तुषार की कोशी पीड़ितों से संवाद, यात्रा डायरी।
* कोशी की बड़ी आबादी मौलिक जरूरत से वंचित। * कोशी पीड़ितों के संघर्ष में देंगें साथ : तुषार गांधी।
तुरबसु/कोशी टाइम्स
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के प्रपौत्र तुषार गांधी 15 जुलाई को कोशी नदी के तटबंधों के बीच बसे गांवों की यात्रा पर निकले। उनके साथ कोशी टाइम्स के संपादक प्रशांत जी और मैं स्वयं था। कोशी नव निर्माण मंच के संस्थापक महेंद्र जी और संदीप जी से बांध के बीच बसे लोगों के जीवन और पीड़ा के बारे में कई बार सुना लेकिन पहली बार साक्षात अवगत होने का मौका मिला।

सबसे पहले कोशी महासेतु से उतरकर सभी यात्री बैंगा सनपतहा पहुंचे वहां के बाढ़ आश्रय स्थल पर संवाद हुआ। यह बाढ़ आश्रय स्थल खुद जर्जर था। लोगों ने बताया जब नदी में उफान आती है तो आश्रय स्थल खुद डूब जाता है। 2024 के बाढ़ में ऐसा ही हुआ था। यहां से नाव की करीब 30 किलोमीटर की यात्रा शुरू हुई।

दूसरा पड़ाव एकडेरा गांव था फिर यहां से निकलकर पंचगछिया पहुंचे। इस दोनों गांवों में कार्यक्रम स्थल नदी किनारे से करीब एक किलोमीटर दूर था। यहां के इंसानी बस्ती ऐसे हैं जहां एक भी कंक्रीट अथवा अलकतरा की सड़क नहीं दिखी। पंचगछिया में कार्यक्रम स्थल पर जाते हुए एक जगह तुषार गांधी जी पानी के कीचड़ भरे सोते में गिर गए। यहां एक टीन शेड वाले सरकारी स्कूल के बाहर कार्यक्रम हुआ। इस स्कूल में तीन शिक्षक हैं जो कभी आते हैं कभी नहीं। गांव की बच्ची बेहतर शिक्षा की मांग करती दिखी। गांव में बिजली के पोल लगे थे लेकिन लोगों ने बताया दिन में बिजली नहीं रहती सोलर ट्रांसमिशन से पहले रात में कुछ बल्ब के लिए बिजली दी जाती थी लेकिन अब उसमें से कई कट कर नदी में बह गए तो कुछ कई सालों ने खराब पड़े है। एक नौजवान ने गांव के लोगों की पीड़ा बताते हुए कहा यहां शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार हर मोर्चे पर लोग चुनौती का सामना करते हैं। किसी भी संकट की घड़ी में लोगों को गांव से निकलना होता है जो किसी चुनौती से कम नहीं है। यहां के 50 वर्ष वाले लोगों ने बताया आज तक उनके गांव में बीडीओ, सीओ से लेकर कोई डीएम तक नहीं पहुंचा है। नेता लोग कभी कभार वोट मांगने के लिए आ जाते हैं।

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यहां से निकलते ही नाव पर तेज बारिश का सामना हुआ। नाव पर तिरपाल ओढ कर उसके भीतर सभी लोग खुद को भीगने से बचाए। फिर नाव अगले पड़ाव के लिए खुली। अगला पड़ाव खोखनहा था। यहां हमलोग शाम 5 बजे पहुंचे। सैकड़ों महिला, पुरुष, बच्चे तुषार गांधी को अपनी पीड़ा बताने के लिए जमे थे। लोगों ने एक एक कर अपनी पीड़ा बताई। इधर रात हो रही थी मौसम भी खराब हो चुका था। लेकिन पीड़ित लोग मान नहीं रहे थे। बहुत बिनती के बाद वहां से हमलोग निकले अभी करीब 500 मीटर चले ही होंगे कि तेज बारिश ने घेर लिया। एक पाल के भीतर हमसब करीब एक घंटे बीच खेत में खरे रहे।

जब बारिश और हवा कम हुई तो पाल को ओढ़े हुए आगे बढ़े। जब नाव पर पहुंचे तो रात के 8 बज चुके थे। नाव पर पूरा सामान भीग चुका था। वहां से बेरिया मंच पर सभा होनी थी जिसे स्थगित कर दिया गया। रात में बीच कोशी में ख़राब मौसम के बीच हम लोग नदी के रास्ते को पहचानते निकलते रहे। कई जगह नदी की धारा के बीच बालू जमा होने के कारण नाव उससे टकराती, अचानक टकराने का अनुभव गाड़ी के पावर ब्रेक सा होता। टाइटैनिक बर्फ के पहाड़ से टकराई थी हम लोग बार बार बालू के पहाड़ से टकराते रहे। जब ये टक्कर होती लोग एक दूसरे पर गिरते। किसान नेता सूलीनम जी कुर्सी से नीचे गिर गए। तुषार जी की कुर्सी भी टूट गई।

तमाम चुनौती और संकट के बावजूद यात्रा रात करीब 10:30 बजे सुपौल बेरिया मंच पहुंची। यात्रा खत्म होने के बाद तुषार गांधी ने कहां आज़ादी का असल मकसद देश के हर व्यक्ति के साथ न्याय होना है। लेकिन 75 वर्ष बाद भी कोशी के लोगों की पीड़ा बताती है हम असल रूप से आजाद नहीं हुए हैं। उन्होंने कहा बापू ने बिहार के किसानों के लिए लड़ा मैं कोशी के पीड़ित लोगों की लड़ाई लड़ने का प्रयास करूंगा। विकास और सुशासन का विज्ञापन करने वाली सरकार सुपौल मुख्यालय से महज तीन से चार किलोमीटर की दूरी पर बसी एक बड़ी आबादी तक आज भी मूलभूत जरूरत नहीं पहुंचा पाई है।