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  • साल 2023 महिलाओं के लिए बरसों याद रहेगा

    बीतते हुए साल 2023 को महिलाओं को लेकर बरसों याद किया जाएगा क्योंकि यही वह साल है जब संसद में महिलाओं के प्रतिनिधित्व में बढ़ोतरी का विधेयक सर्वसम्मति से पारित हुआ। सैद्धांतिक रूप से ही सही पहली बार संसद में यह विधेयक पारित हुआ। जो महिलाओं की तरक्की की और उनके दबदबे की अभूतपूर्व मिसाल


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    हेमलता म्हस्के
    समाजसेविका सह साहित्यकार

    बीतते हुए साल 2023 को महिलाओं को लेकर बरसों याद किया जाएगा क्योंकि यही वह साल है जब संसद में महिलाओं के प्रतिनिधित्व में बढ़ोतरी का विधेयक सर्वसम्मति से पारित हुआ। सैद्धांतिक रूप से ही सही पहली बार संसद में यह विधेयक पारित हुआ। जो महिलाओं की तरक्की की और उनके दबदबे की अभूतपूर्व मिसाल है। इस राजनैतिक अधिकार को हासिल करने के बाद यह उम्मीद भी पैदा हुई है कि आने वाला भविष्य उनके दयनीय हालातों में आमूलचूल बदलाव जरूर लाएगा। लेकिन दूसरी ओर इस साल मणिपुर में महिलाओं की आबरू उतारने और पहलवान महिलाओं के साथ यौन उत्पीडन के मामलों के साथ इसी महीने दिसंबर में जारी
    राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) की रिपोर्ट के मुताबिक 2021 की तुलना में भारत में महिलाओं के खिलाफ रजिस्टर्ड अपराधों में 4 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। अपराध के ये आंकड़े बता रहे हैं कि जब तक देश में महिलाओं के अनुरूप सामाजिक,आर्थिक,राजनीतिक और प्रशासनिक ढांचे में बदलाव नहीं आते, महिलाओं पर अत्याचार कम नहीं होंगें। लगातार बढ़ते ही रहेंगे। यह भी उल्लेखनीय है कि महिलाओं ने इस साल विकास की प्रक्रियाओं में भी अपनी शानदार भागीदारी के झंडे धरती से गगन तक में गाड़े हैं। इस साल चंद्रयान 3 की सफलता पूरे देश के लिए बहुत बड़ी उपलब्धि है। चंद्रयान 3 की मुख्य निदेशक एक महिला ही थी जो रॉकेट वूमेन के नाम से जानी जाती हैं। देश और दुनिया में चंद्रयान 3 की सफलता को हासिल करने में रॉकेट वूमन के साथ पचास और अन्य महिलाएं भी शामिल थीं। चंद्रयान 3 की सफलता यह बता रही है कि पुरुषों के मुकाबले महिलाएं कहीं से भी कम नहीं है। पिछले कुछ दशकों में अपने क्षेत्रों के अलावा महिलाओं ने पुरुषों के वर्चस्व वाले सभी क्षेत्रों में अपनी कुशलता का परिचय दिया है। कामयाबी के परचम लहराए हैं । उन्होंने साबित किया है कि वे अब किसी से कम नहीं हैं। वहीं आज भी यह दुखद और शर्मनाक है कि महिलाओं पर अत्याचार घर में और बाहर भी बढ़ें हैं। दुर्गति यह है कि महिलाओं पर अत्याचार करने वाले को सजा नही मिलती और महिलाओं को उन्हीं के हवाले छोड़ दिया जाता है जो उन पर अत्याचार करते हैं। महिलाओं के साथ यह भी विडंबना है कि उन पर जब कभी अत्याचार होता है तो दोषियों के खिलाफ कोई कार्रवाई होने के बजाय महिलाओं पर ही दोष मढ दिया जाता है कि जरूर उनकी ही कोई गलती रही होगी। जैसे बलात्कार होने पर उनके कपड़ों और उनकी स्वतंत्रता को ही जिम्मेदार बता दिया जाता है।
    अब जरा अपराध के आंकड़ों पर गौर करें
    2022 की एनसीआरबी रिपोर्ट में महिलाओं के खिलाफ अपराध के तहत 4,45,256 मामले दर्ज किए गए, वहीं 2021 में यह संख्या 4,28,278 थी । रिपोर्ट के मुताबिक 2021 में 2020 के मामलों की तुलना में महिलाओं के खिलाफ अपराधों में 15.3 प्रतिशत की बढ़ोतरी देखी गई थी।
    आईपीसी की विभिन्न धाराओं के तहत महिलाओं के खिलाफ ज्यादातर मामले ‘पति या उसके रिश्तेदारों द्वारा क्रूरता’ (31.4 प्रतिशत) के थे, इसके बाद ‘महिलाओं का अपहरण’ (19.2 प्रतिशत), शील भंग (गरिमा के ठेस पहुंचाने) करने के इरादे से ‘महिलाओं पर हमले’ के तहत (18.7 प्रतिशत) और ‘बलात्कार’ (7.1 प्रतिशत) के मामले दर्ज किए गए.

    2022 में, दिल्ली में लगातार तीसरे साल 14,158 मामलों के साथ महानगरों में महिलाओं के खिलाफ अपराध के तहत सबसे अधिक मामले दर्ज किए गए. ‘महिलाओं की गरिमा को ठेस पहुंचाने के इरादे से उन पर हमला’ और ‘महिलाओं के अपहरण’ की कटेगरीज के तहत दर्ज मामलों में दिल्ली 19 महानगरों में आगे रहा है।
    सभी राज्यों में, उत्तर प्रदेश, आईपीसी और विशेष और स्थानीय कानूनों के तहत महिलाओं के खिलाफ दर्ज मामलों में सबसे ज्यादा 65,743 की संख्या के साथ फिर से सूची में सबसे ऊपर है, इसके बाद महाराष्ट्र 45,331 मामले, राजस्थान 45,058 मामलों के साथ है. 2021 में, यूपी में महिलाओं के खिलाफ अपराध के 56,083 मामले दर्ज किए गए, इसके बाद राजस्थान (40,738 मामले) था. केंद्र शासित प्रदेशों में, दिल्ली 2022 में 14,247 मामलों के साथ इस श्रेणी में सबसे आगे है।

    2022 में ‘बलात्कार/गैंगरेप के साथ हत्या’ की श्रेणी में उत्तर प्रदेश 62 पंजीकृत मामलों के साथ फिर से सूची में सबसे ऊपर है। इसके बाद मध्य प्रदेश 41 के साथ दूसरे नंबर पर है।
    पिछले साल, यह असम था, जो 46 मामलों के साथ इस श्रेणी में उत्तर प्रदेश से पीछे था। राज्य में इस साल बड़ी गिरावट देखी गई है और ऐसे केवल 14 मामले दर्ज किए गए हैं।
    दहेज को लेकर मौत के मामलों में, 2022 में 2,138 मामलों के साथ उत्तर प्रदेश फिर से आगे है ।इसके बाद 1,057 मामलों के साथ बिहार है।
    जबकि 2021 में पूरे भारत में बलात्कार की कुल 31,677 घटनाएं दर्ज की गईं, 2022 में 31,516 मामलों के साथ मामूली गिरावट देखी गई. इस श्रेणी में, राजस्थान फिर से आगे है हालांकि 2021 में 6,337 मामलों के साथ 2022 में 5,399 मामलों की थोड़ी गिरावट के साथ- इसके बाद उत्तर प्रदेश 3,690 पर है। जिस तरह महिलाओं को राजनैतिक अधिकार हासिल हुआ है। धीरे धीरे मतदान ने जैसी जैसी उनकी रुचि बढ़ती जा रही है वह यह उम्मीद जाग रही है कि वे अपने साथ होने वाले भेदभाव को बहुत दिनों तक बर्दास्त करने वाली नही हैं। पुरुषों द्वारा महिलाओं पर रोजाना मानसिक अत्याचार होते है लेकिन इसे अपराध माना ही नही जाता। महिलाएं अब मानसिक अत्याचार को अब बहुत दिनों तक चुपचाप झेलने वाली नही हैं।

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