Kosi Times
तेज खबर ... तेज असर

हमने पुरानी ख़बरों को archieve पे डाल दिया है, पुरानी ख़बरों को पढ़ने के लिए archieve.kositimes.com पर जाएँ।

- sponsored -

- Sponsored -

- Sponsored -

छात्रों की बढ़ती आत्महत्या रोकने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने दी सख्त हिदायत

शिक्षण संस्थान बन रहे मौत के घर

- Sponsored -

हेमलता म्हस्के
समाजसेविका सह साहित्यकार

देश के कई शिक्षण संस्थान छात्रों के लिए बेहतर जीवन जीने के पाठ सीखने की जगह कम, मौत के घर ज्यादा बनते जा रहे हैं।
छात्रों की आत्महत्या की घटनाएं समाज की उम्मीदों और नियमों के नीचे दबी खामोश पीड़ा के संकेत हैं।बच्चों को यह नहीं सिखाया जाता है कि असफलता, निराशा या अनिश्चितता से कैसे निपटना है। उन्हें सिर्फ परीक्षाओं के लिए तैयार किया जाता है, जिंदगी के लिए नहीं।
इन घटनाओं को अब नजर अंदाज नहीं किया सकता है।

विज्ञापन

विज्ञापन

गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट की ओर से कई बार हिदायतें दी जाती रही हैं लेकिन इस समस्या का समाधान अभिभावक और शिक्षण संस्थानों को भी मिल कर खोजना होगा। क्योंकि मुफ्त में युवा जानें जा रही हैं।
हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने देश के विभिन्न शिक्षण संस्थानों में छात्रों द्वारा आत्महत्या की बढ़ती घटनाओं पर गहरी चिंता जताई है और इसे संज्ञान में लेते हुए बढ़ती आत्म हत्या रोकने के बारे में सख्त दिशा निर्देश भी जारी किए हैं। साथ ही यह कहा है कि ये दिशा निर्देश तब तक लागू रहेंगे, जब तक सरकार इस पर कोई कानून नहीं बनाती । सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि आत्महत्या के कारण युवाओं की मौतें प्रणालीगत नाकामियों को दर्शाती हैं, जिसकी अब अनदेखी नहीं की जा सकती। इन आत्महत्याओं को रोका जा सकता है। छात्र छात्राओं की आत्महत्या की घटनाएं सबूत हैं कि हम मानसिक स्वास्थ्य, अकादमी दबाव, सामाजिक कलंक और संस्थागत संवेदन शून्यता जैसे विषय को नजरअंदाज करते आ रहे हैं।

सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकारों को 2 महीने के भीतर संस्थानों के पंजीकरण और शिकायत निवारण पर अधिसूचना जारी करने और हर एक जिले में डी एम की अध्यक्षता में निगरानी समिति बनाने का भी निर्देश दिया है। कोर्ट ने मानसिक स्वास्थ्य को अनुच्छेद 21 के तहत जीवन के अधिकार का हिस्सा बताया है। हर संस्था की जिम्मेदारी है कि वह विद्यार्थियों के मानसिक स्वास्थ्य की रक्षा करें । सुप्रीम कोर्ट के
जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संदीप मेहता की पीठ ने आंध्र प्रदेश की 17 वर्षीय नीट छात्रा की संदिग्ध मौत के मामले में सुनवाई के दौरान यह टिप्पणी की। अब इस मामले की जांच सीबीआई को सौंप दी गई है। इसी के साथ पीठ ने भी देशभर के शिक्षण संस्थानों के लिए 15 दिशा निर्देश जारी किए हैं। पीठ ने कहा, जब तक संसद या राज्यों की विधानसभा इस पर कानून नहीं बना लेती है, ये दिशा निर्देश देश भर के लिए लागू रहेंगे। कोर्ट ने केंद्र सरकार से 90 दिनों में एक हलफनामा मांगा है इसमें इन दिशा निर्देशों के प्रभावी क्रियान्वयन, राज्यों के साथ समन्वय और राष्ट्रीय टास्क फोर्स की प्रगति रिपोर्ट का विवरण देने को कहा है। सुप्रीम कोर्ट ने छात्र छात्राओं की आत्म हत्याओं की घटनाओं से संबंधित एनसीआरबी की रिपोर्ट का जिक्र करते हुए कहा कि यह केवल आंकड़ा भर नहीं है, अनमोल जिंदगियां और युवा सपनों की अकाल मौत है। यह देश के लिए सामूहिक आत्म मंथन का विषय है। एनसीआरबी के 2022 के आंकड़े के मुताबिक उसी साल में देश में 1,70, 924 आत्महत्या से संबंधित मामले दर्ज हुए, इनमें 13, 044 छात्रों ने आत्महत्या की। इनमें 2,248 वैसे छात्रों ने आत्महत्या की जो विभिन्न शैक्षणिक परीक्षाओं में फेल हो गए थे।
कोर्ट की पीठ ने अपनी टिप्पणी के दौरान महान दार्शनिक जिद्दू कृष्णमूर्ति की किताब एजुकेशन एंड सिंगनीफिकेंस ऑफ़ लाइफ का जिक्र किया। इसमें कहा गया है कि शिक्षा का उद्देश्य ऐसे मनुष्य को गढ़ना है जो एकीकृत हों और सच में बुद्धिमान हों। इसका अर्थ बौद्धिक, भावनात्मक, नैतिक और आध्यात्मिक विकास से है। शिक्षा केवल जानकारी नहीं, जीवन जीने की कला भी है।
पीठ की ओर से शिक्षण संस्थानों के लिए जो भी दिशा निर्देश जारी किए गए हैं। उसके तहत सभी शिक्षण संस्थानों को उम्मीद, मनो दर्पण और राष्ट्रीय आत्महत्या रोकथाम नीति पर आधारित मानसिक स्वास्थ्य नीति अपनानी होगी। हर साल अपडेट कर वेबसाइट और सूचना बोर्ड पर लगाना होगा। दो, जहां 100 से अधिक छात्र हों, वहां प्रशिक्षित काउंसलर मनोवैज्ञानिक या सोशल वर्कर नियुक्त हों, छोटे संस्थान बाहरी विशेषज्ञों से जुड़े। तीन, परीक्षा या कोर्स बदलाव के समय हर छात्र समूह को एक मेंटर या काउंसलर दिया जाए, चार, कोचिंग संस्थान प्रदर्शन के आधार पर बैच नहीं बनाएं और न ही छात्रों को शर्मिंदा करें। पांच, शिक्षण संस्थानों में मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं, अस्पतालों और हेल्पलाइन से संपर्क की व्यवस्था हो, हेल्पलाइन नंबर प्रमुखता से प्रदर्शित हो। छह, संस्थान सभी शिक्षकों और स्टाफ को साल में दो बार मेंटल हेल्थ और आत्महत्या संकेत की ट्रेनिंग दे। सात, कमजोर वर्गों जैसे एससी, एसटी, ओबीसी, ईडब्ल्यूएस एलजीबीटी क्यू ,दिव्यांग, अनाथ या मानसिक संकट से जूझ रहे छात्रों से भेदभाव ना हो। आठ, यौन उत्पीड़न, रैगिंग और भेदभाव के मामले में कार्रवाई के लिए समिति बने पीड़ित को सहायता और सुरक्षा मिले। नौ, अभिभावकों के लिए जागरूकता कार्यक्रम हो ताकि वे तनाव पहचाने और दबाव न डालें।
इसी तरह दसवें निर्देश के मुताबिक संस्थान हर साल रिपोर्ट बनाएं जिसमें काउंसलिंग और मानसिक स्वास्थ्य का विवरण हो, जो यूजीसी जैसी नियामक संस्था को भेजा जाए। ग्यारह, पाठ्यक्रम के साथ खेल, कला और व्यक्तित्व विकास पर ध्यान हो परीक्षा प्रणाली छात्रों के हित में हो। बारह, छात्रों और अभिभावकों के लिए नियमित करियर काउंसलिंग हो। विविध विकल्पों की जानकारी दें। छात्रों को रुचि के अनुसार निर्णय लेने में मदद करें। तरह, हॉस्टल संचालक सुनिश्चित करें कि परिसर नशे, हिंसा या उत्पीड़न से मुक्त हो और छात्र-छात्राओं को सुरक्षित वातावरण मिले। चौदह, हॉस्टलों में छत, बालकनी, पंखे जैसी जगह सेफ्टी डिवाइस लगे ताकि आत्महत्या रोकी जा सके। पंद्रह, कोटा, जयपुर, चेन्नई और दिल्ली जैसे कोचिंग केंद्रों में नियमित काउंसलिंग और शिक्षण योजना पर निगरानी के विशेष प्रयास हों।

- Sponsored -

- Sponsored -

- Sponsored -

- Sponsored -

Get real time updates directly on you device, subscribe now.

- Sponsored -

आर्थिक सहयोग करे

Leave A Reply