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  • सेंगोल:-दुनिया के कई देशों में है राजदंड की परंपरा

    देश की नया संसद भवन बनकर पूरी तरह से तैयार है।28 मई को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस भवन का उद्घाटन करने वाले हैं।भारतीय संस्कृति पर आधारित नवनिर्मित संसद भवन में 70 वर्षों के पश्चात् एक बार फिर सेंगोल राजदंड मोदी जी को दिया जाएगा जिसको लेकर अभी चर्चा का माहौल गर्म हैं। नई संसद में


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    संजय कुमार सुमन
    साहित्यकार

    देश की नया संसद भवन बनकर पूरी तरह से तैयार है।28 मई को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस भवन का उद्घाटन करने वाले हैं।भारतीय संस्कृति पर आधारित नवनिर्मित संसद भवन में 70 वर्षों के पश्चात् एक बार फिर सेंगोल राजदंड मोदी जी को दिया जाएगा जिसको लेकर अभी चर्चा का माहौल गर्म हैं। नई संसद में चोल साम्राज्य से जुड़े ऐतिहासिक प्रतीक सेंगोल को भी रखा जाएगा।नए संसद भवन का उद्घाटन प्रधानमंत्री करें या राष्ट्रपति, यह बड़ा सवाल नहीं है। इससे अधिक बड़ा सवाल नए संसद भवन में सेंगोल को राजदंड के रूप में स्थापित किया जाना है।
    प्राचीन भारत के समृद्ध गौरव के प्रतीक सेंगोल के शीर्ष पर नंदी को बनाया गया है जो कर्म तथा न्याय का प्रतीक है।राजदंड भारत ही नहीं बल्कि दुनिया के लगभग सभी सभ्यताओं का हिस्सा रहा है। आजकल यह नये संसद भवन को लेकर चर्चा में है। साल 1947 में तमिलनाडु में बना एक राजदंड, जिसे सेंगोल कहा जाता है, अब तक प्रयागराज के आनंद भवन स्थित संग्रहालय में रखा हुआ था।

    क्या है सेंगोल का इतिहास
    सेंगोल राजदंड की कहानी और इतिहास बहुत प्राचीन हैं। सेंगल शब्द, संस्कृत के संकु से बना है, जिसका अर्थ शंख है।इसे संप्रभुता का प्रतीक माना जाता है। यह धातुओं से बना एक दंड होता था, जिसे राजकीय आयोजनों में राजा अपने साथ रखते थे।मौर्य, गुप्त से लेकर चोल और विजयनगर साम्राज्य तक में इस राजदंड का इस्तेमाल हुआ है। मुगल साम्राज्य में भी अकबर ने सेंगोल राजदंड का इस्तेमाल किया था।मौर्य शासनकालीन 322 ईसा पूर्व से लेकर 185 ईसा के मध्य पहली बार सेंगोल का प्रयोग किया गया था।ऐतिहासिक साक्ष्यों से पता चला हैं की ब्रिटिश सरकार के अंतिम वायसराय माउंटबेटन ने नेहरू से देश की आजादी को किस प्रतीक चिन्ह के रूप में देखना चाहते हैं? लेकिन नेहरू को इस सम्बन्ध में कोई ऐतिहासिक जानकारी नहीं थी।तब नेहरू राजगोपालाचारी जी के पास गए जो कभी मद्रास के मुखिया रह चुके थे, उन्हें विभिन्न परम्पराओं का ज्ञान था। तब राजगोपालाचारी जी ने नेहरूजी को तमिल में प्रचलित राजदंड व्यवस्था के बारे में बताया। इस व्यवस्था के अनुसार यहाँ राजा नए राजा को राजदंड/सेंगोल प्रदान करता हैं जिसे सत्ता के हस्तांतरण के प्रतीक के रूप में भी जाना जाता हैं।

    नेहरूजी इस प्रथा के बारे में सुनकर बहुत खुश हुए और उन्होंने यह जिम्मेदारी स्वतंत्रता सेनानी राजगोपालाचारी जी को सौंप दी। जब नेहरू देश के पहले प्रधानमंत्री बने उसके बाद लार्ड माउंटबेटन ने उन्हें सेंगोल राजदंड प्रदान किया था।
    इस राजदंड पर नंदीजी की आकृति भी उभारी गई थी।आजादी से कुछ ही समय पहले यह राजदंड दिल्ली पहुंचा था।इस पर गंगाजल छिड़ककर पवित्र किया गया और नेहरू जी को सौंपा गया था।यह घटना 14 अगस्त 1947 की रात्रि 11 बजकर 45 मिनिट की हैं।

    महाभारत काल में इसका महत्व
    महाभारत के शांतिपर्व के राजधर्मानुशासन अध्याय में भी राजदंड का उल्लेख है‌, इसमें अर्जुन ने सम्राट युधिष्ठिर को राजदंड की महत्ता समझाई थी। अर्जुन ने कहा था कि “राजदंड राजा का धर्म है, दंड ही धर्म और अर्थ की रक्षा करता है। इसलिए राजदंड को आप धारण करें।” यहां राजदंड का आशय राजा के द्वारा दिए जाने वाले दंड से भी लगाया गया है, इसमें अर्जुन कहते है कि “कितने ही पापी राजदंड के भय से पाप नहीं करते। जगत की ऐसी ही स्वाभाविक स्थिति है, इसीलिए सबकुछ दंड में ही प्रतिष्ठित है।”
    9वीं शताब्दी से लेकर 13वीं शताब्दी तक दक्षिण भारत पर चोल साम्राज्य का राज था। इसे भारत का सबसे शक्तिशाली साम्राज्य माना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि चोल सम्राज्य के बाद विजय नगर साम्राज्य में भी सेंगोल यानी राजदंड का इस्तेमाल किया गया था। कुछ इतिहासकार मुगलों और अंग्रेजों के समय भी इसके प्रयोग होने की बात कहते है।

    भारतीय संस्कृति पर आधारित नवनिर्मित संसद भवन में 70 वर्षों के पश्चात् एक बार फिर सेंगोल राजदंड मोदी जी को दिया जाएगा जिसको लेकर अभी चर्चा का माहौल गर्म हैं।

    राजदंड बना न्याय का प्रतीक
    राजदंड का उपयोग मौर्य साम्राज्य (322-185 ईसा पूर्व) में भी मिलता है। जहां इसका उपयोग मौर्य सम्राटों ने अपने विशाल साम्राज्य पर अधिकार को दर्शाने के लिए किया। इसके बाद गुप्त साम्राज्य (320-550 ईस्वी), चोल साम्राज्य (907-1310 ईस्वी) और विजयनगर साम्राज्य (1336-1646 ईस्वी) द्वारा राजदंड के इस्तेमाल के विशेष उल्लेख मिलते हैं। सम्राट हर्ष और कनिष्क ने भी राजदंड रखा था।
    *दुनिया के कई देशों में है राजदंड की परंपरा*
    राजा के हाथ में राजदंड देने की परंपरा दुनिया के कई देशों में है। 1661 में सबसे पहले चार्ल्स द्वितीय के राज्याभिषेक के दौरान सॉवरेन्स ऑर्ब ने इसे बनवाया था। हाल ही में ब्रिटेन के किंग चार्ल्स तृतीय के राज्याभिषेक समारोह में भी इसका प्रयोग किया गया था। मिस्र में भी राजदंड को राजा की शक्तियों का केंद्र माना जाता था। इसे वहां वाज नाम दिया गया था। मेसोपोटामिया में राजा के हाथ में रहने वाला गिदरु ही राजदंड था। इसके अलावा रोमन राजाओं के हाथ में भी राजदंड थमाया जाता था। खास बात यह है कि रोमन साम्राज्य में महत्पूर्ण पदों पर रहने वाले लोगों को भी राजदंड दिया जाता था, जो उनकी अलग-अलग शक्ति दर्शाता था।
    नई संसद में लोकसभा अध्यक्ष के मेंटलपीस को सेंगोल से सजाकर प्रधानमंत्री मोदी ने एक शक्तिशाली संदेश दिया है। यह भारत की सांस्कृतिक विरासत के साथ फिर से जुड़ने और स्वदेशी प्रतीकों को प्रमुखता के पदों पर बहाल करने के लिए एक जानबूझकर किए गए प्रयास को दर्शाता है। यह कदम पीएम मोदी की भारत की स्थानीय जड़ों को संरक्षित और पुनर्जीवित करने की प्रतिबद्धता को दर्शाता है, इस विचार को मजबूत करता है कि नई संसद खुद को देश की समृद्ध परंपराओं से अलग नहीं करेगी।

    नरेंद्र मोदी जी को सौंपा जाएगा सेंगोल
    28 मई 2023 के दिन फिर से इतिहास बनेगा जब देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी नए संसद भवन को देश को समर्पित करेंगे, सेंगोल वेबसाइट के मुताबिक इस दिन वर्ष 1947 की भांति ही यह सेंगोल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदीजी को सौंपा जाएगा।सबसे पहले इस सेंगोल को गंगाजल से पवित्र किया जाएगा।जब मोदीजी ने इसके बारे में सुना तो उनको यह तरीका बहुत प्रभावी और हमारी संस्कृति का प्रतीक लगा जिसके बाद गहन अध्ययन किया गया और अब एक बार फिर इतिहास बनने जा रहा हैं।
    यह सेंगोल लोकसभा स्पीकर की चेयर के पास रखा जाएगा और पुरे विधि-विधान के साथ 28 मई 2023 को मोदीजी को सौंपा जाएगा।
    बहरहाल जो भी हो,सेंगोल की वापसी भारत की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत के साथ एक पुन: जुड़ाव और औपनिवेशिक शासन के दौरान स्वदेशी प्रतीकों के उन्मूलन से प्रस्थान का प्रतीक है। यह कदम पीएम मोदी की देश की स्थानीय जड़ों को संरक्षित करने और पुनर्जीवित करने की प्रतिबद्धता को दर्शाता है, साथ ही संभावित रूप से राजनीतिक परिदृश्य को प्रभावित करता है और द्रविड़ समर्थक दलों से प्रतिक्रियाएं प्राप्त करता है। जैसे ही नई संसद आकार लेती है, सेंगोल की उपस्थिति भारत की विविध सांस्कृतिक टेपेस्ट्री और इसकी परंपराओं को संरक्षित करने और मनाने के महत्व की याद दिलाती है।

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