मो ० मुजाहिद आलम
कोसी टाइम्स @कुमारखंड,मधेपुरा
मिथिलांचल सहित पूरे कोसी और सीमांचल के क्षेत्र में मनाए जाने वाला पर्व वट सावित्री धूमधाम के साथ गुरुवार को पुरे प्रखंड क्षेत्रों में मनाया गया। ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की अमावस्या को वट सावित्री व्रत किया जाता है। सुहागिन महिलाएं अपने पति की लंबी आयु के लिए यह व्रत रखती हैं। कहा जाता है कि इस दिन सावित्री अपने पति सत्यवान के प्राण यमराज से वापस लेकर आईं थीं। जिसके बाद उन्हें सती सावित्री कहा जाने लगा। इस साल वट सावित्री व्रत 6 जून को मनाया गया।
वट सावित्री पूजा के अवसर पर रामनगर महेश, कुमारखंड ,इसराइन बेला, इसराइन कला, रानीपट्टी सुखासन, बेलारी, रहटा, लक्ष्मीपुर भगवती सहित पूरे प्रखंड क्षेत्रों में सुहागिन महिलाओं ने अपने सुहाग की रक्षा और पति की दीर्घायुु होने की कामना केेेे लिए श्रद्धा और उमंग के साथ वटवृक्ष की विधि-विधान पूर्वक पौराणिक रीति रिवाज के साथ पूजा अर्चना की।
इस दौरान महिलाएं वट वृक्ष की पूजा के दौरान रक्षा सूत्र बांधकर अपने सुहाग और पति पत्नी की अटूट रिश्ते के लिए ईश्वर से कामना की। नवविवाहिता महिलाएं पूरे श्रृंगार के साथ नए वस्त्र धारण कर ससुराल से आए पूजन सामग्री को साथ लेकर वटवृक्ष के पास पहुंचकर श्रद्धा पूर्वक पूजा अर्चना किया। इसके अलावा कथकनी (पुजारी) से सत्यवान और सावित्री की कथा सुनी गई ।
नवविवाहिता सुहागिनों में पहली बार वट सावित्री पूजा का अलग ही उत्साह देखा गया । पौराणिक मान्यता के अनुसार सावित्री के व्रत के दिन बरगद पेड़ के नीचे बैठकर पूजन, व्रत कथा सुनने से मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। इस व्रत में महिलाएं सावित्री-सत्यवान की कथा सुनती हैं। वट वृक्ष के नीचे बैठकर ही सावित्री ने अपने पतिव्रत से पति सत्यवान को दोबारा जीवित कर लिया था। दूसरी कथा के अनुसार मार्कण्डेय ऋषि को भगवान शिव के वरदान से वट वृक्ष के पत्ते में पैर का अंगूठा चूसते हुए बाल मुकुंद के दर्शन हुए थे। तभी से वट वृक्ष की पूजा की जाती है। वट वृक्ष की पूजा से घर में सुख-शांति, धनलक्ष्मी का भी वास होता है। वट सावित्री पूजा को लेकर महिलाओं में दिनभर काफी उत्साह का माहौल देखा गया। इस दौरान नवविवाहित सुहागिन महिलाओं के द्वारा विवाहित महिलाओं को निमंत्रण देकर भोजन भी कराया गया और उनसे आशीर्वााद लिया गया।