Deprecated: Function WP_Dependencies->add_data() was called with an argument that is deprecated since version 6.9.0! IE conditional comments are ignored by all supported browsers. in /home/kositimes/web/kositimes.com/public_html/wp-includes/functions.php on line 6131
साम्प्रदायिक सौहार्द,सामाजिक समरसता तथा गरिमा पूर्ण सभ्यता एवं संस्कृति का भी परिचायक है बाबा विशु मेला - Kosi Times
  • Others
  • साम्प्रदायिक सौहार्द,सामाजिक समरसता तथा गरिमा पूर्ण सभ्यता एवं संस्कृति का भी परिचायक है बाबा विशु मेला

    चौसा प्रखंड मुख्यालय से आठ किलोमीटर दक्षिण पचरासी स्थल पर अवस्थित लोक देवता बाबा विशु राउत मंदिर न केवल अपने धार्मिक महत्व के कारण सैकड़ों वर्षो से जाना जाता है,बल्कि साम्प्रदायिक सौहार्द,सामाजिक समरसता तथा गरिमा पूर्ण सभ्यता एवं संस्कृति का भी परिचायक है। प्रत्येक सोमवार एवं शुक्रवार को वैरागन मेला में श्रद्धा एवं भक्ति के


    728 x 90 Advertisement
    728 x 90 Advertisement
    300 x 250 Advertisement
    ✍️संजय कुमार सुमन,साहित्यकार

    चौसा प्रखंड मुख्यालय से आठ किलोमीटर दक्षिण पचरासी स्थल पर अवस्थित लोक देवता बाबा विशु राउत मंदिर न केवल अपने धार्मिक महत्व के कारण सैकड़ों वर्षो से जाना जाता है,बल्कि साम्प्रदायिक सौहार्द,सामाजिक समरसता तथा गरिमा पूर्ण सभ्यता एवं संस्कृति का भी परिचायक है। प्रत्येक सोमवार एवं शुक्रवार को वैरागन मेला में श्रद्धा एवं भक्ति के साथ यहां दुधाभिषेक किया जाता है। प्रत्येक वर्ष मेष सतुआ` सक्रांति के अवसर पर 14 अप्रैल से पांच दिवसीय विशाल मेले का आयोजन किया जाता है। मेले में विभिन्न राज्यों एवं जिलों से आये पशुपालक भक्तो द्वारा बाबा विशु राउत की प्रतिमा पर दुधाभिषेक किया जाता है। पशुपालक भक्तों द्वारा चढ़ाये गये दूध की यहां सरिता बहती है।
    प्रचलित किंवदंतियों के अनुसार बाबा विशु भागलपुर जिले के सबौर में बालजीत गोप के घर विशु राउत का जन्म हुआ।13 वर्ष की उम्र में ही पिता के निधन के बाद घर की जिम्मेवारी आ गई और वे गाय चड़ाने लगे। चैत माह में चारा नहीं मिलने पर वे काफी परेशान होने लगे। उसी समय अपनी पांच रास गाय को लेकर गंगा पार करके चौसा के लौआलगान के वीचन वन में अपना बथान स्थापित किया जो बाद में ‘पचरासी स्थल’ के नाम से चर्चित हुआ।
    कालांतर में बाबा विशु कुल देवी गहैली माता का स्मरण करते हुए अपने प्राण त्याग दिये। उसी समय नब्बे लाख गायें डकारती हुई विशु के पार्थिव शरीर के पास पहुंची और उनके शव को चारों आकर से घेर लिया। सभी गायें अपने स्तनों से दूध की अविरल धारा बहाने लगी,जो नदी की धारा में परिवर्तित हो गयी।कहते हैं कि विशु का शव दूध की धारा में विलीन हो गया। वहां के ग्रामीणों तथा चरवाहों ने मिलकर एक मंदिर का निर्माण किया और पूजा-अर्चना तथा दूध अर्पित करने लगे। बाबा विशु के प्रति भक्तों में आज भी वही आस्था है जो वर्षों पूर्व में थी। बिहार के अलावा उत्तर प्रदेश,पश्चिम बंगाल और नेपाल के इलाके से भक्तजन कच्चा दूध बाबा की समाधि पर प्रतिवर्ष चढ़ाने आया करते हैं।


    चरवाहा विद्यालय खोलने का श्रेय है पचरासी
    इस मेले को राष्ट्रीय फलक पर पहचान दिलाने व राष्ट्रीय स्तर के मीडिया की नजरों में लाने का पहला श्रेय तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद को जाता है।उनका 15अप्रैल 1991 को तत्कालीन लघु हस्तकरघा मंत्री(बिहार सरकार) वीरेंद्र कुमार सिंह के आग्रह पर यहाँ ऐतिहासिक आगमन हुआ।इस धूल-धुसरित पिछड़े इलाके में मुख्यमंत्री का उड़नखटोला उतरना उस समय एक मायने रखता था। मजे की बात तो यह कि खुद लालू प्रसाद भी यहाँ बहने वाले दूध की नदी को देख आश्चर्यचकित रह गये। उसी समय उनकी पैनी नजर यहाँ बोर्ड में लिखे शब्दों पर पड़ा “चरवाहा संघ।”
    अनायास ही उसने पूछ डाला कि ये चरवाहा संघ क्या होता है? उद्देश्य को जान श्री लालू प्रसाद के दिल में भी इस स्थल के प्रति दिलचस्पी बढ़ सी गई और उनके मन में भी कुछ नये विचार तत्काल ही पनप सा गया।पूरे भारत में पहला “चरवाहा संघ” को यहाँ चलते देख उन्होंने पटना लौटते ही, बिहार के चरवाहों के बच्चों को पढ़ने के लिये *चरवाहा विद्यालय* की स्थापना करने की घोषणा कर दिया। चरवाहा विद्यालय भले ही अपने शैशवकाल में ही अकाल मृत्यु का शिकार हो गया, परन्तु पचरासी स्थल की प्रसिद्धि, यहाँ की जानकारी के बारे में तब तक सारी दुनिया रूबरू हो चुकी थी।
    दर्जनों नेताओं का हुआ अब तक आगमन
    16अप्रैल 1992 को पुनः तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद अपने पीछे ढ़ेर सारी मीडिया की फौज को लेकर यहाँ तक पहुँचे।16अप्रैल 1994 को फिर तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद, शिक्षा मंत्री जयप्रकाश नारायण, सांसद रंजन प्र० यादव का आगमन हुआ।शायद तब तक यह चरवाहाधाम पचरासी पूरे भारत में अपना पहचान बना बैठा था। फिर तो राजनेताओं, विभिन्न मीडिया हस्तियों तथा शोधार्थियों का यहाँ आने का सिलसिला सा चल पड़ा।लालू प्रसाद के बाद 16अप्रैल 1997 को पूर्णियां के तत्कालीन सांसद राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव, राजद संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष डा० रमेन्द्र कुमार रवि,15अप्रैल 2007को तत्कालीन मुख्यमंत्री नितीश कुमार, पर्यटन एवं पथ निर्माण मंत्री नन्दकिशोर यादव, उर्जा मंत्री बिजेन्द्र नारायण यादव, पंचायती राज मंत्री नरेन्द्र नारायण यादव,रूपौली विधायक बीमा भारती, रेणु कुमारी कुशवाहा, नरेन्द्र कुमार नीरज उर्फ गोपाल मंडल, भागलपुर जिला परिषद अध्यक्ष सबिता देवी,2022 में सिंहेश्वर विधायक चन्द्रहास चौपाल,2023 में शिक्षा मंत्री प्रो चन्द्रशेखर का पदार्पण हुआ।
    मुख्यमंत्री नितीश कुमार भी अपनी झोली में ढेर सारी सौगातें इस क्षेत्र की जनता के लिये लाये थे। वैसा सौगात जो इस क्षेत्र की जनता का चिरप्रतीक्षित मांग भी था।उस समय मुख्यमंत्री ने कहा कि,इस स्थल को गर बिहार सरकार पर्यटन स्थल का दर्जा नहीं दिलवाती है तो लाखों पशुपालक श्रद्धालुओं के आस्था को ठेस पहुँचेगी।मुख्यमंत्री नितीश कुमार द्वारा कोसी पर बने पुल का शिलान्यास कर उसका नाम *बाबा विशुराउत सेतू*रखा गया और पचरासी स्थल में *राजकीय मेला* का दर्जा दिया । जो कि निश्चित रूप से बाबा विशुराउत के नाम को और भी प्रसिद्धि दिलाने में महती भूमिका निभा रहा है।


    लोगों की आस्था है अपार
    भक्तजन दूर दराज से घंटों यात्रा कर बाबा का दुधाभिषेक करने आते हैं। लोगों की इस जगह को लेकर अपार आस्था है। यही कारण हैॅ कि यहां पशुपालक और अन्य श्रद्धालुओं की भीड़ लगी रहती है। बाबा को कच्चा दुध ही चढ़ाया जाता है। आश्चर्य की बात है चढ़ाने वाला दूध गर्मी के मौसम में भी नही फटता है। चाहे मंदिर तक आने में कितने दिन क्यों ना गुजर जायें।


    स्थानीय लोगों को है कसक
    इस जगह की दयनीय स्थिति को देखकर स्थानीय लोगों के मन में कसक है। मेला आयोजन समिति से जुड़े शंभू प्रसाद सिंह,प्रमोद यादव,सुनील अमृतांशु,बेचन यादव कहते हैं कि नेताओं के झूठे आश्वासन और प्रशासनिक उदासीनता ने इस जगह के सौंदर्यीकरण के उनके सपने को उजाड़कर रख दिया है। सचिव कैलाश यादव बताते हैं कि बाबा विशु के प्रताप से कई नेता का बेड़ा पार हुआ लेकिन बाबा के मंदिर को सब भूल गये। प्रशासनिक उपेक्षा के कारण भी इस परिसर का विकास कार्य नही हुआ। जबकि मेला सर्वोच्च समिति के रामदेव सिंह,मुर्शीद आलम कहते हैं कि अभी यहां आम लोगों के प्रयास से ही मंदिर बन रहा है। मंदिर के आय से ही भव्य मंदिर का निर्माण किया जा रहा है।

    728 x 90 Advertisement
    728 x 90 Advertisement
    300 x 250 Advertisement

    प्रतिमाह ₹.199/ - सहयोग कर कोसी टाइम्स को आजद रखिये. हम आजाद है तो आवाज भी बुलंद और आजाद रहेगी . सारथी बनिए और हमें रफ़्तार दीजिए। सदस्यता लेने के लिए Support Us बटन पर क्लिक करें।

    Support us

    ये आर्टिकल आपको कैसा लगा ? क्या आप अपनी कोई प्रतिक्रिया देना चाहेंगे ? आपका सुझाव और प्रतिक्रिया हमारे लिए महत्वपूर्ण है।