देश में बढ़ रही है भीख मांगने वालों की संख्या
2026 तक भिक्षा वृति मुक्त भारत बनाने में खड़ी हैं कठोर चुनौतियां
अपने देश में अब भीख मांगने पर रोक लगेगी क्योंकि उनके संरक्षण और पुनर्वास के लिए कोशिश की जा रही है। देश में भीख मांगने वालों की संख्या बढ़ती जा रही है और इसे खत्म करने की दिशा में अभी तक गंभीरता से कोई कोशिश नहीं की जाती है हालांकि भिक्षा वृति के खिलाफ कुछ राज्यों में कानून भी बने हैं लेकिन वे इतने कारगर नहीं हैं, जिससे इस पर पूरी तरह से रोक लग सके। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने भिखारियों की बढ़ती संख्या को देखते हुए केंद्र और राज्य सरकारों को जो सिफारिशें भेजी हैं, उनमें भिक्षा वृति में लगे लोगों की स्थिति में सुधार और उनके पुनर्वास की शुरुआत हो सकती है।
अभी हाल ही में आयोग के महासचिव भरत लाल ने केंद्र और राज्य सरकारों से जल्द से जल्द सिफारिश पर अमल करने और अगले दो महीने में इस पर की गई समस्त कार्रवाई की रिपोर्ट पेश करने को कहा है। आयोग ने भिखारियों को भी बराबर का हक दिए जाने की वकालत करते हुए कहा है कि भिक्षा में लगे लोगों की मौजूदगी हाशिए पर पड़े और कमजोर समुदायों के सामने आने वाली चुनौतियों को दर्शाती हैं । भिक्षा वृति का कारण सिर्फ गरीबी नहीं है बल्कि यह एक सामाजिक और आर्थिक समस्या है जहां शिक्षा और रोजगार से वंचित लोग अपनी आजीविका के लिए भीख मांगने को मजबूर होते हैं। यह समस्या खासकर शहरों में अधिक दिखाई पड़ती है । हर बड़े और छोटे शहरों में धार्मिक और पर्यटन स्थलों पर भीख मांगने वालों में ज्यादातर महिलाएं, बच्चे, किन्नर, बुजुर्ग और दिव्यांग होते हैं । अपने देश में भीख मांगना एक अहम सामाजिक समस्या रही है जिसके पीछे गरीबी ,शिक्षा की कमी, बेरोजगारी , सामाजिक असमानता और दिव्यांगता आदि वजहें हैं।
2011 की जनगणना के अनुसार में जहां देश में करीब चार लाख से अधिक लोग भिक्षा वृति से जुड़े हुए थे । वहीं मौजूदा समय में उनकी संख्या बढ़कर करीब 7 लाख पहुंचने का अनुमान है। भिखारियों की संख्या बढ़ने का यह अनुमान केंद्रीय सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय की ओर से शहरों को भिक्षा वृति मुक्त बनाने को लेकर शुरू किए गए अभियान के दौरान लगा है । शहरों में इस अभियान को शुरू करने से पहले इनका सर्वे कराया गया था हालांकि यह योजना मौजूदा समय में करीब 30 शहरों में ही चलाई जा रही है जिसका लक्ष्य 2026 तक भिक्षा वृति मुक्त भारत बनाने का है। लेकिन इसे लेकर राज्यों का जो रवैया है उनमें इस लक्ष्य को हासिल कर पाना एक बड़ी चुनौती है।
भारत के राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग ने भीख मांगने में लगे गरीब, अशिक्षित बच्चों, महिलाओं और दिव्यांगजनों के संरक्षण और पुनर्वास के लिए केंद्र और राज्य सरकारों तथा संघ राज्य क्षेत्र के प्रशासन द्वारा कार्रवाई के लिए आठ प्रमुख क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करने को कहा है। सिफारिश के मुताबिक केंद्रीय
सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय को नगर निगमों और सरकारी एजेंसियों की सहायता से निर्धारित मापदंडों पर पहचाने गए भीख मांगने में लगे लोगों का एक केंद्रीकृत डेटाबेस बनाने की सलाह दी गई है। आयोग ने
भीख मांगने में लगे लोगों के संरक्षण और पुनर्वास पर एक राष्ट्रीय नीति का मसौदा तैयार करने की सिफारिश की है, ताकि लक्षित वित्तीय सहायता, व्यावसायिक प्रशिक्षण, गरीबी उन्मूलन और निरंतर निगरानी और पर्यवेक्षण के साथ रोजगार के अवसरों सहित उनके लिए कल्याणकारी योजनाएं बनाने और उन्हें कार्यान्वित किया जा सके। आयोग ने
यह सुनिश्चित करने के लिए भी कहा है कि सामाजिक सुरक्षा हेतु डिजिटल और प्रिंट मीडिया दोनों में जागरूकता अभियान शुरू कर संगठित/जबरन भीख मांगने की समस्या को सभी रूपों में समाप्त किया जा सके।
आयोग ने केंद्र और राज्य सरकारों से भीख मांगने वाले लोगों के जीवन की गुणवत्ता को बढ़ाने के उद्देश्य से रणनीति विकसित करने के लिए कहा है। आयोग ने चिंता जाहिर की है कि सरकारों द्वारा कई पहलों और कल्याणकारी कार्यक्रमों के क्रियान्वयन के बावजूद देश भर में भीख मांगने की समस्या अभी तक बनी हुई है। ।
आयोग ने कहा है कि संगठित समूह अक्सर कमजोर बच्चों को भीख मांगने के लिए प्रेरित करते हैं, ताकि इन समूहों के नेता समृद्ध हो सकें। कुछ मामलों में, भीख मांगने में लगे लोगों खासकर बच्चों का अपहरण तक कर लिया जाता है और उन्हें भीख मांगने के लिए मजबूर किया जाता है, जिससे उनके अपहरणकर्ताओं को काफी धन प्राप्त होता है। जबरन भीख मांगने के किसी भी रैकेट पर अंकुश लगाने के लिए मानव दुर्व्यापार विरोधी कानून बनाने के लिए एक समाजशास्त्रीय और आर्थिक प्रभाव मूल्यांकन करना जरूरी है। इस कानून में भीख मांगने को मानव दुर्व्यापार के मूल कारणों में से एक के रूप में पहचाना जाना चाहिए और अपराधियों के खिलाफ दंडात्मक अपराध शामिल किए जाने चाहिए।
आयोग ने भीख मांगने की प्रथा से जुड़े मुद्दों का समाधान करने के लिए एक व्यापक दृष्टिकोण को अपनाने की जरूरत बताई है। इस समस्या के समग्र समाधान के लिए सामाजिक कल्याण हस्तक्षेप, बुनियादी सुविधाओं तक पहुँच, उनके अधिकारों की रक्षा और उन्हें समाज में फिर से शामिल करने में मदद करने के लिए मजबूत कानूनी ढाँचा और प्रवर्तन करने की जरूरत बताई है। आयोग ने कहा है कि भीख मांगने के कारण को सामने लाने के लिए भिखारियों के सर्वेक्षण, पहचान, मानचित्रण और डेटा बैंक तैयार करना, भिक्षावृत्ति में लगे लोगों का पुनर्वास, स्वास्थ्य सेवा, शिक्षा, कानूनी और नीतिगत ढाँचा, गैर सरकारी संगठनों, नागरिक समाज संगठनों, निजी क्षेत्र, धर्मार्थ ट्रस्टों आदि के साथ सहयोग, वित्तीय सेवाओं तक पहुँच, जागरूकता पैदा करना, संवेदीकरण और निगरानी शामिल हैं।
भीख मांगने में लगे लोगों की शारीरिक, मानसिक और सामाजिक स्थिति के साथ एक राष्ट्रीय डेटाबेस बनाने के लिए नगर निगमों या सरकारी एजेंसियों की मदद से विस्तृत जानकारी एकत्र करने के लिए सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय द्वारा एक मानकीकृत सर्वेक्षण प्रारूप विकसित किया जाना चाहिए, जिसे सभी हितधारकों के लिए सुलभ एक ऑनलाइन पोर्टल/डैशबोर्ड पर नियमित रूप से अपडेट किया जाना चाहिए;
आयोग ने कहा है कि यह सुनिश्चित करें कि भिक्षावृत्ति में लिप्त लोगों की पहचान प्रक्रिया पूरी होने के बाद, उन्हें शहरों या जिलों में स्थित आश्रय गृहों में लाया जाए, और उन्हें निवासियों के रूप में पंजीकृत किया जाए तथा राज्यों/संघ राज्य क्षेत्रों या अधिकृत एजेंसियों में संबंधित विभागों/नगरपालिकाओं/ग्राम पंचायतों द्वारा पहचान पत्र जारी किए जाएं;
आश्रय गृह उन्हें उचित आवास और भोजन की सुविधा, कपड़े, स्वास्थ्य सेवा, आधार कार्ड, राशन कार्ड और बैंक खाते खोलने में सहायता सहित अन्य जरूरी सेवाएं मुहैया करे। जरूरत पड़े तो अधिकारी भिखारियों के लिए शिविर आयोजित कर उन्हें जानकारी दे।
भिक्षावृत्ति को कम करने के लिए जगह जगह जागरूकता सृजन शिविर आयोजित करें और विभिन्न सरकारी कल्याणकारी योजनाओं और स्वरोजगार सहित रोजगार के अवसरों के बारे में जानकारी प्रसारित करें।
लाभार्थियों को शिक्षित, संवेदनशील बनाया जाना चाहिए तथा उन्हें केंद्र, राज्य/संघ राज्य क्षेत्र की विभिन्न योजनाओं/सेवाओं जैसे खाद्य सुरक्षा, स्वास्थ्य, आवास, वित्तीय सुरक्षा, पेयजल, रसोई गैस, बिजली आदि से संबंधित लाभ प्राप्त करने के लिए जरूरी सहायता की जानी चाहिए। बच्चों, महिलाओं, वृद्धजनों, दिव्यांगजनों तथा भीख मांगने में शामिल मादक द्रव्यों के सेवन के आदी लोगों की आवश्यकताओं को पूरा करने पर विशेष जोर दिया जाना चाहिए। साथ ही यह
सुनिश्चित करें कि आश्रय गृह भीख मांगने में शामिल लोगों के पुनर्वास की प्रक्रिया का समर्थन करने के लिए मानसिक स्वास्थ्य परामर्श, नशामुक्ति और पुनर्वास सेवाएं प्रदान करें। आश्रय गृह
के निवासियों को चिकित्सा सहायता और बीमा के लिए सरकारी योजनाओं से जोड़ा जाना चाहिए।खासकर
सभी बच्चों को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा सुनिश्चित करने के लिए भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 ए के तहत अनिवार्य शिक्षा के अधिकार अधिनियम, 2009 के तहत सरकारी या निजी स्कूलों में भीख मांगने में शामिल 6-14 वर्ष की आयु के सभी बच्चों को पंजीकृत और नामांकित किया जाए। आश्रय गृहों के निवासियों को उनकी योग्यता, क्षमता और वरीयता के अनुसार सरकारी मान्यता प्राप्त व्यावसायिक केंद्रों के सहयोग से कौशल विकास और व्यावसायिक प्रशिक्षण दिया जाए ताकि वे सम्मान का जीवन जी सकें। आश्रय गृह ऐसी भागीदारी को सुविधाजनक बनाने के लिए कॉर्पोरेट से भी संपर्क कर सकते हैं।
गैर सरकारी संगठन/नागरिक समाज समूह आश्रय गृहों के निवासियों को स्वयं सहायता समूह (एसएचजी) बनाने और स्वरोजगार के लिए ऋण प्राप्त करने में सहायता कर सकते है। सरकार इन निवासियों/एसएचजी को ऋण देने के लिए बैंकों को प्रोत्साहन या सब्सिडी प्रदान करने पर भी विचार कर सकती है।
राज्य और नगर निगम के अधिकारी भीख मांगने में लगे लोगों को उनके अधिकारों और हकों के बारे में जागरूक करने के लिए एक जन-संपर्क और मोबिलाइजेशन तंत्र स्थापित करें ताकि उनका शोषण रोका जा सके
राज्य/संघ राज्य क्षेत्र प्रशासन डिजिटल और प्रिंट मीडिया दोनों में अभियान शुरू करें ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि संगठित/जबरन भीख मांगने की सामाजिक बुराई को सभी रूपों में समाप्त किया जा सके। इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए, गैर सरकारी संगठनों/सीएसओ और मानव अधिकार संरक्षकों सहित विभिन्न हितधारकों को शामिल करके भीख मांगने के खिलाफ़ सेल (संगठित और असंगठित) शुरू किए जा सकते हैं।
अपने देश में 20 11 में हुई जनगणना के अनुसार भारत में 2,21 673 पुरुष और 1,91,997 महिलाओं सहित 4,13,670 भिखारी हैं। इनमें पश्चिम बंगाल में सबसे अधिक भिखारी 81,244, इसके बाद उत्तर प्रदेश में 65,835, आंध्र में 30218, बिहार में 29,723 मध्य प्रदेश में 28695, राजस्थान में 25,853 भिखारी हैं। दिल्ली में 2,187 और चंडीगढ़ में 121 और लक्षद्वीप में केवल दो भिखारी हैं। दादरा नगर हवेली में 19, दमन दीव में 22 और अंडमान निकोबार में 56 भिखारी हैं।