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पराली जलाने से स्वास्थ्य और पर्यावरण दोनों को है नुकसान- मो मिराज

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मधेपुरा ब्यूरो/बरसात का मौसम धान की पैदावार के लिए बहुत ही अनुकूल होता है इसलिए बिहार के कई जिलों में धान की फसल पैदा की जाती है। लेकिन अक्टूबर और नवम्बर में ये फ़सल हार्वेस्टर मशीन की सहायता से काट ली जाती है ।लेकिन इस कटाई में फसल का सिर्फ अनाज वाला हिस्सा अर्थात धान के पौधे के ऊपर का हिस्सा ही काटा जाता है और बाकी का हिस्सा खेत में ही लगा रहता है जिसे पराली कहते हैं.
वायु प्रदूषण की समस्या विश्व के लगभग हर देश में बढ़ती ही जा रही है। वर्तमान में यह समस्या भारत की राजधानी दिल्ली में विकट रूप में दिखाई दे रही है। दरअसल दिवाली के समय या यूं कहें कि अक्टूबर और नवम्बर महीने के दौरान हर साल दिल्ली और उससे सटे क्षेत्रों में हर साल धुंध छा जाती है जिसके मुख्य कारणों में वाहनों, फैक्टरियों का धुआं, पटाखों का धुआं और पंजाब और हरियाणा में जलायी जाने वाली पराली होते हैं ।चूंकि अक्टूबर और नवम्बर में किसान को रबी की फसल की बुबाई के लिए खेत को खाली करना होता है। इसलिए किसान खेत में लगी हुई पराली को जमीन से काटने की बजाय उसमें आग लगा देते हैं ।जिससे खेत खाली हो जाता है और गेहूं या अन्य किसी फसल की बुबाई कर देते हैं।
जलायी गयी पराली का धुंआ उड़ता हुआ वायुमंडल में आ जाता है जिससे दिन में भी धुंध छा जाती है और लोग साफ सुथरी हवा के लिए तरसने लगते हैं.

पराली का धुंआ इस कारण से और खतरनाक हो जाता है क्योंकि अक्टूबर और नवम्बर के महीनों में हवा की गति कम हो जाती है.

पराली जलाने के नुकसान

1. ऐसा नहीं है कि पराली जलाने से किसानों का नुकसान नहीं होता है. सभी जानते हैं कि केंचुआ किसानों का दोस्त माना जाता है क्योंकि यह जमीन को भुरभुरा बनाता है जिससे उसकी उर्वरक शक्ति बढती है लेकिन पराली जलाने से केंचुआ भी मर जाता है.

2. पराली जलाने से खेत की मिटटी में पाया जाने वाला राइजोबिया बैक्टीरिया भी मर जाता है. यह बैक्टीरिया पर्यावरण की नाइट्रोजन को जमीन में पहुंचाता है जिससे खेत की पैदावार क्षमता बढ़ती है.

3. राइजोबिया बैक्टीरिया के खत्म हो जाने से किसानों को खेती में नाइट्रोजन वाली खाद ज्यादा मात्रा में डालनी पड़ती है जिससे खेती की लागत बढ़ जाती है और किसान को मिलने वाला लाभ कम हो जाता है.
पराली की समस्या बहुत पुरानी नहीं है दरअसल यह समस्या तकनीकी के विकास का दुष्परिणाम है क्योंकि जब मशीन नही थी तो किसान फसल को पूरा काटते थे लेकिन अब हार्वेस्टर से कटाई के कारण ऐसा नहीं किया जा रहा है.

समस्या का समाधान

1. इस समस्या का सबसे बड़ा समाधान इस बात में है कि यदि फसल पूरी तरह से काटी जाए क्योंकि जब आधा कटा हुआ धान ही नहीं होगा तो फिर किसानों के पास जलाने के लिए पराली ही नहीं होगी.

2. अब इस तरह की तकनीकी भी विकसित हो गयी है कि पराली का इस्तेमाल सीट बनाने में किया जा सकता है.

3. ऐसी मशीनें हैं जो फसल अवशेषों को बड़े बड़े बंडलों में बाँध सकतीं है जिनको बाद में विद्युत उत्पादन के लिए थर्मल प्लाटों को बेचकर पैसे कमाए जा सकते हैं.

4. इस पराली को गड्ढों में भरकर पानी डालकर गलाया जा सकता है जिससे कि कम्पोस्ट खाद बनायी जा सकती है जो कि खेतों में खाद के रूप में इस्तेमाल की जा सकती है.

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क्या कहते हैं अधिकारी

उप परियोजना निदेशक आत्मा मधेपुरा मोहम्मद मिराज का कहना है कि पराली जलाने से पर्यावरण को भी क्षति है साथ साथ जनजीवन को भी सत्य है एवं उठ जाओ धरती माता कभी छती होती है क्योंकि मित्र कीट पराली के जलने से गर्मी को बर्दाश्त नहीं करते हैं जिस से अधिक संख्या में मित्र कीट मर जाता है और किसानों के लिए समस्याएं उत्पन्न कर देती है हमें प्रयास करना चाहिए कि पराली नहीं जलाया जाए इसके लिए जनप्रतिनिधि प्रगतिशील किसान आसपास के लोगों को भी जानकारी दे की पराली जलाने से हम सबों को स्वास्थ्य पर भी असर करता है एवं पर्यावरण को भी नुकसान पहुंचाता है बताते चलें कि विगत दिनों चौसा प्रखंड क्षेत्र के पश्चिमी पश्चिमी भाग के कुछ पंचायतों में पराली जलाते हुए किसानों को देखा गया। पूछने पर किसान बताते हैं कि (नाम नहीं छापने की शर्त पर )मानव बल की कमी हो गई है मजदूर नहीं मिल पाता है। जिस कारण से हम लोग अपने खेत में पराली को जलाकर मिट्टी में मिला देते हैं जबकि विभाग के द्वारा हम सबों को बार-बार जागरूक किया गया है ऐसा नहीं करना चाहिए। मजदूर नहीं मिलने के कारण खेत को समय पर खाली करना जरूरी होता है क्योंकि रबी की फसल लगाना जरूरी है इसलिए पराली जला देते हैं।

उप परियोजना निदेशक आत्मा मधेपुरा मोहम्मद मिराज कहते हैं कि कृषि विभाग के द्वारा वर्तमान समय में नुक्कड़ नाटक के माध्यम से पराली नहीं जलाने से संबंधित संदेश किसान चौपाल के माध्यम से दिया जा रहा है। साथ ही साथ कृषि कर्मी अपने क्षेत्र में सजग होकर लोगों को जागरूक कर रहे हैं ।

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