“मैं सूरज हूं”
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मैं सूरज हूं
प्रकाश पुंज द्वार हूं
मैं उगता हूं
मैं ही डूबता हूं
मैं जागता हूं
मैं ही सोता हूं
मैं खिलता हूं
मैं ही मुरझाता हूं
मैं हंसता हूं
मैं ही रोता हूं
मैं सिकुड़ता हूं
मैं ही फैलता हूं!
जाने क्या करता हूं
दुनिया को अपनी किरणें देने के लिए
अपने अस्तित्व का लोप कर देता हूं
कभी चन्द्र से अच्छादित होता हूं
तो कभी राहू का कोप सहता हूं
कभी बादलों के ओट तो
कभी कोहरे का कहर सहता हूं
मैं सूरज हूं
प्रकाश पुंज द्वार हूं।नित उगना- डूबना कर्म है मेरा
बिना किसी से बैर किये सब ओर
रोशनी फैलाना कर्त्तव्य है मेरा
कीट से लेकर जीव जंतु तक
पेड़- पौधे से लेकर फूलों तक
प्रकाश बनके जीवन देता हूं
मैं सूरज हूं
प्रकाश पुंज द्वार हूं।
कुमारी अर्चना
सहायक प्राध्यापिका
एम जे एम महिला महाविद्यालय, कटिहार