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लोक संस्कृति का महापर्व 'छठ' - Kosi Times
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  • लोक संस्कृति का महापर्व ‘छठ’

      भारतीय संस्कृति में हर ऋतु में कोई न कोई पर्व आता है। ऋतु परिवर्तन को मनाने के लिए व्रत, पर्व और त्योहारों की एक शृंखला लोक जीवन को निरंतर आबद्ध किए हुए हैं। भारतीय संस्कृति की पहली विशेषता है ‘सर्वेभवंतु सुखिन:, अर्थात सभी सुखी हों। दूसरी विशेषता है ‘आनो भद्रा कतयो यंतु विश्वत:, अर्थात


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    Sanjay kr suman
    ✍️संजय कुमार सुमन

    भारतीय संस्कृति में हर ऋतु में कोई न कोई पर्व आता है। ऋतु परिवर्तन को मनाने के लिए व्रत, पर्व और त्योहारों की एक शृंखला लोक जीवन को निरंतर आबद्ध किए हुए हैं।
    भारतीय संस्कृति की पहली विशेषता है ‘सर्वेभवंतु सुखिन:, अर्थात सभी सुखी हों। दूसरी विशेषता है ‘आनो भद्रा कतयो यंतु विश्वत:, अर्थात जो श्रेष्ठ हो, कल्याणमय, ज्ञान और कर्म चारों ओर से हमारे पास आएं। तीसरी विशेषता यह है कि भारतीय संस्कृति उत्सव अनुगामिनी है। साथ ही विश्व में सबसे पुरातन है। भारतीय जीवन पर्वो के माध्यम से अपनी संस्कृति को जीवंत बनाए है। ये पर्व सच्चे अर्थो में भारतीय संस्कृति के रसायन हैं। सभी पर्वो के अपने-अपने उद्देश्य हैं। इन्ही विशेषताओं में एक है लोक संस्कृति का महापर्व “छठ”।इसे सूर्योपासना का महापर्व भी कहते हैं।
    यह छठ पर्व विदेश में भी भारतीय संस्कृति की अपनी छाप छोड़ने में कामयाब रही है। वहां रहने वाले भारतीय प्रवासी इन त्यौहारों का जमकर लुत्फ उठाते हैं। दिवाली की रौनक के छह दिन बाद हर साल छठ का पर्व दस्तक देता है।

    यह पर्व बिहारवासियों के लिए खास महत्व रखता है। यूपी, बिहार, पूर्वांचल, झारखण्ड और नेपाल के कई हिस्सों में मनाया जाने वाला यह लोकपर्व आज महापर्व का रूप ले चुका है। इस महापर्व को पवित्रता, निष्ठा, भक्ति और श्रद्धा के साथ ही सूर्य की उपासना और अराधना का प्रतीक माना जाता है। चार दिन तक चलने वाले इस त्यौहार में महिलाएं 36 घंटे का उपवास रखती हैं और अपने पति और पुत्र के लिए दीर्घायु की कामना करती हैं।

    इस पर्व को राजनीति से जुड़े हुए लोग भी पूरे रीति-रिवाज के साथ मनाते हैं। लालू प्रसाद यादव उन राजनितिज्ञों में प्रमुख हैं, जो इस पर्व को हर साल एक शानदार तरीके से मनाते आ रहे हैं। छठ पर्व की महिमा अपार है। सुख-स्मृद्धि तथा मनोकामना पूर्ति के लिए इस त्यौहार को सभी स्त्री और पुरुष समान रूप से मनाते हैं।


    छठ पूजा की सबसे महत्वपूर्ण बात इसकी सादगी, पवित्रता और लोकपक्ष है। भक्ति और आध्यात्म से परिपूर्ण इस पर्व के लिए न तो विशाल पंडालों की,न भव्य मंदिरों की और ना ही ऐश्वर्य युक्त मूर्तियों की जरूरत होती है। आधुनिकता की चकाचौंध और शोरगुल से दूर यह पर्व बांस से बनें सूप, टोकरी, मिट्टी के बर्तनों, गन्ने, गुड़, चावल और गेहूं से बनें प्रसाद और सुमधुर लोक गीतों से सबके जीवन में भरपूर मिठास भरने का काम करता है।
    वैसे तो लोग उगते हुए सूर्य को प्रणाम करते हैं, लेकिन छठ पूजा एक ऐसा अनोखा पर्व है जिसकी शुरुआत डूबते हुए सूर्य की अराधाना से होती है। शब्द “छठ” संक्षेप शब्द “षष्ठी” से आता है, जिसका अर्थ “छः” है, इस लिए यह त्यौहार चंद्रमा के आरोही चरण के छठे दिन, कार्तिक महीने के शुक्ल पक्ष पर मनाया जाता है। इसमें सूर्यदेव की उपासना की जाती है।छठ पर्व को लेकर महाभारत और रामायण काल से कथाएं जुड़ी हुई हैं।


    यह माना जाता है कि छठ पूजा का उत्सव प्राचीन वेदों में स्पष्ट रुप से बताया गया है, क्योंकि पूजा के दौरान किए गए अनुष्ठान ऋग्वेद में वर्णित अनुष्ठानों के समान हैं, जिसमें सूर्य की पूजा की जाती है। उस समय, ऋषियों को सूर्य की पूजा करने के लिए भी जाना जाता था और अच्छे सेवन किए बिना वे अपनी ऊर्जा सीधे सूर्य से प्राप्त करते थे।


    ऐसा कहा जाता है कि महाभारत काल में महान ऋषि धौम्य की सलाह के बाद, द्रौपदी ने पांडवों को कठिनाई से मुक्ति दिलाने के लिए छठ पूजा का सहारा लिया था। इस अनुष्ठान के माध्यम से, वह केवल तत्काल समस्याओं को हल करने में सक्षम रही।ऐसा ही नहीं, लेकिन बाद में, पांडवों ने हस्तिनापुर में अपने राज्य को पुनः प्राप्त किया था।

    ऐसा कहा जाता है कि कर्ण, सूर्य के पुत्र, जो कुरुक्षेत्र के महान युद्ध में पांडवों के खिलाफ लड़े थे, ने भी छठ का अनुष्ठान किया था। पूजा का एक अन्य महत्व भगवान राम की कहानी से भी जुड़ा हुआ। प्राचीन ग्रंथों के अनुसार, राम और उनकी पत्नी सीता ने उपवास किया था और 14 साल के निर्वासन के बाद शुक्ल पक्ष में कार्तिक के महीने में सूर्य देव की प्रार्थना की थी। तब से, छठ पूजा एक महत्वपूर्ण और पारंपरिक हिंदू उत्सव बन गया, जिसे हर साल उत्साह से मनाया जाता है।


    लोकप्रिय विश्वास यह भी है कि सूर्य भगवान की पूजा कुष्ठ रोग जैसी बीमारियों को भी समाप्त करती है और परिवार की दीर्घायु और समृद्धि सुनिश्चित करती है। यह सख्त अनुशासन, शुद्धता और उच्चतम सम्मान के साथ की जाती है। और एक बार जब एक परिवार छत पूजा शुरू कर देता है, तो ये उनका कर्तव्य हो जाता है कि वह परंपराओं को पीढ़ियों तक पारित करे।


    (लेखक संजय कुमार सुमन लगातार विभिन्न विधाओं पर लिखते रहे हैं।राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर दर्जनों सम्मानों से सम्मानित हैं।)
    पता:-मंजू सदन चौसा
    पोस्ट-चौसा, जिला-मधेपुरा
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    मोबाइल-9934706179
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