डॉ० नैनिका/ भारत का संविधान दुनिया का सबसे व्यापक और बेहतरीन संविधान है। ब्रिटिश औपनिवेशिक शासनकाल के दौरान राष्ट्रीय स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल स्वतंत्रता सेनानियों ने भारत की सांस्कृतिक, भाषायी और क्षेत्रीय विविधता को स्वीकार एवं आत्मसात किया था। भारतीय राष्ट्रीय स्वतंत्रता आंदोलन ने उन्नीसवीं सदी से हीं विश्व के अन्य पराधीन देशों की स्वाधीनता आंदोलन को अपना समर्थन देना शुरू कर दिया था। भारतीय स्वाधीनता आंदोलन ने अफ्रीका, लैटिन अफ़्रीका एवं एशिया के अन्य देशों के राष्ट्रीय आंदोलन न केवल समर्थन किया बल्कि इन देशों से सांस्कृतिक, सामाजिक और राजनीतिक तत्वों को आत्मसात भी किया। इसके कारण भारत का स्वाधीनता आंदोलन का विषय-वस्तु बहुत व्यापक हो गया था।
भारत का राष्ट्रीय स्वतंत्रता आंदोलन सिर्फ राजनीतिक स्वाधीनता आंदोलन नहीं था बल्कि यह आंदोलन सांस्कृतिक, सामाजिक और आर्थिक आंदोलन भी था। ब्रिटिश औपनिवेशिक शासनकाल के दौरान भारत पर शासन करने के लिए ब्रिटिश संसद द्वारा समय-समय पर रेग्युलेटिंग अधिनियम, चार्टर अधिनियम और शासन अधिनियम इत्यादि का क्रियान्वयन किया गया था। इन अधिनियमों के माध्यम से स्वतंत्रता पूर्व भारत पर शासन किया गया था। राष्ट्रीय स्वतंत्रता आंदोलन के नेताओं ने इन शासन अधिनियमों का गम्भीरता से विश्लेषण किया। इन सभी अनुभवों का व्यापक चर्चा संविधान निर्माण के दौरान किया गया था।
भारत के संविधान का निर्माण एक संविधान सभा के माध्यम से किया गया है। इस संविधान सभा में भारत के सभी प्रांतों से प्रतिनिधियों को शामिल किया गया था। इस तरह से भारत के संविधान सभा में विभिन्न जातियों, विभिन्न भाषायी क्षेत्रों, विविध धर्मों, विविध सांस्कृतिक समूहों का इत्यादि का प्रतिनिधित्व था। इस संविधान सभा में व्यापक विचार-विमर्श हुआ और 2 साल 11 महीना और 18 दिन में भारत का संविधान बन कर तैयार हुआ है। संविधान सभा में सभी विषयों पर व्यापक चर्चा होती थी और फिर सभी प्रस्तावों पर मतदान होता था। भारत के संविधान का सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि इस संविधान में दुनिया की सबसे अच्छी संविधानों का अध्ययन किया गया और उसके प्रावधानों को भारतीय परिवेश के अनुरूप बनाकर शामिल किया गया है।
संविधान सभा में इसमें शामिल सभी अनुच्छेदों, भागों इत्यादि पर उचित व्याख्या हुई। इस तरह से भारत का संविधान बन कर तैयार हुआ। भारत का संविधान हमारे देश के बारे में बताता है।

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भारत का संविधान लोकतांत्रिक मूल्यों, विधि-विधान, शासन प्रणाली, न्याय व्यवस्था, व्यक्ति की स्वतंत्रता इत्यादि के बारे में ना केवल बताता है बल्कि इसकी सुरक्षा का गारंटी भी देता है। प्रधानमंत्री के आर्थिक सलाहकार परिषद के अध्यक्ष बिबेक देबरॉय ने भारत के संविधान के बदलने की बात कर के देश में एक बहस छेड़ दिया है। दरअसल वर्तमान भारत के प्रधानमंत्री मोदी संविधान की ताकत से डर गए हैं। संविधान लागू होने के बाद से भारत के लोकतांत्रिक व्यवस्था में सर्वोच्च कौन है इस बात पर विवाद उत्पन्न हो गया। भारत के संविधान में Montesquieu के शक्ति के पृथक्करण के सिद्धांत को अपनाया गया था यानी कि स्वतंत्र न्यायपालिका, कार्यपालिका और व्यवस्थापिका का स्वतंत्र अस्तित्व। संविधान लागू होने के कुछ समय बाद से ही यह विवाद शुरू हो गया था कि संसद के पास असीमित शक्ति है यानी कि संसद सर्वोच्च है। लेकिन संसद के इस दावे को सर्वोच्च न्यायालय ने ख़ारिज कर दिया। सर्वोच्च न्यायालय ने अपने निर्णय में स्पष्ट किया है कि भारत का संविधान एक जीवित दस्तावेज है।
भारत का संविधान केवल कागजों का दस्तावेज नहीं है बल्कि यह जीवित दस्तावेज है और यह प्रगतिशील और गतिमान है। समय के साथ इसमें शामिल अनुच्छेदों का संशोधन हो सकता है। लेकिन संविधान की मूल भावना को संशोधित नहीं किया जा सकता है। इस संदर्भ में सर्वोच्च न्यायालय ने संविधान में आधारभूत संरचना अथवा ढांचा का सिद्धांत वर्ष 1973 में केशवानंद केस में दिया था। इस आधारभूत संरचना के कारण भारत का संविधान की जीवंतता और भी बढ़ गई है। इस आधारभूत संरचना ने यह भी स्पष्ट कर दिया है की संविधान ही सर्वोच्च है और न्यायपालिका, कार्यपालिका और व्यवस्थापिका केवल इस संविधान का अंग है। इस आधारभूत संरचना के कारण संसद की शक्ति पर अंकुश लगाया गया है। इस वजह से वर्तमान एन॰डी॰ए॰ सरकार पूरी तरह से बौखला गई है। एन॰डी॰ए॰ सरकार संविधान को बदलने की बात करके आम जनमानस में एक बहस छेड़ना चाहता है।
दरअसल एन॰डी॰ए॰ सरकार का इसके पीछे एक बड़ी साज़िश है की नए संविधान को बदल कर लम्बे समय तक शासन करना। इस संदर्भ में वर्तमान एन॰डी॰ए॰ सरकार की मंशा लोकसभा और विधानसभा के चुनाव में फेर बदल करने की है। एन॰डी॰ए॰ सरकार लोकसभा और विधानसभा में आनुपातिक प्रतिनिधित्व की व्यवस्था करना चाहता है। इस आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली की व्यवस्था के अनुसार चुनाव में सर्वाधिक मत हासिल करने वाले राजनीतिक दल को मत के अनुसार लोकसभा और विधानसभा में सीट देना है। वर्तमान समय में लोकसभा और कई राज्यों के विधानसभा चुनाव में एन॰डी॰ए॰ को सर्वाधिक मत मिला है और इस आधार पर देखा जाए तो इस व्यवस्था में उसे ही सर्वाधिक सीटें मिलेगी। इस तरह से एन॰डी॰ए॰ बहुत लम्बे समय तक शासन कर सकता है। यही वजह है है कि एन॰डी॰ए॰ सरकार संविधान को बदलने की बात कर रही है। एन॰डी॰ए॰ सरकार ने जनता के कल्याण को हासिए पर ला दिया गया है और राजनीतिक लाभ के लिए संविधान बदलने की बात कर रहा है। एन॰डी॰ए॰ सरकार अम्बानी और अडानी जैसे पूँजीपतियो की इच्छा को पूरा करने के लिए यह सब कर रहा है। भारत का वर्तमान संविधान एक अमूर्त धरोहर है। यह संविधान आम लोगों की आत्मा है। अत: कोई संविधान को बदलने की बात कर रहा है तो इसका सीधा मतलब है भारत कि आम जनता को नज़र अन्दाज़ करना।
भारत के सभी वर्गों ख़ासकर नौजवानों को एन॰डी॰ए॰ सरकार की इस राष्ट्रविरोधी कार्य का विरोध करना चाहिए। बीजेपी को यह समझ लेना चाहिए की राजनीतिक लाभ के लिए संविधान नहीं होता है बल्कि जनमानस की भावना इसमें निहित होती है। भारत का वर्तमान संविधान स्वतंत्रता सेनानियों के आदर्शो का प्रतिबिम्ब है। इस संविधान को बदलने की बात करने वाले को भारत की जनमानस करारा जवाब देगी। लोकसभा और विधानसभा में बहुमत मिलने का मतलब यह नहीं है की कोई राजनीतिक दल संविधान ही बदल दे। लोकसभा और विधानसभा में बहुमत जनता की सेवा करने के लिए दिया जाता है ना की संविधान बदलने के लिए। भारत के वर्तमान संविधान में संशोधन का प्रावधान है इसका मतलब यह है की ऐसा लगे की वर्तमान समय के लिए इसमें कुछ अनुच्छेदों को शामिल करना ज़रूरी है या फिर कुछ अनुच्छेदों को हटाना ज़रूरी है तो संविधान संशोधन किया जा सकता है। लेकिन संविधान ही बदल दिया जाए यह कहना राष्ट्र विरोधी है।
डॉ० अम्बेडकर ने कहा था “संविधान चाहे जितना अच्छा हो, वह बुरा साबित हो सकता है, यदि उसका अनुसरण करने वाले लोग बुरे हों। यह कौन कह सकता है कि भारत की जनता और उसके दल कैसा आचरण करेंगे। अपना मक़सद हासिल करने के लिए वे संवैधानिक तरीके अपनाएंगे या क्रांतिकारी तरीके? यदि वे क्रांतिकारी तरीके अपनाते हैं तो संविधान चाहे जितना अच्छा हो, यह बात कहने के लिए किसी ज्योतिषी की आवश्यकता नहीं कि वह असफल ही रहेगा। वर्तमान समय में डॉ० अम्बेडकर की उपरोक्त कही बातें आज भी प्रासंगिक है।
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