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दीपावली:-क्‍यों की जाती है लक्ष्‍मी माता के साथ श्री गणेश की पूजा,नारायण की क्‍यों नहीं?

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संजय कुमार सुमन
साहित्यकार

भारत में दीपावली का त्योहार बहुत ही धूमधाम से मनाया जाता है। यह तो हम सब जानते हैं कि भगवान राम जब माता सीता के साथ अयोध्या वापस आए थे तब पूरी अयोध्या नगरी में दीए जलाकर उनका स्वागत किया गया था।दिवाली पर सभी माता लक्ष्मी के साथ श्रीगणेश की पूजा करते हैं। लेकिन कुछ ही लोगों को पता है कि माता लक्ष्मी के साथ गणेश की पूजा क्यों की जाती है और रिद्धि सिद्धि कौन हैं। साथ ही दीपावली पूजन में शुभ-लाभ क्यों लिखा जाता है।


बता दें कि दिवाली के दिन लक्ष्मी जी की पूजा के पीछे कई कहानियां हैं। ऐसे में स्पष्ट तौर पर यह नहीं कहा जा सकता है कि आखिर इसके पीछे क्या वजह है।लेकिन, इन सभी कहानियों से इक ही तरफ इशारा होता है कि दिवाली समृद्धि, रोशनी, उमंग का त्यौहार है।लक्ष्मी को भी समृद्धि के तौर पर देखा जाता है और इस दिन से समृद्धि का आगमन होता है। इसलिए इस दिन लक्ष्मी की पूजा की जाती है, भले ही इसके पीछे कहानी कुछ भी हो।

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दीपावली के दिन लक्ष्‍मी पूजन को लेकर एक कथा प्रचलित है।एक बार माता लक्ष्‍मी अपने महालक्ष्‍मी स्‍वरूप में इंद्रलोक में वास करने पहुंची।माता की शक्ति से देवताओं की भी शक्ति बढ़ गई। इससे देवताओं को अभिमान हो गया कि अब उन्‍हें कोई पराजित नहीं कर सकता।एक बार इंद्र अपने ऐरावत हाथी पर सवार होकर जा रहे थे, उसी मार्ग से ऋषि दुर्वासा भी माला पहनकर गुजर रहे थे।प्रसन्‍न होकर ऋषि दुर्वासा ने अपनी माला फेंककर इंद्र के गले में डाली, लेकिन इंद्र उसे संभाल नहीं पाए और वो माला ऐरावत हाथी के गले में पड़ गई। हाथी ने सिर को हिला दिया और वो माला जमीन पर गिर गई। इससे ऋषि दुर्वासा नाराज हो गए और उन्‍होंने श्राप दे दिया कि जिसके कारण तुम इतना अहंकार कर रहे हो, वो पाताल लोक में चली जाए।
इस श्राप के कारण माता लक्ष्‍मी पाताल लोक चली गईं।लक्ष्मी के चले जाने से इंद्र व अन्य देवता कमजोर हो गए और दानव मजबूत हो गए।तब जगत के पालनहार नारायण ने लक्ष्मी को वापस बुलाने के लिए समुद्र मंथन करवाया। देवताओं और राक्षसों के प्रयास से समुद्र मंथन हुआ तो इसमें कार्तिक मास की कृष्‍ण पक्ष की त्रयोदशी के दिन भगवान धनवंतरि निकले।इसलिए इस दिन धनतेरस मनाई जाती है और अमावस्‍या के दिन लक्ष्‍मी बाहर आईं।इसलिए हर साल कार्तिक मास की अमावस्‍या पर माता लक्ष्‍मी की पूजा होती है।चूंकि इसी दिन श्रीराम वनवास से लौटकर अयोध्‍या वापस आए थे, और उनके आने की खुशी में लोगों ने घरों को दीपक से रोशन किया था, इसलिए कार्तिक मास की अमावस्‍या पर दिवाली मनाई जाने लगी।इस दिन पहले लक्ष्‍मी पूजन होता है, इसके बाद दिवाली की खुशी में घर को दीपक से रोशन किया जाता है।
क्यों कि जाती है भगवान गणेश और माता लक्ष्मी की पूजा
मां लक्ष्मी के साथ गणेशजी की पूजा जरूरी है। माता लक्ष्मी श्री, अर्थात धन-संपादा की स्वामिनी हैं, वहीं श्रीगणेश बुद्धि-विवेक के। बिना बुद्धि-विवेक के धन-संपदा प्राप्त होना दुष्कर है। माता लक्ष्मी की कृपा से ही मनुष्य को धन-समृद्धि की प्राप्ति होती है। मां लक्ष्मी की उत्पत्ति जल से हुई थी और जल हमेशा चलायमान रहता है, उसी तरह लक्ष्मी भी एक स्थान पर नहीं ठहरतीं। लक्ष्मी के संभालने के लिए बुद्धि-विवेक की आवश्यकता पड़ती है। बिना बुद्धि-विवेक के लक्ष्मी को संभाल पाना मुश्किल है इसलिए दिवाली पूजन में लक्ष्मी के साथ गणेश की पूजा की जाती है। ताकि लक्ष्मी के साथ बुद्धि भी प्राप्त हो। कहा जाता है कि जब लक्ष्मी मिलती है तब उसकी चकाचौंध में मनुष्य अपना विवेक खो देता है और बुद्धि से काम नहीं करता। इसलिए लक्ष्मीजी के साथ हमेशा गणेशजी की पूजा करनी चाहिए।


18 महापुराणों में से महापुराण में वर्णित कथाओं के अनुसार, मंगल के दाता श्रीगणेश, श्री की दात्री माता लक्ष्मी के दत्तक पुत्र हैं। एकबार माता लक्ष्मी को स्वयं पर अभिमान हो गया था। तब भगवान विष्णु ने कहा कि भले ही पूरा संसार आपकी पूजा-पाठ करता है और आपके प्राप्त करने के लिए हमेशा व्याकुल रहता है लेकिन अभी तक आप अपूर्ण हैं। भगवान विष्णु के यह कहने के बाद माता लक्ष्मी ने कहा कि ऐसा क्या है कि मैं अभी तक अपूर्ण हूं। तब भगवान विष्णु ने कहा कि जब तक कोई स्त्री मां नहीं बन पाती तब तक वह पूर्णता प्राप्त नहीं कर पाती। आप निसंतान होने के कारण ही अपूर्ण हैं। यह जानकर माता लक्ष्मी को बहुत दुख हुआ। माता लक्ष्मी का कोई भी पुत्र न होने पर उन्हें दुखी होता देख माता पार्वती ने अपने पुत्र गणेश को उनकी गोद में बैठा दिया। तभी से भगवान गणेश माता लक्ष्मी के दत्तक पुत्र कहे जाने लगे। माता लक्ष्मी दत्तक पुत्र के रूप में श्रीगणेश को पाकर बहुत खुश हुईं। माता लक्ष्मी ने गणेशजी को वरदान दिया कि जो भी मेरी पूजा के साथ तुम्हारी पूजा नहीं करेगा, लक्ष्मी उसके पास कभी नहीं रहेगी। इसलिए दिवाली पूजन में माता लक्ष्मी के साथ दत्तक पुत्र के रूप में भगवान गणेश की पूजा की जाती है।
विष्णु के बिना होती है लक्ष्मी की पूजा
देवशयनी एकादशी को भगवान विष्णु सो जाते हैं और दिवाली के 11 दिन बाद आने वाली देवउठनी एकादशी को उठते हैं।जिस दीपावली पर माता लक्ष्मी के साथ तमाम देवी-देवताओं की विशेष रूप से पूजा की जाती है, उसी रात आखिर श्रीहरि भगवान विष्णु की पूजा नहीं की जाती है, क्योंकि दीपावली का पावन पर्व चातुर्मास के बीच पड़ता है और इस समय भगवान विष्णु चार मास के लिए योगनिद्रा में लीन रहते हैं।ऐसे में किसी धार्मिक कार्य में उनकी अनुपस्थिति स्वाभाविक है।


यही कारण है कि दीपावली पर धन की देवी मां लक्ष्मी लोगों के घर में बगैर श्रीहरि भगवान विष्णु के बिना पधारती हैं।वहीं देवताओं में प्रथम पूजनीय माने जाने वाले गणपति उनके साथ अन्य देवताओं की तरफ से उनका प्रतिनिधित्व करते हैं। हालांकि दीपावली के बाद जब भगवान विष्णु कार्तिक पूर्णिमा के दिन योगनिद्रा से जागते हैं तो सभी देवता एक बार श्रीहरि के साथ मां लक्ष्मी का विशेष पूजन करके एक बार फिर दीपावली का पर्व मनाते हैं, जिसे देव दीपावली कहा जाता है।
क्यों गणेश जी के दाहिनी ओर विराजती हैं मां लक्ष्मी
पौराणिक कथा के अनुसार एक बार लक्ष्मी जी को स्वयं पर अभिमान हो गया कि धन प्राप्ति के लिए सारा संसार उनकी पूजा करता है और उन्हें पाने के लिए लालायित रहता है। भगवान विष्णु उनकी यह भावना को ज्ञात हो गई। मां लक्ष्मी का अंहकार दूर करने हेतु भगवान विष्णु ने माता लक्ष्मी से कहा कि ‘देवी भले ही सारा संसार आपकी पूजन करता है और आपको पाने के लिए व्याकुल रहता है आप अभी तक अपूर्ण हैं।’
यह बात सुनने के बाद माता लक्ष्मी ने जिज्ञासावश विष्णु जी से अपनी कमी के बारे में पूछा, तब विष्णु जी ने उनसे कहा कि ‘जब तक कोई स्त्री मां नहीं बनती तब तक वह पूर्णता को प्राप्त नहीं करती। आप नि:सन्तान होने के कारण अपूर्ण है।’
माता लक्ष्मी को इस बात से अत्यंत दु:ख हुआ और उन्होंने अपनी सखी पार्वती को अपनी पीड़ा बताई। जिसके बाद माता लक्ष्मी का दु:ख दूर करने के उद्देश्य से पार्वती जी ने अपने पुत्र गणेश को उन्हें गोद दे दिया। तभी से भगवान गणेश माता लक्ष्मी के ‘दत्तक-पुत्र’ कहलाए। गणेश जी को पुत्र रूप में प्राप्त करके माता लक्ष्मी अतिप्रसन्न हुई और उन्होंने गणेश जी को यह वरदान दिया कि जो भी मेरी पूजा के साथ तुम्हारी पूजा करेगा मैं उसके यहां वास करूंगी।धार्मिक मान्यता के अनुसार, इसलिए सदैव लक्ष्मी जी के साथ उनके ‘दत्तक-पुत्र’ भगवान गणेश की पूजा की जाती है। क्योंकि माता सदैव अपने पुत्र के दाहिनी ओर विराजती है। यही कारण है कि मां लक्ष्मी गणेश जी के दाहिनी ओर विराजती हैं।
(लेखक संजय कुमार सुमन पिछले 30 वर्षों से लगातार पत्रकारिता कर रहे हैं।दर्जनों पत्र पत्रिकाओं का संपादन किया है।राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सैकड़ो पुरस्कार प्राप्त कर चुके हैं।आधे दर्जन अंतरराष्ट्रीय संगठनों ने इन्हें ऑनरेरी डॉक्टरेट की उपाधि प्रदान की है।लगातार विभिन्न विधाओं में अपनी रचना लिखकर एवं सामाजिक कार्य करके समाज को नई दिशा प्रदान कर रहे हैं)

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