मधेपुरा/ भूपेंद्र नारायण मंडल विश्वविद्यालय के चौथे दीक्षांत समारोह के दौरान बुधवार को अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के कार्यकर्ताओं द्वारा प्रदर्शन और हंगामा प्रशासनिक चूक का नतीजा माना जा रहा है। हंगामा और विरोध प्रदर्शन की घटना कोई अप्रत्याशित नहीं हुई और इस पर अचरज होने की भी जरूरत नहीं है। विद्यार्थी परिषद राज्यपाल सह कुलाधिपति फागु चौहान के खिलाफ पहले भी प्रदर्शन कर चुका है।
इससे पहले आरा में वीर कुंवर सिंह विश्वविद्यालय के कार्यक्रम में और पटना में पटना विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह में भी विद्यार्थी परिषद के कार्यकर्ता कुलाधिपति का विरोध जता चुके हैं। हैरत की बात यह है कि ऐसे हंगामे की आशंका जब पहले से थी तब छात्र संगठनों को दीक्षांत समारोह में प्रवेश दिया ही क्यों गया। सूत्र बताते हैं कि महामहिम के कार्यक्रम को लेकर प्रशासन को राज्य सरकार की खुफिया रिपोर्ट भी आई थी जिसमें कहा गया था कि महामहिम को काला झंडा दिखाए जाने की संभावना है। हालांकि रिपोर्ट में किसी का छात्र संगठन का जिक्र नहीं किया गया था। बावजूद इसके किसी दीक्षांत समारोह में पहली बार छात्र संगठनों को प्रवेश की अनुमति देना प्रशासनिक चूक नहीं तो और क्या है। वह भी तब जब बीएनएमयू में भ्रष्टाचार, सेशन लेट, परीक्षा परिणाम में गड़बड़ी सहित अन्य मुद्दों को लेकर विभिन्न छात्र संगठन लगातार आंदोलन करते रहे हैं।
ऐसे में सवाल उठना लाजमी है कि जब इस तरह के हंगामे की आशंका पहले से थी तब विश्वविद्यालय प्रशासन ने छात्र संगठनों को प्रवेश की अनुमति दी ही क्यों ? अगर उन्हें प्रवेश की अनुमति दी भी गई थी और प्रशासन को पहले से अलर्ट किया गया था तो इस तरह के हंगामे को रोकने का प्रयास किया क्यों नहीं गया। इन सबसे इतर क्या प्रशासन और विश्वविद्यालय के पदाधिकारियों को इस आंदोलन की किसी तरह की खुफिया जानकारी नहीं मिली मिल सकी।
बहरहाल दीक्षांत समारोह में महामहिम के सामने इस तरह के हंगामे ने विश्वविद्यालय की प्रतिष्ठा पर दाग तो लगा ही दिया।