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थानाध्यक्ष भेष बदलकर बना न्याय का सिपाही, बेटी ही निकली पिता की कातिल

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पतरघट,सहरसा | 14 मई की सुबह जब लक्ष्मीपुर गांव के ग्रामीणों ने सड़क किनारे एक अर्धनग्न शव को पड़ा देखा, तो पूरा गांव सन्न रह गया। किसी को अंदाज़ा नहीं था कि यह मामला एक पिता के खून से जुड़ा होगा — और वो भी खून अपने ही परिवारजनों के हाथों।

शव की पहचान गांव के 55 वर्षीय किसान मदन सिंह के रूप में हुई। मामला उलझा हुआ था। सुराग न के बराबर थे। लेकिन तब सामने आए पतरघट थानाध्यक्ष रौशन कुमार, जिनकी समझदारी, ईमानदारी और साहस ने पूरे केस की तस्वीर बदल दी।

ऐसे हुआ घटना का खुलासा: जब कोई गवाह सामने नहीं आया, तब रौशन कुमार ने अपनी वर्दी उतार दी, पगड़ी पहन ली, और आम इंसान बनकर हत्यारों की तलाश में निकल पड़े।
तकनीकी साक्ष्यों और स्थानीय मुखबिरों की मदद से उन्होंने एक गुप्त प्लान तैयार किया।
भेष बदलकर पहुँचे सोनबरसा राज थाना क्षेत्र के अमृता वार्ड 5, और वहां से एक शातिर अभियुक्त अंतोष उर्फ मंतोष कुमार को गिरफ्तार कर लिया।

पूछताछ शुरू हुई और धीरे-धीरे वह परत खुलती चली गई, जिसने सभी को दहला दिया।

पता चला कि यह हत्या किसी बाहरी ने नहीं, बल्कि खुद बेटी ने अपने पिता की करवाई थी — संपत्ति के लालच में। बेटी ने अपने पति संतू कुमार सिंह, अपने नाबालिग बेटे, और दोस्त मंतोष कुमार के साथ मिलकर यह पूरी साजिश रची। मदन सिंह को पहले घर में मारा गया, फिर शव को घसीटकर करीब 100 मीटर दूर सड़क किनारे फेंक दिया गया। शव के कपड़े फाड़कर, पहचान छिपाने की कोशिश की गई।


एसआईटी टीम की कार्रवाई:

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15 मई को मृतक के बड़े भाई की लिखित शिकायत पर पतरघट थाना कांड संख्या 61/25 दर्ज किया गया। सदर एसडीपीओ आलोक कुमार के नेतृत्व में एसआईटी टीम गठित की गई, जिसमें थानाध्यक्ष रौशन कुमार, पुअनि सोनू कुमार, सशस्त्र बल सहित कई अधिकारी शामिल थे। टीम ने तकनीकी जांच, कॉल डिटेल्स और मानवीय सूचनाओं के आधार पर

  • तीन अभियुक्तों को गिरफ्तार किया
  • एक नाबालिग को निरुद्ध किया
  • और पूरी साजिश का पर्दाफाश कर दिया

पूछताछ में सभी ने अपना जुर्म कबूल कर लिया।


थानाध्यक्ष रौशन कुमार की वाहवाही:

इस सनसनीखेज केस के खुलासे में थानाध्यक्ष रौशन कुमार की भूमिका सबसे निर्णायक रही।
उनकी सादगी, भेष बदलने की कला, सूझबूझ और दृढ़ता ने एक असंभव लगने वाले केस को मुमकिन बना दिया।

लोग कह रहे हैं — “ऐसे अधिकारी किसी फिल्म के हीरो लगते हैं, लेकिन रौशन कुमार असली ज़िन्दगी के हीरो हैं।” जहां एक तरफ बेटी ने पिता को मारकर रिश्तों को कलंकित किया, वहीं एक थानाध्यक्ष ने कानून और न्याय को फिर से भरोसेमंद बना दिया।

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