अपने देश में अब कोई यह नहीं कह सकेगा कि कानून अंधा होता है। अब इस धारणा को बदलने के लिए सबसे पहले न्याय की देवी की मूर्ति के स्वरूप में बदलाव किया गया है।
न्याय की देवी की नई मूर्ति में आंखों की पट्टी हटाई गई है और साड़ी पहनाई गई है। साथ ही तलवार की जगह संविधान की किताब थमाई गई है। नए अर्थ और भाव को व्यक्त करती यह नई मूर्ति सुप्रीम कोर्ट में स्थापित की गई है।
यह बदलाव चीफ जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड के निर्देशों पर हुआ है। यह मूर्ति मशहूर शिल्पकार विनोद गोस्वामी और उनकी टीम ने बनाई है। इन बदलावों के जरिए न्यायपालिका की छवि में भारतीयता का रंग चढ़ाया गया है।मूर्ति के बाएं हाथ में पहले तलवार थी, जिसे हटाकर संविधान की किताब रखी गई है।
ये बदलाव स्पष्ट रूप से बड़े संदेश दे रहे हैं। न्याय की देवी की मूर्ति की आंखों पर पहले पट्टी बंधी रहती थी, लेकिन अब इस पट्टी को हटा दिया गया है, ऐसा करके आम लोगों के बीच यह संदेश देने की कोशिश की गई है कि कानून अंधा नहीं है।
इस नई मूर्ति को बनाने में तीन महीने लगे और इसमें तीन चरण थे। सबसे पहले एक ड्राइंग बनाई गई, फिर एक छोटी मूर्ति बनाई गई। जब चीफ जस्टिस को छोटी मूर्ति पसंद आई, तो 6 फीट ऊंची एक बड़ी मूर्ति बनाई गई। इस मूर्ति का वजन सवा सौ किलो है। शिल्पकार विनोद गोस्वामी का कहना है कि चीफ जस्टिस के मार्गदर्शन और दिशा निर्देश के अनुसार ही न्याय की देवी की नई मूर्ति बनाई गई है।
मूर्ति निर्माण के पहले चीफ जस्टिस ने कहा था कि नई प्रतिमा कुछ ऐसी हो, जो हमारे देश की धरोहर, संविधान और प्रतीक से जुड़ी हुई हो। इसी सोच के साथ मूर्ति को गाउन की जगह साड़ी पहनाई गई है। देवी को मुकुट पहनाया गया है। गले में हार भी डाली गई है। इससे मूर्ति आकर्षक हो गई है। मूर्ति में किए गए बदलाव से यह प्रतीत होता है कि न्याय का भारतीयकरण हो रहा है और इसे आम लोगों से जोड़ने की कोशिश की जा रही है। यह नई मूर्ति फाइबर ग्लास से बनाई गई है।
पहले न्याय की देवी की मूर्ति के बाएं हाथ में तलवार थी, जिसे हटा दिया गया है। अब तलवार की जगह संविधान की किताब रखी गई है, जिससे यह संदेश देने की कोशिश की गई है कि हर आरोपी के खिलाफ विधि सम्मत कार्रवाई की जाएगी। अदालत में लगी न्याय की देवी की मूर्ति ब्रिटिश काल से ही चलन में है, लेकिन अब इसमें बदलाव करके न्यायपालिका की छवि में समय के अनुरूप बदलाव की पहल की गई है।
जानकारों के मुताबिक दुनिया की सभी प्राचीन सभ्यताओं में न्याय व्यवस्था के उल्लेख मिलते हैं। उनमें न्याय की प्रतीक देवी की आंखों पर पट्टी है और एक हाथ में तलवार है। देवी का यह प्रतीक यूनानी सभ्यता से लंबी यात्रा करते हुए यूरोपीय देशों और अमेरिका में भी पहुंचा। अपने देश में जब ब्रिटिश हुकूमत थी तब 17वीं शताब्दी में ब्रिटेन के एक न्यायिक अधिकारी इस मूर्ति को लेकर भारत आए थे। तब से अभी तक यही मूर्ति न्याय की देवी के रूप में प्रचलित थी। ब्रिटेन से आई मूर्ति सबसे पहले कलकत्ता हाई कोर्ट में फिर इसके बाद मुंबई हाई कोर्ट में स्थापित की गई थी।
अब अपने देश में न्यायिक प्रक्रिया में अंग्रेजों के जमाने से चली आ रही परिपाटी को छोड़ कर न्याय की मूर्ति में किए गए इन बदलावों के जरिए संविधान में समाहित समानता के अधिकार को जमीनी स्तर पर लागू करने की भावना दिखाई पड़ने लगी है। हालांकि इन बदलावों की कुछ आलोचना की जा रही है लेकिन इसी के साथ चौतरफा स्वागत भी किया जा रहा है। अपने देश में गुलामी के प्रतीकों को हटाने की मुहिम आजादी के आंदोलनों के दौरान ही शुरू हो गई थी। इस कड़ी में इंडिया गेट से जॉर्ज पंचम की मूर्ति को हटाना, शहरों और सड़कों के नाम बदलना, तीन पुराने आपराधिक कानूनों को हटाना, सुप्रीम कोर्ट के नए ध्वज को फहराना, नई घड़ी लगाना और सुप्रीम कोर्ट परिसर में बाबा साहब आंबेडकर की प्रतिमा को स्थापित करने के बाद न्याय की देवी के स्वरूप में बदलाव लाना आदि शामिल है।
न्याय की देवी की नई मूर्ति को आकार देने वाले विनोद गोस्वामी एक जाने-माने चित्रकार हैं। वे दिल्ली के कॉलेज ऑफ आर्ट में प्रोफेसर हैं। वे राजस्थानी और ब्रज शैली के मेल से बने भित्ति चित्रों के लिए प्रसिद्ध हैं। विनोद गोस्वामी उत्तर प्रदेश के रहने वाले हैं। उनका जन्म नंदगांव, मथुरा में हुआ। उन्होंने अपनी शुरुआती पढ़ाई राजस्थान के एक कस्बे से की। इसके बाद उन्होंने जयपुर के राजस्थान स्कूल ऑफ आर्ट्स से ग्रेजुएशन किया। फिर उन्होंने दिल्ली के कॉलेज ऑफ आर्ट्स से मास्टर डिग्री हासिल की। 1997 में उन्होंने जयपुर में अपने करियर की शुरुआत की। बाद में वह दिल्ली आ गए। यहां उनकी मुलाकात सुरेंद्र पाल से हुई, जो उनके गुरु बने। विनोद गोस्वामी ने सुरेंद्र पाल से पेंटिंग की बारीकियां सीखीं। विनोद गोस्वामी रेखाचित्र, भित्तिचित्र, मूर्तिकला और पेंटिंग में माहिर हैं। अब वे न्याय की देवी की नई मूर्ति गढ़ कर प्रसिद्धि बटोर रहे हैं।