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सरकारी कोशिशों के बावजूद नहीं थम रहा बाल विवाह

बढ़ते बाल विवाह पर सुप्रीम कोर्ट ने जताई नाराजगी, दिए दिशा निर्देश

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हेमलता म्हस्के
समाजसेविका सह साहित्यकार

देश में बाल विवाह रुक नहीं रहे। सरकारी कोशिशें जारी हैं बावजूद जागृति के अभाव में बच्चों के मानवाधिकारों का हनन किया जा रहा है। बाल विवाह से बच्चों के जीवन से कितना बड़ा खिलवाड़ किया जा रहा है इससे भारतीय समाज अंजान नहीं हैं फिर भी इस पर रोक के लिए पूरा समाज एकजुट नहीं हो पाया है। अब बाल विवाह के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने भी दखल देकर सख्त टिप्पणी की है और सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ की पीठ ने बाल विवाह के मामले में जरूरी दिशानिर्देश भी जारी किए हैं।

बाल विवाह से तात्पर्य 18 वर्ष से कम आयु के बच्चे और किसी वयस्क या अन्य बच्चे के बीच किसी औपचारिक विवाह या अनौपचारिक मिलन से है। पिछले दशक में इस हानिकारक प्रथा में लगातार गिरावट के बावजूद, बाल विवाह व्यापक रूप से फैला हुआ है, दुनिया भर में लगभग पाँच में से एक लड़की की शादी बचपन में ही हो जाती है।

अपने देश में हो रहे बाल विवाह के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट ने कड़ी नाराजगी जताई है। सुप्रीम कोर्ट ने  सख्त टिप्पणी करते हुए कहा कि बाल विवाह निषेध अधिनियम को व्यक्तिगत कानूनों के जरिए बाधित नहीं किया जा सकता। साथ ही कोर्ट ने कहा कि बच्चों से संबंधित विवाह और अपनी पसंद का जीवन साथी चुनने की स्वतंत्र इच्छा का उल्लंघन है। इससे उनके पंसद का जीनसाथी चुनने का विकल्प खत्म हो जाता है।

देश में बाल विवाह में वृद्धि का आरोप लगाने वाली जनहित याचिका पर फैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने बाल विवाह की रोकथाम पर कानून के प्रभावी कार्यान्वयन के लिए कई दिशानिर्देश जारी किए। चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया डीवाई चंद्रचूड़, जज जेबी पारदीवाला और जज मनोज मिश्रा की पीठ ने देश में बाल विवाह रोकथाम कानून के प्रभावी क्रियान्वयन के लिए ये दिशानिर्देश जारी किए हैं।

सीजेआई चंद्रचूड़ ने कहा कि बाल विवाह रोकथाम कानून को पर्सनल लॉ के जरिए बाधित नहीं किया जा सकता। कोर्ट के दिशानिर्देश में कहा गया कि इस तरह के विवाह नाबालिगों की जीवन साथी चुनने की स्वतंत्र इच्छा का उल्लंघन हैं। प्राधिकारियों को बाल विवाह की रोकथाम और नाबालिगों की सुरक्षा पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए तथा अपराधियों को अंतिम उपाय के रूप में दंडित करना चाहिए।

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पीठ ने यह भी कहा कि बाल विवाह रोकथाम कानून में कुछ खामियां हैं। बाल विवाह निषेध अधिनियम, 2006 बाल विवाह को रोकने और समाज से उनके उन्मूलन को सुनिश्चित करने के लिए लागू किया गया था। इस अधिनियम ने 1929 के बाल विवाह निरोधक अधिनियम का स्थान लिया।

पीठ ने कहा, ‘ये रणनीति अलग-अलग समुदायों के लिए बनाई जानी चाहिए। कानून तभी सफल होगा जब बहु-क्षेत्रीय समन्वय होगा। कानून प्रवर्तन अधिकारियों के प्रशिक्षण और क्षमता निर्माण की आवश्यकता है। हम इस बात पर जोर देते हैं कि समुदाय संचालित दृष्टिकोण की आवश्यकता है।’

देश में बाल विवाह के खिलाफ कानून बनाए जाने के बाबजूद भारत में हर साल करीब 15 लाख लड़कियों की शादी 18 साल से कम उम्र में होती है। दुनिया में सबसे ज़्यादा बाल विवाह होने वाले देशों में भारत का नाम सबसे ऊपर है। भारत में बाल विवाह की राष्ट्रीय औसत दर करीब 23.3 प्रतिशत है। आठ राज्यों में बाल विवाह की दर राष्ट्रीय औसत से ज़्यादा है।

बिहार, झारखंड, राजस्थान, और आंध्र प्रदेश में बाल विवाह का प्रचलन 60% से ज़्यादा है।छत्तीसगढ़ में 12.1% बालिकाओं का विवाह 18 साल से कम उम्र में होता है। सूरजपुर ज़िले में सबसे ज़्यादा 34.28% बाल विवाह होता है।गुजरात में लड़कों के बाल विवाह में 2006 से 2021 के बीच 121.9% की बढ़ोतरी हुई है। साल 2021 में गुजरात में बाल विवाह कराए गए लड़कों की संख्या 2.31 लाख थी। अभी हाल ही में राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) ने भी यह उजागर किया है   कि उनकी ओर से वर्ष 2023-24 में बाल विवाह की आशंका वाले 11 लाख से अधिक बच्चों की पहचान की और परिवार परामर्श, स्कूल पहुंचाने के प्रयासों और कानून प्रवर्तन के साथ समन्वय जैसे कदम उठाए गए हैं।

आयोग की एक रिपोर्ट में बाल विवाह निषेध अधिकारियों (सीएमपीओ), जिला अधिकारियों और अन्य हितधारकों के सहयोग से बाल विवाह निषेध अधिनियम (पीसीएमए), 2006 के तहत किए गए प्रयासों को उल्लेख किया गया है।

रिपोर्ट के मुताबिक जागरुकता अभियानों के माध्यम से 1.2 करोड़ से अधिक लोगों तक पहुंचा गया तथा उत्तर प्रदेश, तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश बाल विवाह के खिलाफ लड़ाई में अग्रणी बनकर उभरे।

यह रिपोर्ट स्कूल छोड़ने के जोखिम वाले बच्चों पर डेटा प्रस्तुत करती है, जो बाल विवाह में योगदान देने वाला एक प्रमुख कारक है।

एनसीपीसीआर के मुताबिक पूरे भारत में 11.4 लाख से अधिक ऐसे बच्चों की पहचान की गई, जिनके बाल विवाह का शिकार बनने की आशंका अधिक थी।

उसने कहा कि इन बच्चों को इस समस्या से बचाने के लिए पारिवारिक परामर्श, स्कूल से जोड़ने के प्रयासों और कानून प्रवर्तन के साथ समन्वय के माध्यम से कई कदम उठाए गए।

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