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  • सिंहेश्वर मेला को नहीं मिला उद्घाटनकर्ता कुमारी कन्याओं ने फीता काट कर किया मेला का उद्घाटन

    मधेपुरा/ आमतौर पर एक ओर जहां किसी मेला अथवा कार्यक्रम के उद्घाटन के लिए नेताओं, जनप्रतिनिधियों, अधिकारियों में मारामारी की स्थिति रहती है, नाम ऊपर नीचे होने पर लोग मुंह फुलाते भी हैं लेकिन इस बार ऋषि श्रृंग की तपोभूमि सिंघेश्वर में आयोजित महाशिवरात्रि मेला के उद्घाटन के लिए ना तो नेता मिले, ना ही


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    मधेपुरा/ आमतौर पर एक ओर जहां किसी मेला अथवा कार्यक्रम के उद्घाटन के लिए नेताओं, जनप्रतिनिधियों, अधिकारियों में मारामारी की स्थिति रहती है, नाम ऊपर नीचे होने पर लोग मुंह फुलाते भी हैं लेकिन इस बार ऋषि श्रृंग की तपोभूमि सिंघेश्वर में आयोजित महाशिवरात्रि मेला के उद्घाटन के लिए ना तो नेता मिले, ना ही जनप्रतिनिधि और ना ही कोई अधिकारी। अंतिम समय में मंदिर के पंडितों से विचार विमर्श के बाद 9 कुमारी कन्याओं को बुलाया गया। जिससे एक घंटे की देरी पर फीता काट कर उद्घाटन कराया गया। हालांकि यहां बच्चियों ने अपने साहस का परिचय दिया और उनकी संख्या 9 से अधिक थी। मानो वह कह रही हो मेरा सब कुछ बाबा सिंहेश्वर नाथ को समर्पित है।

    सिंघेश्वर बाबा के विश्वास पर अंधविश्वास भारी : कहने को तो बाबा सिंहेश्वर नाथ हर मनोकामना को पूरा करने वाले हैं वे अपने भक्तों के कल्याण के लिए विषपान भी करते हैं। लेकिन कुछ अंधविश्वासियों ने बाबा की एक ऐसी छवि सामने ला दिया है कि कोई भी जनप्रतिनिधि, अधिकारी, नेता मेला का उद्घाटन करने से कतराते हैं। अफवाह फैलाई गई है कि मेला का उद्घाटन करने वाले दोबारा चुनाव नहीं जीतते या जो उद्घाटन करते हैं उनकी कुर्सी चली जाती है। अब इस अंधविश्वास या कहें अफवाह पर विश्वास करने वालों की संख्या भी कम नहीं है। शिव के किसी भक्त में इतनी भक्ति नहीं है कि वह उनके मेला का उद्घाटन कर अपनी कुर्सी की बलि दे सके। या आयोजक ही मेला के उदघाटन सत्र को नीरस बनाए रखने का इसे अच्छा बहाना बना देते हैं। आज भी जब एक शिक्षाविद उद्घाटन कार्यक्रम में मौजूद थे जो एक निजी विश्वविद्यालय के कुलपति भी है उनसे भी उद्घाटन कराना संभव हो सकता था।

    शुरू हुई एक अच्छी परंपरा : आमतौर पर यह माना जाता है कि बुराई कुर्सी में ही है और बुरे लोगों से बाबा सिंहेश्वर नाथ हिसाब लेते रहते हैं। बहरहाल वैसे भी वर्तमान समय में सजा देने वाले को अच्छा नहीं कहा जाता। निष्कलंक, निष्कपट, बच्चियों के द्वारा मेला का उद्घाटन हो कई लोगों ने एक अच्छी परंपरा बताई है देखना दिलचस्प होगा यह परंपरा आगे भी जारी रहती है या इसे मजबूरी में आत्मसात किया गया एक कदम ही माना जाएगा।

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