पशुओं और पक्षियों पर बढ़ रही क्रूरता,सरकार और समाज इनके लिए भी बनें संवेदनशील

हेमलता म्हस्के
समाजसेविका सह साहित्यकार

अपने देश में कुत्ते बिल्लियों, हाथियों और घोड़ों सहित पक्षियों पर मनुष्य के अत्याचार लगातार बढ़ रहे हैं हालांकि पशुओं और पक्षियों पर मनुष्य की बढ़ती क्रूरता को रोकने के लिए अपने देश में पशु क्रूरता निवारण अधिनियम भी बनाया गया है उसके बावजूद पशुओं और पक्षियों पर अत्याचार रुक ही नहीं रहे हैं । अब सरकार पशु क्रूरता निवारण अधिनियम में सुधार लाकर इसे और सख्त बनाने पर विचार कर रही है। यह भी सच्चाई है कि पशुओं और पक्षियों पर अत्याचार केवल कानून बना देने से नही रुकेगा। इसके लिए जागरण अभियान चलाने की जरूरत है। जिसकी अभी तक अपने देश में कहीं भी ठीक से शुरुआत नहीं हो सकी है।

जानवरों और पक्षियों पर अत्याचार करने वाले लोग सिर्फ जानवरों के ही दुश्मन नहीं होते, वे मनुष्य के लिए भी खतरनाक होते हैं। जानवरों पर अत्याचार करने वाले लोग वास्तव में मानसिक विकृतियों के शिकार होते हैं जो धीरे-धीरे विकसित होती जाती है और मनुष्य विरोधी भी हो जाती है।


आज संसार में पशुओं का उत्पीडन जिस बुरी तरह से किया जा रहा है उसे देखकर किसी भी भावनाशील का ह्रदय दया से भरकर कराह उठता है। पशुओं पर होने वाला अत्याचार मानवता पर एक कलंक है। समस्त प्राणी-जगत में सबसे श्रेष्ट कहे जाने वाले मनुष्य का पशुओं और पक्षियों के साथ क्रूरता करना किसी भी तरह से जायज़ नही है। संसार में रहने वाले सभी प्राणियों को उस एक ही परमात्मा ने जन्म दिया है। इस नाते वे सब आपस में एक दूसरे के लिए ही है, बुद्धि, विवेक और अधिकारों की दृष्टि से मनुष्य उन सबमे में बड़ा है,इसलिए पशुओं और पक्षियों पर बढ़ रही क्रूरता को रोकने के लिए मनुष्य को ही आगे आना होगा। पशु और पक्षी बेजुबान होने के कारण खुद अपनी रक्षा नहीं कर सकते और न ही किसी को अपनी रक्षा के लिए बुला सकते हैं।
चाहे घर हो या सड़क,हर जगह पालतू और आवारा पशुओं पर मनुष्य के अत्याचार बढ़ते जा रहे हैं।
खास तौर पर सड़क पर रहने वाले आवारा बेजुबान जानवर हमारे ही समाज का हिस्सा है लेकिन इस बात को भुलाकर उनको अक्सर नजर अंदाज किया जाता है । कई आवारा जानवरों विशेषकर कुत्तो और बिल्लियों को बरसात के दिनों में भारी मुश्किलों का सामना करना पडता है। थोड़े से भोजन की तलाश मे ये हमारे परिसर मे आ जाते हैं तो उनको उपद्रवी मानकर उनके साथ अक्सर दुर्व्यवहार किया जाता है। दुर्भाग्य यह है कि हर कोई उनके प्रति दयालू नहीं होता । उन्हें इंसानो के बहुत अत्याचार का सामना करना पडता है । उन्हें मारा पीटा जाता है । पत्थरों से कुचला जाता है। उनकी रीढ़ की हड्डियां तोडी जाती है । जानवरों पर ऐसे अत्याचार आम हैं। उनको बुरी तरह से घायल कर मरने के लिए भी छोड दिया जाता है । यह कहानी किसी एक गली के बेजुबान जानवरो की नहीं बल्कि देश की अनगिनत गलियों में आवरा जानवरों की है।

पशु भले ही बेजुबान हो लेकिन उनके अंदर भी भावनाएं होती हैं। वह भी सुख, दुःख और प्रेम की संवेदना और क्रूरता का अंतर समझते हैं लेकिन उन्हें उतना प्यार ऑर समर्थन नहीं मिलता। यह शर्म की बात है ।
अब यह कहना भी सही नहीं होगा कि सभी मालिक अपने पालतु जानवरो के प्रति असंवेदनशील हैं। अपने घर की शोभा ऑर शान बढाने के लिये कुत्तों बिल्लियों को पाला जाता है और उनका इलाज मालिक के मुड पर निर्भर करता है। इस बारे में कई मामले ऐसे भी सामने आए है कि पालतु जानवरों को बूढ़ा हो जाने पर या रोगग्रस्त हो जाने पर उन्हें भगवान भरोसे छोड दिया जाता है। ऐसे में वे भूख ऑर दर्द में तो जीते है और अपने मालिक के इंतजार में सडक पर दम तोड देते हैं या सडक हादसे के शिकार होते हैं। आवरा कुत्तों की दुर्दशा तो सभी के लिये आम बात बन गई है। ठीक इसी तरह अपने देश में गायों की दुर्दशा भी आवरा कुत्तों से कम नहीं है। .भारत में गायों की महिमा आदिकाल से गाई जाती रही है। गायों को माता कह के पूजा जाती है। हिंदू घरो मे सबसे पहली रोटी गाय की और दूसरी रोटी कुत्ते के लिए निकाली जाती थी लेकिन अब कुत्तों के साथ गायो को भी दुर्दशा देखनी मिलती है .

हर गली मुहल्ले ,चौराहे, मुख्य बाजार और स्कूल के आसपास अनेक गाय बछडे ऑर बैल का डेरा लगा ही रहता है। अब तो हाईवें पर भी बडी संख्या में गायों को झुंड के रूप में बैठे देखा जा सकता है । तेज गति से निकलने वाले वाहनो के होनवाले हादसो में गाएं गंभीर रूप से जख्मी होते है। लेकिन उनकी सुध लेनेवाला कोई मलिक नहीं होता। बिना इलाज के वे सडक पर ही दम तोड देती हैं।
हाईवे पर निर्दयी लोग अपने जानवरो को आजाद कर देते हैं। ऐसे वे तब करते है जब वे किसी लायक नहीं रह जाते हैं यानी कि उनसे दूध नही मिलता और अन्य कार्य के लिए भी उपयोगी नहीं रह जाती हैं।
पशुओ को इस तरह आवारा छोडना कानुन के मुताबिक क्रूरता है
जब इन गायों का कोई मालिक नहीं होता तो वे घास चारा ना मिलने से भूख की पीड़ा को मिटाने सडक के किनारे फेके गए कचरे खाने पर विवश हो जाती हैं। मनुष्यों को इस बात का अंदाजा भी नहीं होता होगा कि अपनी गलतियो का खामियाजा हमारे पशुओ को भुगतना पडता है। अपने देश के छोटे बडे शहरो में इधर उधर भटकती गायों मे से 95 प्रतिशत अपने पेट के अंदर खतरनाक सामग्री के कारण विभिन्न बीमारियों की शिकार हो जाती हैं। इन सामग्रियों में 90 प्रतिशत प्लास्टिक बॅग होते हैं जिसे मनुष्य द्वारा इस्तेमाल के बाद कचरे के ढेर में फेंक दिया जाता है । प्लास्टिक पॉलिथिन खाने से मरनेवाली गायों की मौत का आंकडा काफी बडा है। इस सूची में कई राज्यो के नाम आते है उसमे उत्तर प्रदेश ऑर राजस्थान का हाल सबसे बुरा है हालांकि स्थिति मे धीरे धीरे सुधार हो रहा है इन बेजुबांन जीवो की मदद के लिये कई गैर सरकारी संस्थाएं आगे आ रही हैं। साथ ही घरों में से पशुओं और पक्षियों पर काम करनेवाले पशुप्रेमी भी पशुओ के प्रति प्रेम की भावनाएं जागृत कर रहे हैं । इसके अलावा अगर सरकार भी इन बेजुबांन जानवरों की सुध लेकर बस स्टँड और रेल्वे स्टेशनो के साथ साथ पार्को आदि में पक्षियों ऑर आवरा बेजुबांन जानवरो के लिये कटोरे लगाकर पानी डालने की व्यवस्था करे उनका भला हो सकता है। इन स्थानो पर जनसहयोग से पक्षियों के लिये भोजन भी रखा जा सकता है ताकि लोगो में इस माध्यम से बेजुबांन. पशु पक्षी के प्रति जागृति फैलाने में मदद मिल सके। इसी के साथ पशुओं और पक्षियों के हक में बने कानूनों का ईमानदारी से पालन होना चाहिए। संस्थाओं को पशु क्रूरता के खिलाफ आंदोलन चलाना चाहिए। हर प्राणी को जीने का अधिकार है यह बात सभी को समझना चाहिए। पशुओं के प्रति प्रेम पूर्ण व्यवहार की शुरुआत घर से ही करनी चाहिए ताकि बच्चे भी पशु और पक्षियों के प्रति बचपन से ही संवेदनशील बन सके । सरकार जरूरत के मुताबिक कानूनों में संशोधन कर उसे सख्त भी बनाए ताकि लोगों में भय भी पैदा हो सके। सरकार हर एक जिला मुख्यालय पर पशु क्रूरता को रोकने के लिए हेल्पलाइन भी स्थापित करें ताकि संवेदनशील लोग इसकी मदद से पशु पक्षियों पर होने वाले अत्याचार को रोकने में कामयाब हो सके।

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