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साहित्यकारों ने अंगिका भाषा को आठवीं अनुसूची में दर्ज करने की मांग की

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मधेपुरा ब्यूरो

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अखिल भारतीय अंगिका साहित्य कला मंच,भागलपुर के बैनर तले आज मंजू सदन चौसा में एक बैठक आयोजित कर साहित्यकारों ने अंगिका भाषा को आठवीं अनुसूची में दर्ज करने की मांग केंद्र सरकार से की।
शिक्षाविद प्रो विष्णुदेव सिंह शास्त्री ने कहा कि भागलपुर, बांका, मुंगेर, पूर्णिया, कटिहार, मधेपुरा, सहरसा, खगडिय़ा, गोड्डा समेत कई इलाकों के लाखों लोगों की भाषा अंगिका है। अंग जनपद प्राचीन क्षेत्र रहा है। संपदा के दृष्टिकोण से भी देश में अपना स्थान रखता है। अंगिका में लोकगीत है। अंगिका प्राचीन काल से हीं अंग देश के लोगों की भाषा है। सरकार जल्द से जल्द इसे आठवीं अनुसूची में शामिल करके संवैधानिक मान्यता दे जिससे इस भाषा में रोजगार का सृजन हो सके।
साहित्यकार संजय कुमार सुमन ने कहा कि प्राचीन भारत के सोलह जनपदों में अंग एक प्रमुख जनपद था और जिसकी भाषा आदिकाल से अंगिका है। इस भाषा की लगातार उपेक्षा की जा रही है। अंगिका केवल हमारी मातृभाषा हीं नहीं बल्कि बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल के लगभग 26 जिलों में अंगिका भाषा जनभाषा है।उन्होंने कहा कि अंगिका भाषा को द्वितीय राजभाषा का दर्जा दिया जाय। राजभाषा द्वारा अन्य लोकभाषाओं की तरह अंगिका भाषी साहित्यकार को भी साहित्यिक सम्मान दिया जाय। वहीं अंगिका भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची में केंद्र सरकार शामिल करे।
अधिवक्ता सह लेखक विनोद आजाद ने कहा कि अंगिका प्राचीन अंग महाजनपद अर्थात् भारत के उत्तर-पूर्वी एवं दक्षिण बिहार, झारखंड, बंगाल, असम, उड़ीसा और नेपाल के तराई के इलाक़ों में मुख्य रूप से बोली जाने वाली भाषा है। यह प्राचीन भाषा कम्बोडिया, वियतनाम, मलेशिया आदि देशों में भी प्राचीन समय से बोली जाती रही है। प्राचीन समय में अंगिका भाषा की अपनी एक अलग अंग लिपि भी थी।भारत की अंगिका को साहित्यिक भाषा का दर्जा हासिल है।
बैठक में सुनील अमृतांशु,अजय कुमार खुशबू,पप्पू कुमार ने भी विचार व्यक्त किये।

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