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बिहार में गठबंधन राजनीति की प्रासंगिकता एवं आवश्यकता

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डॉ. नैनिका/ स्वतंत्र भारत में बिहार देश का प्रथम राज्य है जहाँ गठबंधन राजनीति की शुरुआत हुई । वर्ष 1967 में गठबंधन राजनीति की शुरुआत हुई । उस समय बिहार में कांग्रेस की सरकार बहुत मज़बूत थी जहां बिहार के क्षेत्रीय राजनीतिक दलों ने कांग्रेस के विरुद्ध गठबंधन बनाया था। इसके बाद से बिहार में गठबंधन राजनीति का दौर शुरू हो गया। बिहार में महामाया प्रसाद, कर्पूरी ठाकुर, लालू प्रसाद, नीतीश कुमार और तेजस्वी प्रसाद यादव गठबंधन राजनीति के सबसे बड़े चेहरे रहे हैं। बिहार में इन नेताओं ने गठबंधन राजनीति की बदौलत सरकार बनायी और उसका कुशल नेतृत्व किया है।

बिहार में पहली बार वर्ष 1967 में महामाया प्रसाद सिन्हा के नेतृत्व में गैर कांग्रेसी सरकार बनी थी। बिहार में वर्ष 1967 से वर्ष 1990 तक कुल 12 मुख्यमंत्री गठबंधन राजनीति से बना था। श्री कर्पूरी ठाकुर ने बिहार में  गठबंधन राजनीति को प्रासंगिक बना दिया था। वर्ष 1977 में कर्पूरी ठाकुर बिहार के मुख्यमंत्री बने। उनके नेतृत्व में गठबंधन सरकार ने बेहतरीन नीतियों का कार्यान्वयन किया था। वर्ष 1990 से बिहार में फिर से गठबंधन राजनीति का दौर शुरू हुआ। बिहार में वर्ष 1990 से वर्ष 2005 तक लालू प्रसाद यादव ने छोटे-छोटे दलों के साथ गठबंधन कर के कुशलतापूर्वक सरकार चलाए थे।

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बिहार के वर्तमान मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व में वर्ष 2005 से अब तक विभिन्न दलों के साथ गठबंधन राजनीति के तहत सरकार बनाए हुए हैं। बिहार में वर्ष 2015 में सबसे बड़ा यूपीए गठबंधन बना था जिसका नेतृत्व लालू प्रसाद यादव और नीतीश कुमार ने किया था। लेकिन नीतीश कुमार ने वर्ष 2017 में इस गठबंधन से बाहर निकल कर एनडीए गठबंधन में शामिल हो गए। नीतीश कुमार की अवसरवादी राजनीति के विरुद्ध बिहार में गठबंधन राजनीति के बड़े नेता और बड़े चेहरे के रूप में तेजस्वी प्रसाद यादव का उभार हुआ है।

बिहार विधान सभा के वर्ष 2020 के चुनाव में तेजस्वी प्रसाद यादव के नेतृत्व में राजद सबसे बड़ी राजनीतिक दल के रूप में उभरा था और उनके नेतृत्व में उस समय की यूपीए गठबंधन ने बहुत शानदार प्रदर्शन किया था। वर्तमान समय में वर्ष 2024 लोक सभा चुनाव के दौरान बिहार में गठबंधन राजनीति की प्रासंगिकता स्पष्ट हो जाती है। इस चुनाव में एक तरफ़ इंडिया गठबंधन है तो दूसरी तरफ़ एनडीए गठबंधन है। बिहार में इंडिया गठबंधन का नेतृत्व तेजस्वी प्रसाद यादव कर रहे हैं। दूसरी तरफ़ एनडीए गठबंधन का नेतृत्व  नीतीश कुमार के पास नहीं है यानी कि भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व के पास है। बिहार में यह पहली बार हुआ है की गठबंधन राजनीति का नेतृत्व क्षेत्रीय राजनीतिक दल के पास नहीं है। ऐसा इसलिए हुआ है की नीतीश कुमार के बार बार गठबंधन बदलने से उनकी छवि पलटूमार नेता की बन गई है। वर्तमान समय में नीतीश कुमार की लोकप्रियता और विश्वसनीयता में भारी कमी हुई है। इसलिए बिहार में एनडीए गठबंधन में भाजपा हावी हो गई है। बिहार में एनडीए गठबंधन के अन्य घटक दलों के नेता जैसे की जीतन राम माँझी, चिराग पासवान इत्यादि की विश्वसनीयता नहीं हैए।

दूसरी तरफ इंडिया गठबंधन का नेतृत्व बिहार में तेजस्वी प्रसाद यादव कर रहे हैं। तेजस्वी प्रसाद यादव के नेतृत्व में बिहार में इंडिया गठबंधन एनडीए गठबंधन पर बहुत भारी है। इसका पूरा श्रेय तेजस्वी प्रसाद यादव की नीतियों का 17 महीनों के कार्यकाल में कार्यान्वयन का होना है। बिहार में यह बात बहुत अधिक प्रचलित है की नौकरी मतलब तेजस्वी। बिहार में सात चरणों में लोकसभा का चुनाव हो रहा है। अभी तक तीन चरण का चुनाव हो चुका है। इन तीन चरणों में तेजस्वी प्रसाद यादव के नेतृत्व में इंडिया गठबंधन मजबूत होता दिख रहा है। जहां एक तरफ बड़े बड़े दिग्गज मैदान में है तो वहीं एक अकेला चेहरा सबों के नजर पर चढ़ा हुआ है। अभी हाल में मधेपुरा में नीतीश कुमार को कई दिन कैंप तक करना पड़ा। निश्चित ही गठबंधन की राजनीति बिहार में बड़ा महत्व रखता है।

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