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स्थापना के 41 साल और कितना हुआ विकास,इतिहास रहा है हमेशा गौरवशाली

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संजय कुमार सुमन,साहित्यकार

अपने मजबूत व गौरवशाली अतीत के स्तंभ पर खड़े मधेपुरा जिले के उदाकिशुनगंज अनुमंडल का आज 41वां स्थापना दिवस है।30 जून 2017 यानी शुक्रवार का दिन उदाकिशुनगंज अनुमंडल वासियों के लिये ऐतिहासिक बन गया।यह स्वर्णिम क्षण था उदाकिशुनगंज अनुमंडल कार्यालय के नवनर्मित भवन के उद्घाटन कार्यक्रम का। हजारों अनुमंडल वासियों के उपस्थिति में जब राज्य सभा सांसद सह मधेपुरा के पूर्व केंद्रीय मंत्री शरद यादव के द्वारा नव दुल्हन की मानिंद सजे नवनर्मित अनुमंडल कार्यालय भवन का फीता काट कर उद्घाटन किया गया तो मानों पूरे अनुमंडल क्षेत्रवासी खुशी से झूम से गये।
ज्ञात हो कि कुल 6करोड़ 42लाख के व्यय से निर्मित इस विशाल कार्यालय भवन में अब लोगों को एक ही छत के नीचे तमाम अनुमंडल स्तरीय पदाधिकारी उपलब्ध मिलेंगे।जी हाँ,अनुमंडल कार्यालय सहित अब यहां ही अनुमंडल पदाधिकारी का न्यायालय, भूमि सुधार उपसमाहर्ता का कार्यालय तथा न्यायालय, कार्यपालक दंडाधिकारी का कार्यालय एवं न्यायालय, अवर निबंधक पदाधिकारी का कार्यालय एवं न्यायालय, उपकोषागार पदाधिकारी का कार्यालय न्यायालय, उपनिर्वाचन पदाधिकारी का कार्यालय, अनुमंडल कल्याण पदाधिकारी का कार्यालय तथा अनुमंडल पुलिस पदाधिकारी का कार्यालय और प्रकोष्ठ सब यहां ही एक छत के नीचे स्थायी तौर पर अपना कार्य करना शुरू हो गया है।


260 वर्ग मील में फैले इस उदाकिशुनगंज को 21 मई 1983 के दिन अनुमंडल का दर्जा प्राप्त हुआ था। छ: प्रखंडों का प्रतिनिधित्व करने वाले इस अनुमंडल अंतर्गत कुल 76 ग्राम पंचायत हैं।
16वीं सदी के छाया परगना के अधीन यह क्षेत्र घनघोर जंगल, कोसी नदी तथा उसकी छाड़न नदियों से आच्छादित हुआ करती थी।
किवदंतियों के अनुसार, छोटा नागपुर से मात्र एक परिवार चलकर इस दुर्गम स्थान पर पहुँचा और यहीं का होकर रह गया। कहते हैं, उसी परिवार के एक हरीश नामक व्यक्ति ने घूम-घूमकर विभिन्न जातियों तथा संप्रदायों से जुड़े परिवारों को यहाँ एकत्रित कर बसाना शुरू किया और धीरे-धीरे यहाँ की आबादी ने नगर का रूप ले लिया।
सन् 1703 ई० में उदय सिंह नामक एक क्षत्रिय चंदेल राजपूत ने इस क्षेत्र पर अपना अधिकार जमाया और यहाँ के वासिंदो के लिये कुंआ, सराय, आवागमन तथा जान-माल की रक्षा आदि जैसी सुविधाओं को लोगों तक पहुँचाया। तत्पश्चात उदय सिंह के उत्तराधिकारियों ने शाह शुजा से अपने अधीनस्थ क्षेत्र के राजस्व का वैधानिक फरमान प्राप्त कर शासन का सूत्रधार बना। कहा यह भी जाता है कि उदय सिंह और किशुन सिंह दो भाइयों के नाम पर इसका नाम उदाकिशुनगंज पड़ा है।
उदाकिशुनगंज अनुमंडल क्षेत्र का अपनी ऐतिहासिक व सांस्कृतिक पहचान के अलावे आजादी में भी महत्वपूर्ण योगदान रहा है। यहाँ के बाजा साह स्वतंत्रता संग्राम की लड़ाई में 20 अगस्त 1942 को शहीद हुए थे। इनको पूरे कोसी क्षेत्र में पहला शहीद होने का गौरव प्राप्त है।

गौरवशाली अतीत
उदाकिशुनगंज अनुमंडल के तीन दर्जन से अधिक ऐतिहासिक स्थलों को चिन्हित किया गया है। इसमें खुरहान, करामा, पचरासी, मधुकरचक, रजनी, बभनगामा, गमैल आदि ऐतिहासिक स्थल हैं जो उदाकिशुनगंज अनुमंडल के गौरवशाली अतीत को रेखाकित करता है।
वहीं अनुमंडल अंतर्गत सरसंडी ग्राम में बादशाह अकबर द्वारा निर्मित एक विशाल मस्जिद जो मिट्टी में दबी हुई है, अकबर कालीन गंधबरिया राजा बैरीसाल का किला,चंद्रगुप्त द्वितीय काल में स्थापित नयानगर का मां भगवती मंदिर,चंदेल शासकों द्वारा शाह आलमनगर में निर्मित जलाशय और दुर्ग, शाह आलमनगर के खुरहान में स्थित माँ डाकिनी का अतिप्राचीन मंदिर, शाह आलमनगर में राजा का ड्योढ़ी, चौसा में स्थित मुगल बादशाह रंगीला के समकालीन चरवाहाधाम पचरासी, चौसा के चंदा में स्थित अलीजान शाह का मकबरा, ग्वालपाड़ा के नौहर ग्राम में मिले अवशेष आदि अनगिनत साक्ष्य उदाकिशुनगंज अनुमंडल के समृद्ध इतिहास के प्रमाण आज भी मौजूद हैं।
महर्षि मेंही अवतरण भूमि, मझुआ


यहाँ स्थित भव्य सत्संग आश्रम इस जिले का प्रमुख आकर्षण केन्द्र है। यहाँ एक भव्य सत्संग आश्रम बना है, जो कि अत्यंत सुन्दर है।20 वी सदी के महान संत महर्षि मेंही परमहंस जी महाराज का जन्म मधेपुरा जिले के मझुआ ग्राम मेंं 28-04़़-1885 ईस्वी को हुआ था ।
बाबा बिशु राउत पचरासी धाम

मधेपुरा के चौसा प्रखंड सबसे अंतिम छोर पर अवस्थित बाबा बिशु राउत पचरासी धाम लोगो की आस्था का केंद्र है।लोक देव के रूप में चर्चित पशु पलकों के लिए पूजन का महत्पूर्ण केंद्र बन जाता है।चरवाहा विद्यालय का श्रेय भी इसी मंदिर को जाता है।

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कैसे मिला अनुमंडल का दर्जा?
विभिन्न स्रोतों से मिली जानकारी के अनुसार अंग्रेजी हुकूमत के समय (सन्-1883) यहां मुंसिफ कोर्ट हुआ करता था। 80 वर्ष बाद 1962 में आयी भयंकर बाढ़ के कारण यहाँ का मुंसिफ कोर्ट सुपौल में स्थानांतरित कर दिया गया। 1970 में शिक्षाविद कुलानंद साह के नेतृत्व में उदाकिशुनगंज को अनुमंडल का दर्जा दिये जाने की मांग उठी। करीब दो दशक बाद उदाकिशुनगंज के तत्कालीन विधायक सिंहेश्वर मेहता, पूर्व मंत्री वीरेन्द्र सिंह तथा पूर्व मंत्री विधाकर कवि, एम एल सी वागेशवरी परसाद सिंह के सकारात्मक प्रयास के बदौलत ही इसे अनुमंडल का दर्जा प्राप्त हुआ। उपलब्ध जानकारी के अनुसार, 21 मई1983 ई० में तत्कालीन मुख्यमंत्री डॉ० जगन्नाथ मिश्रा के करकमलों द्वारा एच.एस उच्च विद्यालय के मैदान में अनुमंडल का उद्घाटन किया गया। उस समय इस अनुमंडल का कार्यालय, एच. एस. उच्च विद्यालय के छात्रावास में ही बनाया गया था। यह करीब 1993 तक चला। इसके बाद से अबतक यह अनुमंडल कार्यालय सरकार द्वारा अधिकृत जमीन पर बने सामुदायिक भवन में ही चल रहा है। हालांकि पास ही स्थायी व भव्य अनुमंडल कार्यालय भवन बन कर तैयार हो चुका है जो अपने उद्घाटन की बाट जोह रहा है।

उदाकिशुनगंज अनुमंडल की कुछ महत्वपूर्ण जानकारियाँ
अनुमंडल अंतर्गत एक मात्र बिहारीगंज रेलवे स्टेशन 1931 में बना। गृह आरक्षी विभाग के आदेश से 16 अक्टूबर 1914 को उदाकिशुनगंज में थाना बना। 1अप्रैल 1932 को उदाकिशुनगंज में प्रखंड कार्यालय शुरू हुआ। 1987 में यहाँ करीब तीन करोड़ की लागत से उपकारा का निर्माण करवाया गया। 29जनवरी 1995 को यहाँ अंचल कार्यालय का शुभारम्भ हुआ। इलाके की चिरप्रतीक्षित मांग अनुमंडल कोर्ट का शुभारम्भ यहाँ 7 सितम्बर 2014 को माननीय उच्च न्यायालय की चीफ जस्टिस रेखा एम दोशित के करकमलों द्वारा किया गया।
नहीं लग पाया उद्योग
अनुमंडल क्षेत्र में चीनी मील, फूडपार्क, इंडस्ट्रीयल ग्रोथ सेंटर, मक्का अधारित उद्योग लगाने का मामला ठंडे बस्ते में चला गया। जबकि उद्योग लगने से क्षेत्र के लोग समृद्ध होते।
उच्च शिक्षा की व्यवस्था नहीं
अनुमंडल में उच्च शिक्षा के नाम पर हरिहर साहा महाविद्यालय एक मात्र सरकारी शिक्षण संस्थान है। यद्यपि कालेज में महज कला संकाय के कुछ विषयों के पढ़ाई की सुविधा है।

कॉलेज में भवन का अभाव है। इस कारण आर्थिक रूप से कमजोर बच्चे उच्च शिक्षा से वंचित रह जा रहे है।उदाकिशुनगंज अनुमंडल को पुलिस जिला बनाने की चीर लंबित मांगे पूरी नहीं हो पाई। अनुमंडल के फुलौत, सोनामुखी, नयानगर में प्रखंड और मंजौरा और खाड़ा में थाना बनने का प्रस्ताव सरकार के फाइलों में दबकर रह गया।
हटाया गया ड्रनेज विभाग का कार्यालय
इस क्षेत्र में 90 फीसदी लोग खेती और मजदूरी कर जीवन यापन करते हैं। खेती के सिचाई के लिए साधन नहीं है। नहरों और नलकूपों की स्थिति सही नहीं है। यद्यपि राजकीय नलकूपों की संख्या अपेक्षाकृत बहुत ही कम है। जिसमें अधिकांशत: नलकूप खराब पड़े है।यहां पर रोजगार के साधन नहीं है। मजदूरी के लिए लोगों को बाहर के प्रदेश जाना पड़ता है। इलाके में जलजमाव के कारण लाखों हेक्टेयर भूमि अनउपजाऊ बना हुआ है। जल निकासी के लिए ड्रनेज विभाग के कार्यालय को यहां से हटाकर कोपरिया भेज दिया गया।
यातायात सुविधा का अभाव
कई जिले की सीमाओं से घिरा है कोसी कछार पर बसा उदाकिशुनगंज अनुमंडल यातायात के मामले में काफी पिछड़ा हुआ है।

क्षेत्र में रेल यातायात की सुविधा नहीं है।केवल बिहारीगंज को यह सुविधा प्राप्त है। सड़क यातायात पूर्ण रूप से विकसित नहीं है। 16 साल बाद भी एनएच 106 नहीं बन पाया। राष्ट्रीय उच्च पथ संख्या 106 पर फुलौत के कोसी नदी पर पुल निर्माण सहित सड़क निर्माण का काम शुरू कर दिया गया है।
सफर के लिए सरकारी बस की सुविधा नहीं।यातायात के अभाव में किसान व्यापारियों का विकास रूका हुआ है।बिहपुर से बिहारीगंज, कुर्सेला से सिमरीबख्तियारपुर तक रेल लाइन जोड़ने की मांग पुरानी हो चुकी है पर इस पर अब तक अमल नही किया जा सका है।पूर्व रेलमंत्री लालू प्रसाद यादव ने बिहपुर से बिहारीगंज भाया पचरासी स्थल को रेल सेवा से जोड़ने की घोषणा की पर अमलीजामा नही पहनाया जा सका।
समस्याएं और चुनौतियां भी कम नहीं
उपर्युक्त वर्णित गौरवशाली इतिहास और सुनहरे अतीत के आंकड़ों के अलावे भी कुछ बातें उदाकिशुनगंज अनुमंडल के वर्तमान दर्द को भी रेखांकित करता है।वर्ष 20 14 में सिविल कोर्ट और जेल बनने के बाद ही विकास बढ़ा। अनुमंडल को अपना बस पड़ाव तक नहीं मुख्यालय में बस पड़ाव भी नहीं है। इस वजह से सड़क पर ही वाहन खड़े कर यात्री को ढोया जाता है। अनुमंडल क्षेत्र में रेल यातायात की सुविधा नहीं सड़क यातायात विकास के मायने में अहम होगा। यूं कहें कि लोगों की उम्मीदें अभी बाकी है । अभी अनुमंडल स्थापना के बाद अपेक्षित विकास में अभी कमी है। लोगों की मांग पूरा नहीं हो पा रहा है। अनुमंडल स्थापना के समय से विकास को लेकर उम्मीद जगी। उस समय से आंशिक काम पूरे हुए। विकास की लंबी छलांग लगाने के लिए जनप्रतिनिधियों को आगे आना होगा। विकास की गति धीमी रहने की वजह भी जनप्रतिनिधि की उदासीन रवैया माना जा रहा है।अनुमंडल का समुचित विकास नहीं हो पाया है। राजनीतिक और आíथक कारणों से क्षेत्र पिछड़ा हुआ है।अनुमंडल को सुंदर बनाने का काम पूरा नहीं हो पाया है, जबकि हर सरकार में क्षेत्र से विधायक मंत्री रहे हैं।
शासकीय पॉलिटेक्निक मधेपुरा की स्थापना

पॉलिटेक्निक मधेपुरा की स्थापना बिहार सरकार द्वारा की गई है। बिहार सरकार ने इस अत्यंत पिछड़े और उपेक्षित क्षेत्र में संस्थान की स्थापना के लिए कष्ट उठाया और सपने को साकार करने के लिए दिन-रात अथक प्रयास किया। कॉलेज चार व्यावसायिक पाठ्यक्रमों में शिक्षण प्रदान करता है और बी.टेक के लिए प्रयास किए जा रहे हैं। समर्पित संकाय सदस्यों और कर्मचारियों के ईमानदार प्रयासों से कॉलेज का तेजी से विकास हुआ है। छात्रों का प्रदर्शन अच्छा और संतोषजनक है। चौसा में उच्च शिक्षा प्राप्त करना इस क्षेत्र के मूल निवासियों के लिए एक दिवास्वप्न था।शासकीय पॉलिटेक्निक मधेपुरा की स्थापना वर्ष 2016 में हुई थी। यह पॉलिटेक्निक सामाजिक रूप से पिछड़े वर्ग में स्थित है।
आईटीआई कॉलेज उदाकिशुनगंज की स्थापना


प्रत्येक महत्वाकांक्षी व्यक्ति की ऊर्जा को उत्कृष्टता की क्षमता की खोज के लिए, उच्चतम स्तर के अनुप्रयोग के लिए आईटीआई कॉलेज उदाकिशुनगंज खोला गया है जो चौसा प्रखंड के रसलपुर धुरिया में स्थापित है।एनसीवीटी के तहत उदाकिशुनगंज में सरकारी आईटीआई कॉलेज नवीनतम एनएसक्यूएफ स्तर के अनुसार है।बिहार राज्य के विकास को बढ़ावा देने के लिए आवश्यक कौशल प्रदान करके युवाओं को सशक्त बनाने के लिए बिहार सरकार द्वारा बिहार कौशल विकास मिशन (बीएसडीएम) का गठन किया गया है।आईटीआई कॉलेज के खुलने से अनुमंडल क्षेत्र के गरीब और मेधावी छात्रों का भविष्य संवरता रहा है।

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