गंगा सहित सभी नदियों को बचाने के लिए होगा जन आंदोलन
👉मुजफ्फरपुर में राष्ट्रीय विमर्श में सामाजिक कार्यकर्ताओं ने भरी हुंकार
‘गंगा को अविरल बहने दो, गंगा को निर्मल रहने दो’ के गगनभेदी नारों के बीच महिलाओं ने दीप जला कर गंगा सहित देश भर की नदियों पर आए संकट को लेकर मुजफ्फरपुर स्थित चंद्रशेखर भवन में आयोजित तीन दिवसीय राष्ट्रीय विमर्श समारोह का उद्घाटन किया। गंगा मुक्ति आंदोलन में महिलाएं हमेशा से अगुआ दस्ते में रहती आई हैं।
चार दशक पहले सुल्तानगंज से कहलगांव तक गंगा को दो जमींदारों से मुक्त कराने में अभूतपूर्व कामयाबी के लिए विख्यात गंगा मुक्ति आंदोलन द्वारा आयोजित इस राष्ट्रीय विमर्श में विभिन्न प्रदेशों से आए ज्यादातर वक्ताओं ने यही दोहराया कि गंगा सहित विभिन्न नदियों पर मंडराते भयावह संकट को देखते हुए अब चैन से बैठने और मूक होकर तमाशबीन बने रहना भावी पीढ़ियों के साथ अक्षम्य अपराध होगा। इसलिए देश की नदियों को बचाने के लिए एक राष्ट्र व्यापी जन आंदोलन के लिए जन जन को जगाने की जरूरत है। वक्ताओं ने यह भी जोरदार तरीके से साफ किया कि गंगा का सवाल धार्मिक नहीं बल्कि पूरी तरह से गंगा जमुनी संस्कृति को बचाने का सवाल है। गंगा सहित सभी नदियां सभी तरह के मानवीय समुदायों सहित पशु पक्षी और वनस्पति जगत के लिए जीवनदायिनी रही हैं। आज गंगा सहित सभी नदियों पर आए संकट के कारण मछुआ, गंगोटा, मल्लाह सहित पशु पक्षी और वनस्पति जगत संकट से घिर गया है। वक्ताओं ने नदियों को बचाने के लिए आधुनिक जीवन शैली को बदलने की जरूरत बताते हुए कि हमें प्रकृति के साथ मैत्री का संबंध विकसित करना होगा।
पूर्व सांसद और राष्ट्रीय विमर्श स्वागत समिति के अध्यक्ष अली अनवर ने सभी का स्वागत करते हुए कहा कि ‘गंगा धार्मिक मामला नहीं है, जिसका राजनीतिक दोहन किया जा रहा है, बल्कि यह सांस्कृतिक मामला है। धार्मिक भावनाओं का शोषण करने के लिए राजनीतिक दल के लोग तरह-तरह की बातें करते हैं। नमामि गंगे योजना के नाम पर पिछले 10 साल से लूट मची हुई है। उन्होंने आरोप लगाया कि यह योजना एक तरह से फेल है। पैसे भ्रष्टाचारियों और ठेकेदारों की जेब में जा रहे हैं। यह सब गंगा को मारने की योजना है ।’
वरिष्ठ प्राध्यापक व लेखक डॉ योगेंद्र ने कहा कि भारत की तमाम नदियों पर गहरा संकट है। दामोदर से लेकर बागमती व यमुना तक छोटी-बड़ी तमाम नदियां बर्बाद हो रही हैं। आधुनिक सभ्यता प्रकृति के खिलाफ जंग कर रही है। प्रकृति के खिलाफ एक नई सभ्यता उगाने की चेष्टा पूरी दुनिया में की जा रही है ।
गंगा मुक्ति आंदोलन के दिल्ली चैप्टर के सचिव और वरिष्ठ पत्रकार प्रसून लतांत ने कहा कि यह सुखद है कि भावी खतरों को भांपते हुए गंगा सहित सभी नदियों के सवाल पर गंगा मुक्ति आंदोलन फिर से सक्रिय हो गया है। जन आंदोलन के लिए व्यवहारिक रणनीति को अपनाने की जरूरत बताते हुए उन्होंने कहा कि कार्यकर्ताओं के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम चलाना चाहिए ताकि आम जनता को जागरूक करने के लिए साधारण भाषा और शैली में संवाद हो सके। झारखंड के आदिवासी समुदाय के प्रतिनिधि कृष्ण कुमार माढ़ी ने कहा कि आदिवासियों के पास प्रकृति और नदियों की रक्षा करने का पारंपरिक ज्ञान है ।
कार्यक्रम में राजस्थान, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, झारखण्ड, भागलपुर, कहलगांव एवं नेपाल के दर्जनों प्रतिनिधि शामिल हुए, जो पर्यावरण, नदी, जल-जंगल-जमीन को लेकर काम कर रहे हैं । इनमें प्रमुख रूप से वीरेंद्र क्रांति वीर, अखिलेश कुमार, अमरनाथ, सुनील कुमार , गौतम कुमार, डा नवीन कुमार झा, अशोक भारत आदि प्रमुख है। झारखंड से आये वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्त्ता और पर्यावरण संवाद के संपादक घनश्याम ने भी गंगा समेत अन्य नदियों को बर्बाद होने से बचाने के लिए एक बड़े जनांदोलन की जरूरत बताई।
कार्यक्रम को पूर्व सीनियर आइएस व्यासजी एवं अंतर्राष्ट्रीय नदी वैज्ञानिक व आईआईटी कानपुर के वैज्ञानिक प्रो. राजीव सिन्हा ने भी ऑनलाइन संबोधित कर गंगा बेसिन की गंभीर समस्याओं एवं उसके समाधान पर विस्तार से बताया। इन सभी का कहना था कि गंगा सहित अनेक नदियों में में गाद भर गए हैं। इस कारण गंगा में बाढ़ जैसी विपदाएं आने लगी हैं । लोग बाढ़ के कारण तबाह होने लगे हैं। फरक्का बांध गंगा और लोगों के लिए नुकसानदेह साबित हो रहा है।
सावित्रीबाई फुले सेवा फाउंडेशन, पुणे की सचिव हेमलता म्हस्के ने कहा कि नदियों के कारण वे पशु पक्षी भी परेशान हैं, जो उन पर निर्भर रहते आए हैं। नदियों के किनारे न सिर्फ अपने देश के बल्कि दुनिया के विभिन्न देशों से भी पक्षियों का आना जाना जारी रहता था। उन्होंने कहा कि अगर गंगा को साफ नहीं किया गया तो ऑक्सीजन की कमी होगी और मछलियां भी सदा के लिए लुप्त हो जायेंगी। आयोजन के प्रारंभ में गंगा मुक्ति आंदोलन के प्रणेता अनिल प्रकाश ने गंगा समेत अन्य नदियों को बचाने के लिए एक बड़े जन आंदोलन की आवश्यकता पर जोर देते हुए राष्टीय विमर्श के दायरे को बढ़ाने की चर्चा की। उन्होंने महिलाओं से अपील की कि वे जन आंदोलन में सक्रिय भागीदारी के लिए आगे आएं।
कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रो. विजय कुमार जायसवाल ने की एवं मंच संचालन उदय ने किया।
सांस्कृतिक सत्र का संचालन गंगा मुक्ति आंदोलन के मीडिया सलाहकार सुनील सरला द्वारा किया गया। बेतिया के राजीव कुमार द्वारा नदियां नीत तुम बहा करो कल कल छल छल
अविरल पीयूष प्रवाह बन जल राशी संग बहा करो सुनाया गया वही सामाजिक कार्यकर्ता संगीता सुभाषिनी द्वारा कांप रही हैं धरती थर , समय बड़ा विकराल हैं मानव के मनमानी सम्मुख बैठा काल हैं।
राष्ट्रीय विमर्श में आदित्य सुमन,गणेश, राजा राम सहनी, चंदेश्वर राम सहित बागमती संघर्ष मोर्चा से नवल किशोर सिंह,ठाकुर देवेंद्र कुमार,
जगरनाथ पासवान, राम एकबाल राय,अरविंद,घनश्याम,चंदेश्वर राम, कृष्णा प्रसाद, श्याम नारायण यादव जनकपुर, नेपाल कमला नदी बचाओ अभियान, राजीव कुमार,विनय कुमार, राजीव कुमार, राजा राम सहनी, हरेंद्र मंडल, ललन राय, राम अनेक राय, शाहिद कमाल, राम लोचन सिंह, राजकुमार मंडल, हुकुमदेव नारायण सिंह, रामा शंकर राय, विक्रम जय नारायण निषाद, अखिलेश मानव, संजीत सिंह, नीरज सिंह, अमरनाथ, अनिल गुप्ता, मुसकान केशरी, आदित्य राज, अवधेश कुमार, राम लखींद्र प्रसाद, शिवनाथ पासवान, कृष्णमोहण, बसंत कुमार राय, आनंद पटेल, नदीम खान, अर्जुन कुमार, मोहम्मद इदरीश, गणेश कुमार, संजय कुमार सिंह, अजय कुमार, संजीत कुमार दीवाना, कुमार विरल मौजूद थे।
धन्यवाद ज्ञापन नरेश कुमार सहनी द्वारा दिया गया।