्षक, शोधार्थी और छात्र मौजूद थे।

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