फर्जीवाड़े को शासन और प्रशासन का संरक्षण, पोल खुलने पर होती है FIR.
अजीत अंजुम की रिपोर्ट ने चुनाव आयोग का पोल खोला।
तुरबसु, कोसी टाइम्स।
देश के जाने – माने पत्रकार और वर्तमान में लोकतंत्र के सजग प्रहरी अजित अंजुम पर बेगूसराय के बलिया थाना में दर्ज FIR कई सवाल खड़े करते हैं। इसमें सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या यह FIR चुनाव आयोग के बड़े फर्जीवाड़े को उजागर होने की खिसियाहट में उठाया गया कदम है ? या श्री अंजुम कोई अनैतिक काम या अपराध किए थे। हमारे अनुसार तो यह पोल खुलने की खिसियाहट में उठाया गया कदम ही लगता है।
चुनाव आयोग बिहार चुनाव से पूर्व एक खास एजेंडे के तहत काम करना शुरू किया है। जो आरोप इस FIR में लगाया है उसे बिहार का और देश का हर नागरिक मान और समझ रहा है। लेकिन इस एजेंडे को न तो चुनाव आयोग स्वीकार करती है और न नागरिक खुलकर बोलने की हिम्मत जुटा पाते है। चुनाव से पहले बिहार के सांप्रदायिक माहौल को खराब कर वोट के ध्रुवीकरण की साज़िश का पता तो विपक्ष और बिहार के बुद्धिजीवियों को पहले से थी। लेकिन इसका हथियार देश की सबसे महत्वपूर्ण संस्था चुनाव आयोग बनेगी इसका अंदाजा नहीं था। देश की मुख्यधारा की मीडिया जिसे अब गोदी मीडिया के नाम से जाना जाता है, इस साजिश को सफल बनाने में लग भी गई। हाल के दिनों कई मीडिया स्थानों ने खबर चलाई कि सीमांचल के इलाके में जनसंख्या से अधिक आधार कार्ड बन गए हैं। लेकिन जब इसकी पड़ताल की गई तो सच्चाई सामने आई जनगणना रिपोर्ट 2011 का है और आधार कार्ड का रिपोर्ट 2025 का। लेकिन गोदी मीडिया ने इस बात को नहीं चलाया। इसके बाद इधर एक ओर खबर प्रमुखता से सूत्र के हवाले से चलाई गई। जिसमें बताया गया कि बिहार के कई जिलों में बड़ी संख्या में विदेशी नागरिक जिसमें नेपाली, बांग्लादेशी का नाम शामिल हैं, फर्जी तरीके से भारत के कई फर्जी डॉक्यूमेंट बना चुके हैं।

विज्ञापन

इस तरह की खबरों का चाहे जितना खंडन हो या इस पर विपक्षी दलों द्वारा जो भी प्रतिक्रिया आए लेकिन ये खबर बिहार में अपना काम कर दे रही है। ऐसे फर्जी और बिना प्रामाणिक डेटा की खबरें उस अप्रत्यक्ष एजेंडे को सफल कर रही हैं। आम बहुसंख्यक लोग जिसके दिमाग में नफरती वायरस पनप रहा है उनको लग रहा है कि बड़े पैमाने पर घुसपैठिए बिहार में घुसे बैठे हैं। चुनाव आयोग उसे हटाना चाह रही है और विपक्ष वाले उसको संरक्षण दे रहे हैं। यही तो मकसद था। चुनाव आयोग जानती थी वो ग्राउंड लेवल पर कथित वोटर पुनरीक्षण का काम इतने दिनों में सही तरीके से नहीं कर सकती। चुनाव आयोग को तो सिर्फ इसे होता हुआ दिखाना था, इसके लिए फर्जीवाड़े करने की हर स्तर पर छूट दी गई। बात नोटबंदी की हो तो रिजर्व बैंक के तत्कालीन गार्नर ने भी वही किया। फर्जी आंकड़े और फर्जी दावे। यह सिर्फ प्रतिष्ठित संस्थानों के द्वारा नहीं किया गया, GST, कोरोना मौत, पीएम केयर आदि – आदि में भी फर्जीवाड़े बड़े पैमाने पर सामने आए, लेकिन जांच; जांच में भी फर्जीवाड़ा। वर्तमान साकार पर कोई भ्रष्टाचार का आरोप नहीं है। न खाया है न खाने दिया है !
कोरोन में आपके परिवार में भले कोई ऑक्सीजन की कमी से नहीं मारा हो, लेकिन आसपास में तो जरूर होगा? लेकिन सरकार की रिपोर्ट में मौत शून्य है। मतलब साफ है हमारी – आपकी मौत और जन्म के आंकड़ों के साथ फर्जीवाड़े करने वालों से लड़ना आसान नहीं है। जब उस फर्जीवाड़े को दबाने में विधायिका, कार्यपालिका और बहुत हद तक न्यायपालिका के साथ मीडिया का बड़ा वर्ग लग गया हो। आज पूरी रिपोर्ट सामने हैं, सवाल पूछना, खबर की सत्यता की परख आज के दौर में सरकारी काम में बाधा है। यह बताता है कि अंजुम साहब पर FIR भी एक तरह का फर्जीवाड़ा है। बिहार चुनाव में फर्जी तरीके से शासन और प्रशासन में आए लोग अपने बड़े फर्जीवाड़े को सुरक्षित और संरक्षित करने में लगे हैं।