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  • नाथ शब्द मसीहा की पुस्तक ‘ न औरत ‘ का हुआ लोकार्पण

    हेमलता म्हस्के काकासाहेब कालेलकर और विष्णु प्रभाकर संस्थान की ओर से गांधी हिन्दुस्तानी साहित्य सभा, दिल्ली में सन्निधि संगोष्ठी का आयोजन किया गया। संगोष्ठी के पहले सत्र में केदारनाथ शब्द मसीहा के उपन्यास “न-औरत” पर चर्चा हुई। कार्यक्रम की अध्यक्षता वरिष्ठ साहित्यकार डॉ पूरन सिंह ने की। मुख्य अतिथि के तौर पर डॉ चंद्रमणि ब्रह्मदत्त


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    हेमलता म्हस्के

    काकासाहेब कालेलकर और विष्णु प्रभाकर संस्थान की ओर से गांधी हिन्दुस्तानी साहित्य सभा, दिल्ली में सन्निधि संगोष्ठी का आयोजन किया गया। संगोष्ठी के पहले सत्र में केदारनाथ शब्द मसीहा के उपन्यास “न-औरत” पर चर्चा हुई। कार्यक्रम की अध्यक्षता वरिष्ठ साहित्यकार डॉ पूरन सिंह ने की। मुख्य अतिथि के तौर पर डॉ चंद्रमणि ब्रह्मदत्त जो कि जाने-माने साहित्यकार हैं और कई साहित्यिक संस्थाओं के संचालक है, मंच पर उपस्थित थे।

    कार्यक्रम का प्रारंभ विख्यात साहित्यकार विष्णु प्रभाकर के सुपुत्र अतुल कुमार जी द्वारा सभी लोगों को सन्निधि संगोष्ठी के विषय में और कार्यक्रम की रूपरेखा बताने के बाद हुआ। उपन्यास पर चर्चा की शुरुआत में लघुकथाकार और यूट्यूबर अंजू खरबंदा के रिकॉर्डिंड वक्तव्य से हुई। उसके बाद पिंकी कुमारी द्वारा केदारनाथ शब्द मसीहा के व्यक्तित्व और उनके उपन्यास के विषय में उनका वक्तव्य सुनाया गया। प्रख्यात लेखक एवं रंगमंच पर अनेकों शानदार प्रस्तुति दे चुके कैलाश चंद ने उपन्यास की आवश्यकता और उसमें उठाए गए विषयों पर प्रकाश डाला।

    केदारनाथ शब्द मसीहा द्वारा अपने उपन्यास के विषय में और वर्तमान दौर में ग्रामीण जीवन जी रही नारियों की दशा, उनका शोषण, समाज में फैला हुआ अनाचार,गरीबों के लिए कोढ़ बना हुआ धर्म, समाज की उदासीनता, औरत मर्द के बीच के बीच की गैर बराबरी और उपन्यास की अनेक घटनाओं पर मार्मिक एवं प्रश्न उठाने वाला वक्तव्य दिया गया, जिसे उपस्थित सभी श्रोताओं ने मौन रहकर आत्मसात किया।

    डॉक्टर चंद्रमणि ब्रह्मदत्त जी ने न सिर्फ उपन्यास पर चर्चा की अपितु उसके आसपास नारी अस्मिता को लेकर अनेक उदाहरण देते हुए, लेखकों के समक्ष नए विषय भी सुझाए। उन्होंने अपने वक्तव्य में सरकारी टोल टैक्स की नाजायज वसूली और जनता को लूटने के बारे में विस्तृत चर्चा की। समाज में फैले हुए अनाचार और नारी की दशा सहित उपन्यास पर उन्होंने अपना वक्तव्य प्रस्तुत किया।

    अंत में अध्यक्षीय भाषण में डॉ पूरन सिंह ने उपन्यास की पृष्ठभूमि, औरत की दशा, ग्रामीण जीवन और पुस्तक पर अपने विचार रखे और वक्ताओं द्वारा दिए गए विचारों को रेखांकित किया।

    दूसरे सत्र में श्री सदानंद कवीश्वर, अंजू खरबंदा, डॉ पूरन सिंह, केदारनाथ शब्द मसीहा, पुष्पा जी एवं कई दूसरे उपस्थित श्रोताओं द्वारा अपनी लघु कथा का पाठ किया गया।

    कार्यक्रम अर्चना प्रभाकर जी द्वारा धन्यवाद ज्ञापित किया गया एवं उपस्थित सभी लोगों के सामूहिक चित्र लिए है। इस पूरे कार्यक्रम के सूत्रधार प्रसून लतान्त जी रहे जिन्होंने शानदार मंच संचालन किया एवं केदारनाथ शब्द मसीहा को तिलकामांझी सम्मान द्वारा सम्मानित करने की घोषणा की ।

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