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छक्का वह है जिसकी छठी इंद्री भी होती है जागरूक- किन्नरर दीपिका

शंकरदेव पर नूतन पांडे की किताब का हुआ लोकार्पण

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हेमलता म्हस्के,नई दिल्ली
देश में किन्नरों की स्थिति में सुधार हो रहा है वह अपनी पारंपरिक और अपमान भरी जिंदगी से हटकर समाज की मुख्यधारा में शामिल होकर अपने बलबूते सामान्य जीवन जीने की ओर अग्रसर हो रहा है। उन्हें विभिन्न तरह के प्रशिक्षण दिए जा रहे हैं ताकि वह आत्मनिर्भर बन सके। अपने मताधिकार का प्रयोग कर रही है। विधायक पार्षद और मेयर भी बन रही है। पढ़ रही है पढ़ा रही है और साहित्य सृजन भी कर रही है।

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यह बात दिल्ली की प्रसिद्ध किन्नर दीपिका ने साहित्य की विभिन्न विधाओं पर हर महीने आयोजित होने वाली सन्निधि संगोष्ठी में कही। दीपिका इसमें मुख्य अतिथि के रूप में आमंत्रित की गई थीं। उन्होंने कहा कि छक्का शब्द हमारे लिए कोई अपमानजनक नहीं है। छक्का उसी को कहते हैं जिसकी। छठी इंद्रिय भी जागरूक होती है
दीपिका ने बहुत ही प्रभावपूर्ण ढंग से अपने अनुभवों को साझा किया जो कि कई ऐसे तथ्यों को जो आधारहीन हैं पर समाज में प्रचलित हैं को स्पष्ट करती है। उन्होंने ट्रांसजेंडर क्या होता है इसे भी स्पष्ट शब्दों में बताया कि ऐसे लोग जो बायोलॉजिकली नारी या पुरुष हैं पर मन से वे उसके विपरीत होते हैं कहने का मतलब है कि जैसे कोई बैयोलॉजिकली एक पुरुष है पर बचपन से ही उसे लड़कियों के साथ रहना, उनके हाव भाव इत्यादि पसंद होते हैं तो ऐसे में उसे उसी रूप में रह कर संतुष्टि मिलती है।

सन्निधि के बैनर तले “गांधी हिंदुस्तानी साहित्य सभा” के कक्ष में काकासाहेब कालेलकर एवं विष्णु प्रभाकर की स्मृति को समर्पित ‘सन्निधि संगोष्ठी’ का आयोजन संपन्न हुआ ।
विषय था — “किन्नर विमर्श” एवं रचना पाठ तथा “नूतन पाण्डेय” की पुस्तक — “असम के प्राण – अक्षर पुरुष श्रीमंत शंकरदेव” का विमोचन और चर्चा ।
संगोष्ठी की अध्यक्षता श्री एस जी एस सिसोदिया जी ने की । मुख्य अतिथि दीपिका जी थीं तथा विशिष्ट अतिथि शालिनी श्रीनेत जी रहीं तथा सानिध्य श्री ओम निश्चल जी का था। सभी अतिथियों का संयोजकों द्वारा स्वागत किया गया।


कार्यक्रम का शुभारंभ श्री अतुल कुमार प्रभाकर जी के स्वागत भाषण से हुआ, जबकि श्री प्रसून लतांत जी ने उद्घोषणा का कार्य भार सम्हाला। तत्पश्चात नूतन पाण्डेय की पुस्तक “असम के प्राण – अक्षर पुरुष श्रीमंत शंकरदेव” का विमोचन सम्पन्न हुआ । श्री ओम निश्चल की पुस्तक पर समीक्षात्मक चर्चा बहुत ही सार्थक थी । आपने बताया कि कैसे लेखिका ने लम्बे अध्ययन और अपनी यायावरी प्रवृत्ति से असम के लोगों, स्थानों एवम सत्रों का दौरा कर इस पुस्तक में श्रीमंत शंकरदेव का जीवन, उनका कार्य व असम में प्रभाव को लिखा है। उन्होंने लेखिका के मेहनत को सराहा और इसे एक महत्वपूर्ण पुस्तक बताया।
तत्पश्चात लेखिका नूतन पाण्डेय ने अपनी बात रखी जिसमें उन्होंने 15 वीं शताब्दी के सन्त, समाजसुधारक, कलाकार, साहित्यकार श्रीमंत शंकरदेव जो कि नव असम के निर्माता कहे जा सकते हैं और असम में पूजनीय हैं का असम और असमिया समाज पर उनके प्रभाव को असम से बाहर मुख्य धारा तक लाने का एक छोटा सा प्रयास बताया संगोष्ठी में अतुल कुमार और प्रसून लतांत को नूतन पांडे ने सम्मानित किया।

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