मोहन कुमार/मधेपुरा/ माछली,मखान और पान के लिए प्रसिद्ध मिथिला क्षेत्र के कोसी इलाके में मखाना उत्पादन तो बढ़ने लगा, लेकिन मछली का उत्पादन नगण्य होता जा रहा है। कोसी के माछ बाजार की 90 के दशक तक बंगाल में धमक थी आज आंध्रप्रदेश के बाद बंगाल ने मछली का कॉमर्शियल तरीके से कारोबार बढ़ाते हुए मधेपुरा सहित आसपास के गांव व बाजार पर अपना कब्जा जमा लिया है।
मालूम हो कि पिछले कुछ वर्षों में विभिन्न नदी तालाब एवं जलाशयों में जहर डालने की बढ़ी घटनाओं के चलते देसी मछलियां अब पूरी तरह विलुप्त होने के कगार पर है।अगर कही मछली हो भी रहा है तो रही सही कसर मखाना की बढ़ती खेती ने पूरी कर दी है। फलाफल स्वादिष्ट देसी मछलियां अब लोगों की थाली से पूरी तरह गायब हो चुकी है। साथ ही साथ पहले आसानी से मिलने वाली देसी मांगुर, कवई, पोप्ता, सौरा, पोलवा, पोठी, रही, कतला, कनचट्टी, बामी सहित कई प्रकार की देसी मछलियां अब ढूंढने से नहीं मिलती है।
हाल के दिनों में लोग आंध्रप्रदेश एवं झारखंड से आयातित मछलियों के साथ पोखर में पलने वाली नए नस्लों की मछलियों पर ही निर्भर है। हाल के वर्षों में विभिन्न नदी – नालों एवं जलाशयों में मखाना की खेती करने एवं मछली मारने के लिए जहर एवं कीटनाशकों का प्रयोग करने से स्थिति और भयावह हो गई है ।पहले क्षेत्र में विभिन्न प्रजाति की देसी मछली मिलती थी लेकिन कुछ वर्षो से देसी मछलियां विलुप्त हो चुकी है। प्रत्येक वर्ष निसुंदरा नदी में अज्ञात मछली माफिया द्वारा जहर डाल कर लाखों रुपये की मछली मार लिया जाता है ।
क्या कहते हैं मछुआरे : वर्षो से मछली मारने का कार्य कर रहे क्रियानंद, विद्यानंद मुखिया, पवन मुखिया सहित कई अन्य ने बताया कि नदी में जहर डालने सहित मखाना की खेती का दायरा बढ़ने से जलाशयों से देशी मछली विलुप्त हो गई है ।अब आंध्र से आयातित सहित तालाबों की मछलियों पर ही कारोबार निर्भर है फलाफल कई लोग इस धंधे से विमुख भी होने लगे हैं।
देशी मछली की क्या है विशेषता : देशी मछली स्वाद और सेहत के लिए बहुत ही लाभदायक है। इस मछली में दवाई और केमिकल का उपयोग नहीं होता है जबकि अभी जो बाहर से मछली आ रही है वो केमिकल से भरा होता है।