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विकसित समाज के लिए समृद्ध साहित्य जरूरी:पूर्व वीसी

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मधेपुरा/ बीएनएमवी कॉलेज में समकालीन विमर्श: समाज और साहित्य विषय पर दो दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय सेमिनार का शुभारंभ हुआ। सेमिनार का शुभारंभ बीएनएमयू के पूर्व कुलपति डॉ. आरकेपी रमण ने किया। हाईब्रिड मोड में आयोजित अंतर्राष्ट्रीय सेमिनार में देश के विभिन्न राज्यों के अलावे विदेशों से भी विद्वानों ने अपनी राय रखी।

सेमिनार का उद्घाटन करते हुए पूर्व कुलपति डॉ. आरकेपी रमण ने कहा कि साहित्य समाज का आईना होता है। विकसित समाज के लिए साहित्य का समृद्ध होना जरूरी है। उन्होंने कहा कि साहित्य समाज को दिशा देती है। उन्होंने साहित्यकारों से अपनी लेखनी से समाज का नेतृत्व करने की अपील की। डॉ. रमण ने बीएनएमवी कॉलेज के प्राचार्य डॉ. अरविंद कुमार सहित आयोजन समिति की सराहना करते हुए कहा कि यह विषय शिक्षक, शोधार्थी और छात्रों के लिए प्रेरणादायी होगा। विद्वानों की राय से हम सब लाभान्विंत होंगे।

समारोह की अध्यक्षता प्रधानाचार्य डॉ. अरविंद कुमार ने की। उन्होंने अतिथियों का स्वागत करते हुए कहा कि आज के सेमिनार में स्त्री, दलित, आदिवासी, पिछड़ा, अतिपिछड़ा, किन्नर, दिव्यांग सहित अन्य दबे कुचले लोगों के उत्थान के लिए मील का पत्थर साबित होगा। सेमिनार में विषय प्रवर्तन आयोजन समिति की संयोजक डॉ. शेफालिका शेखर ने की। उन्होंने कहा कि अब साहित्य में विभिन्न अनछुए पहलूओं पर विमर्श होने लगा है। इस सेमिनार में विद्वानों की राय से समाज में एक नया संदेश जाएगा। दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रो. बजरंग बिहारी तिवारी ने बीज वक्तव्य दिया। उन्होंने समाज निर्माण में महात्मा फूले की योगदानों की चर्चा की। उन्होंने कहा कि दासता को समझना जरूरी है। इसकी जानकारी के बगैर इसका प्रतिकार नहीं किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि दलित विमर्श से संबंधित किताबें हर जगह उपलब्ध भी नहीं है। जो विचारनीय पहलू है।

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वाराणसी के डॉ. कमलेश वर्मा ने कहा कि हर जगह से जाति व्यवस्था हटाने की बात हो रही है। लेकिन अब तक ऐसा नहीं हो पाया है। जाति के सवाल पर हर लोग पीड़ित हैं। पढ़े लिखे लोगों के बीच भी जाति संघर्ष चलता है। उन्होंने कहा कि जिस देश में जाति को उपजाति में बांटकर राजनीति चलती हो, जहां अपनी ही जाति के लोग अपनी जाति को नीचा दिखाता हो वह देश आगे नहीं बढ़ सकता। विवि बीएड विभाग की संगीत शिक्षिका सह प्रांगण रंगमंच की नेहा यादव, किम्मी प्रिया, गुलशन कुमार, संदीप यादव ने विवि का कुलगीत के बाद समारोह की श्ुारूआत हुई। कार्यक्रम का संचालन डॉ. जैनेंद्र ने किया।

भारत नेपाल की संस्कृति एक है: अंतरराष्ट्रीय हिन्दी परिषद नेपाल के अध्यक्ष डॉ. वीर बहादूर महतो ने कहा कि भारत और नेपाल की संस्कृति एक है। दोनों देश में आपसी भाईचारे घूल मिल कर समृद्ध बना रहा है। उन्होंने कहा कि भारत के प्रभाव के कारण ही नेपाल में प्रजातंत्र आ पाया है। उन्होंने कहा कि पिछड़ा वर्ग के उत्थान के लिए संस्थान का गठन हुआ है। उन्होंने कहा कि हमारी संस्कृति लोक साहित्य में विराजमान है। उन्होंने कहा कि शिक्षा के क्षेत्र में बिहार का अपना एक अलग स्थान था। लेकिन अब यहां की ज्ञान परंपरा को अपनाकर अमेरिका जैसे देश विकसित हुआ है। हमें अपनी विरासत का संवर्द्धन करना होगा। उन्होंने मातृभाषा को समृद्ध करने की बात कही।

पाटलीपुत्र विवि पटना के प्रो. सफदर इमाम कादरी ने कहा कि हर भाषओं के साहित्य को समृद्ध करने की जरूरत है। संकायाध्यक्ष डॉ. विनय कुमार चौधरी ने कहा कि साहित्य की विकृति से समाज में विकृति आती है। हिन्दी विभागाध्यक्ष डॉ. उषा सिंहा ने स्त्री विमर्श की आवश्यकता पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि जो अपने से अधिक दूसरे के बारे में सोचे वहीं प्रबुद्ध और सभ्य नागरिक होते हैं। कॉलेज शिक्षक संघ के अध्यक्ष सह आयोजन सचिव डॉ. मृत्युंजय कुमार ने सेमिनार में आए अतिथियों और प्रतिभागियों का स्वागत किया। सेमिनार में आईक्यूएसी निदेशक डॉ. नरेश कुमार, जर्मनी से ऑनलाइन डॉ. प्रभात कुमार, डॉ. बीना कुमारी, डॉ. एसएन यादव सहित अन्य ने भी संबोधित किया। मौके पर डॉ. पीएन पीयूष, डॉ. नवीन कुमार सिंह, डॉ. किशोर कुमार, डॉ. भूपेंद्र मधेपुरी, डॉ.शांति यादव, डॉ. मनोरंजन प्रसाद, डॉ. गजेंद्र कुमार, डॉ. सिद्धेश्वर काश्यप, डॉ. किशोर कुमार सिंह, डॉ. धीरेंद्र कुमार श्रीवास्तव, डॉ. निजामुद्दीन अहमद, डॉ. शंभू राय, कुमारी अनामिका, डॉ. मीरा कुमारी, डॉ. प्रियंका कुमारी, डॉ. सरोज कुमार, डॉ. शोभानंद शंभू, डॉ. कमलेश कुमार, डॉ. केके गुप्ता, डॉ. ब्रहमानंद गोईत, डॉ. प्रभाकर, डॉ. विवेक प्रताप सिंह, डॉ. सत्येंद्र कुमार, हरीश खंडेलवाल, डॉ. संजय कुमार परमार, डॉ. धर्मेंद्र कुमार, डॉ. रविशंकर कुमार, डॉ. कुमार ऐश्वर्य, डॉ. अरुण, कुमार, डॉ. रूद्र किंकर वर्मा, डॉ. नीतीशा नयन, डॉ. स्वाती भारती सहित अन्य मौजूद रहे।

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